
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब बात होती है, तो कुछ नाम स्वर्ण अक्षरों में उभरकर सामने आते हैं। उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक प्रमुख नाम हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक। वे केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि महान शिक्षा शास्त्री, समाज सुधारक, पत्रकार, लेखक और प्रखर राष्ट्रवादी भी थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता को जागरूक किया एवं स्वतंत्रता का बीज सर्वप्रथम उन्होंने ही बोया था। स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक काल में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए नए विचार रखे और अनेक प्रयत्न किये थे। अंग्रेज उन्हें “भारत में अशान्ति के पिता” कहते थे। उन्हें “लोकमान्य” की सम्माननीय पद्वी भी प्राप्त हुई, जिसका अर्थ है “लोगों द्वारा स्वीकृत” लोकमान्य तिलक स्वराज्य के सबसे पहले एवं शक्तिशाली अधिवक्ता थे। वे भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल परिवर्तनवादी थे। उनका यह नारा अत्यन्त प्रसिद्ध है -“स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा”। इस नारे ने पूरे देश में स्वतंत्रता की भावना को बल दिया। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नगिरि जिले में छोटे से गाँव, चिखली, में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता गंगाधर तिलक संस्कृत के विद्वान व शिक्षक थे। तिलक बचपन से ही तेजस्वी, निर्भीक एवं निडर स्वभाव के थे। उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की व बाद में कानून की पढ़ाई भी की। वे आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने वाले पहले भारतीय पीढ़ी के लोगों में से एक थे। पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् उन्होंने कुछ समय तक शिक्षक के रूप में कार्य किया और फिर पत्रकारिता और राजनीति की ओर रुख किया। तिलक का मानना था कि शिक्षा के बिना समाज में सुधार संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने 1884 में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की। इस संस्था का मूल उद्देश्य था, भारतीयों को आधुनिक और राष्ट्रीय भावना की शिक्षा देना। बाद में उन्होंने फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे की स्थापना में भी अपना योगदान दिया। बाल गंगाधर तिलक ने भले ही अपने केरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की, लेकिन वे शिक्षा तक सीमित नहीं रह सके। वे मानते थे कि अगर भारत को सशक्त बनाना है तो युवाओं को भारतीय संस्कृति, राष्ट्रभक्ति और आत्मबल से शिक्षित करना होगा। तिलक सामाजिक सुधारों के भी समर्थक थे, महिलाओं की शिक्षा के पक्षधर थे, जातिवाद के खिलाफ थे और उन्होंने बाल विवाह एवं अंधविश्वास की भी निंदा की थी। बाल गंगाधर तिलक ने जनता को जागरूक करने के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया। उन्होंने दो प्रमुख समाचार पत्र का आरंभ किया – “केसरी” मराठी भाषा में, और “मराठा” अंग्रेजी भाषा में। इन अखबारों के माध्यम से वे ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना करते थे एवं भारतीयों को स्वराज्य के लिए प्रेरित करते थे। तिलक के क्रांतिकारी कदमों से अंग्रेज बौखला गए थे। उन्होंने जनता को बताया कि अंग्रेजों की गुलामी में रहना उनके अधिकारों का हनन है। उन्होंने माँग की, कि ब्रिटिश सरकार तुरंत भारतीयों को पूर्ण स्वराज्य दे। केसरी में छपने वाले अनेक लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया था। तिलक ने अपने समाचार पत्र में “देश का दुर्भाग्य” नामक लेख लिखा था, जिसके अंतर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास में माण्डले (बर्मा, म्यांनमार) जेल में बंद कर दिया गया था। जेल में रहते हुए उन्होंने महान ग्रन्थ “गीता रहस्य” की रचना की, जिसमें उन्होंने भगवद्गीता के कर्मयोग सिद्धांत की व्याख्या की।
लोकमान्य तिलक ने धार्मिक आयोजनों को सामाजिक एकता और राजनैतिक जागरूकता के मंच में बदल दिया। उन्होंने “गणेश उत्सव” एवं “शिवाजी जयंती” जैसे पर्वों को सार्वजनिक रूप से मनाने की परम्परा का शुभारम्भ किया। यह आयोजन जनता को एकजुट करने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत तैयार करने का माध्यम बनाया एवं देशभक्ति की भावना को मजबूत किया। उनका उद्देश्य था कि धर्म का उपयोग समाज को जोड़ने एवं स्वतंत्रता की ओर प्रेरित करने के लिए किया जाय, न कि केवल व्यक्तिगत आस्था तक सीमित रखा जाय। बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में एनी बेसेन्ट की मदद से “होम रूल लीग” की स्थापना की। होम रूल आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को प्रसिद्धि एवं सम्मान मिला, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली। तिलक ने सबसे पहले “पूर्ण स्वराज्य” की माँग रखी। उन्होंने जन जागृति हेतु संपूर्ण महाराष्ट्र में गणेशोत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभकिया। इन त्यौहारों के माध्यम से अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस किया। एक सभा के दौरान भाषण देते हुए उन्होंने पूरे भारत में समान लिपि के रूप में देवनागरी लिपि की वकालत की एवं कहा कि समान लिपि से समस्याओं समस्यायें सुलझाई जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि रोमन लिपि भारतीय भाषाओं के लिए अनुपयुक्त है। 1 अगस्त 1920 को 64 वर्ष की आयु में लोकमान्य तिलक का मुंबई में निधन हो गया। उनके निधन से सम्पूर्ण भारत शोक में डूब गया। महात्मा गाँधी ने उनके बारे में कहा, “तिलक स्वराज्य के पुरोधा थे। जवाहर लाल नेहरू ने उनको भारतीय क्रांति का जनक कहा। उनकी मृत्यु के पश्चात् भी उनके विचार, उनके नारे और उनके संघर्ष आज भी भारतीय युवाओं को प्रेरित करते हैं। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि विचारधारा थे। उन्होंने स्वराज्य का जो बीज बोया, वही बीज बाद में आजादी की विशाल क्रांति का वट वृक्ष बना। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि उद्देश्य महान हो और संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी शक्ति आपको रोक नहीं सकती। आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तो इसका श्रेय उन वीरों को जाता है जिनमें लोकमान्य तिलक अग्रगण्य थे। उनका जीवन देशभक्ति, साहस और निष्ठा का प्रतीक है, आज भी उनके विचार और योगदान हमें प्रेरित करते हैं। आज 23 जुलाई को हम भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को नमन करते हैं।
डॉ. नीलिमा पिम्पलापुरे लेखिका, समाजसेविका सागर