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ब्लॉक कोटड़ा क्षेत्र के सुलाव और खाम गाँवों में जनवरी से सोशल कैपिटल क्रेडिट्स कार्यक्रम की शुरुआत हुई | इस कार्यक्रम के तहत मेंटर यानी कक्षा 7 व 8 के बच्चे, मेंटी यानी कक्षा 1 से 5 के बच्चों को समुदाय में यानी अपने घर में आधा घण्टा पढ़ा रहे हैं जिससे मेंटी के साक्षरता और संख्यात्मक कौशल पर कार्य हो रहा है |
यह कार्यक्रम धरातल में कोटड़ा आदिवासी संस्था और उजाला फाउंडेशन के साझे प्रयास से हो रहा है | इसको करने में न्यू यॉर्क की संस्था एशिया इनीशीयटिवस और मध्य प्रदेश, उज्जैन की संस्था मेरा गाँव मेरी दुनिया का अहम योगदान है |
प्रशिक्षण की शुरुआत बाल गीत से हुई जिसके बाद खेल के माध्यम से मेंटरों को एंगेज किया गया | उसके बाद सभी ने अपना परिचय देते हुए उनके द्वारा पढ़ा रहे मेंटीयों के नाम बताए | कहानी के माध्यम से मेंटरों को मेंटीयों को सिखाने के लिए सुरक्षित वातावरण का निर्माण यानि बिना मारे और डांटे सिखाने की बात पर जोर देने के साथ एशिया इनीशीयटिवस के इसी बात को लेकर वीडियो दिखाए गए | गतिविधि आधारित शिक्षण का अनुभव करवा कर मेंटीयों को भी इसी तरह सिखाने को प्रेरित किया गया | मेंटरों को क्रेडिट्स कमाने व खर्च करने के बारे में समझा कर उन्हें कॉपी में कैसे इसको संधारण करना है यह बताया गया | प्रशिक्षण के अंत में मेंटरों को प्रथम बुक्स की कहानी की किताबें, उजाला फाउंडेशन की संदर्भगत, द्वि भाषा कहानी की किताबें दी गई ताकि मेंटीयों को सिखाने में मदद मिल सके |
कोटड़ा आदिवासी संस्था के मोईन शेख ने बताया कि मेंटीयों को सिखा कर मेंटर कमा रहे हैं सोशल कैपिटल यानी सामाजिक पूंजी जिसे वह सरकारी विद्यालयों में खर्च करेंगे खुद के नेतृत्व व डिजिटल साक्षरता कौशल निखारने के लिए | सामाजिक पूंजी वह पूंजी है जो समाज में अच्छे कार्य करने के लिए मिलती है और इस प्राप्त पूंजी से आप अपने आप को बेहतर बनाने के लिए खर्च कर सकते हैं |
उजाला फाउंडेशन के नाना लाल ने बताया कि 91 मेंटरों ने इस प्रशिक्षण में भाग लिया जिसमें से 60 मेंटर किसी भी काम के लिए पहली बार कोटड़ा आए व 91 मेंटर ने पहली बार इस तरह के प्रशिक्षण में भाग लिया | सभी मेंटर अपने घर से पत्ते के दोने बना कर लाए थे और उसी में भोजन किया |
कोटड़ा आदिवासी संस्थान के दिलीप सालवी ने बताया कि संस्थान द्वारा पिछले 2 सालों से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोटड़ा में माँ की रोटी कैंटीन का संचालन किया जा रहा है जहाँ मात्र ₹10 में स्वस्थ और स्वादिष्ट भोजन यानी 3 रोटी, चावल, व दाल या सब्जी मिल रहा है | माँ की रोटी का संचालन सुबह 10 से दोपहर 3 बजे तक होता है जिसमें मरीज, उनके साथ आने वाले लोग, आस पास के दुकानदार, मजदूर, अधिकारी, आदी खाना खाने आते हैं | इस प्रशिक्षण में मेंटरों के लिए भी खाने की व्यवस्था वही से हुई |
प्रशिक्षण के दौरान 91 मेंटर, पूर्व सुलाव सरपंच वेलाराम, कोटड़ा आदिवासी संस्था से मोईन शेख, प्रवीण कुमार, दिलीप सालवी और उजाला फाउंडेशन से मेवा कुमारी, खेता राम, प्रथा राम, और नाना लाल उपस्थित रहे |