तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए एक संदेश व सामयिक सामाजिक दर्पण
अयोध्या/अम्बेडकरनगर। 15अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता और 26जनवरी 1950 में संविधान का लागू होना ये दोनों ही तिथियां निश्चित ही राष्ट्र के लिए ऐतिहसिक गौरवपूर्ण है, जो महा उत्सव के रूप में मनाया जाता है देशवासियों के लिए अपने राष्ट्र के प्रति एक अद्भुत उल्लासपूर्ण देश-प्रेम की भावना को प्रकट करने का जो शानदार प्रस्तुतीकरण होता है जिससे एक ओर जहाँ अपने राष्ट्र के भक्तिभाव में लोग मगन रहते है तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करके राष्ट्र के प्रति सकारात्मक संदेश देकर शान्तिपूर्ण माहौल तैयार कर एकता अखण्डता परस्पर प्रेम से मिलजुलकर रहने की सहयोगी भावना जागृत करते हैं वहीं दूसरी तरफ लोग राष्ट्र के प्रति नफरत फैलाकर हिंसा भड़काना चाहते है ऐसे लोगों को राष्ट्र के नागरिक होने के सभी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए।
अशिक्षा बेरोजगारी कुपोषण भ्रष्टाचार व्यभिचार महंगाई आतंकवाद अपराध से निजात पाना मुमकिन नही है समाज में नशा मांस मदिरा बेरोकटोक सतत जारी है तो ऐसी परिस्थितियाँ जो वर्तमान समय में निर्मित हैं वहां सुख शान्त अमन चैन की बात कहना बिल्कुल बेईमानी होगी। धर्म के नाम पर भी तरह-तरह के अनर्गल बातें की जा रही हैं लोगों में नाना प्रकार के भ्रामकता का प्रचार-प्रसार किया जा रहा उनके धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात किया जा रहा है तो इस प्रकार से स्वतन्त्र स्वस्थ समृद्ध भारत की कल्पना दिवास्वप्न मात्र है। इस धरती पर सत्य को जानना समझना है तो कभी श्मशान में जाओ, समाज के बीच उन परिवारों में जाओ जहाँ रोटी कपड़ा और मकान के लिए अब भी तड़प रहे है लोग शिक्षा स्वास्थ्य के अभाव से पीड़ित हैं बच्चे कुपोषित है अच्छी पढ़ाई लिखाई नही कर पा रहे अपनी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हीं लोगों को गलत मार्ग पर बढ़ाया जा रहा है जिन्हें आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए वे कुछ भी करने के लिए तत्पर है।
अपराध रोकना है तो किसी को अपमानित न करों, नफरत फैलाकर किसी के अंदर हिंसात्मक प्रवृत्तियों को जन्म मत दो, स्वयं के आचरण और चरित्र में पवित्रता और आदर्श मानवीय मूल्यों को न उतारकर सिर्फ उपदेश करके ही अपने आपको महिमामंडन करने वाले लोग कभी भी ऐसा नही कर सकते जिन्हें किसी चाटुकारिता से ही नही फुर्सत जो यथार्थ का जीवन ही नही जीते वास्तविक सत्य को जानना ही नही चाहते अपने अहम के झूठे मद से ज्ञान चक्षुओं को खोलना नही चाहते ऐसे न जाने कितने लोग है जो राजनीतिक संरक्षण में अपना जीवन जी रहे और धार्मिक क्षेत्र में भी अपना हस्तक्षेप करने से नही चूकते। जैसे उबलते पानी में कभी परछाई नही दिख सकती ठीक उसी प्रकार परेशान मन से समाधान भी नही दिखते एक बार शांत होकर देखिए तो सभी समस्याओं का हल मिल जाएगा, मन की उत्पत्ति विचारों से होती है आप स्वयं प्रयोग कर सकते हैं। थोड़ी देर शांत रहें और कुछ न सोचें न विचारें, इससे आपको अनुभव होगा मन मर गया उसका कुछ भी पता नहीं चल रहा है, मन यानी आत्मा की वह शक्ति जो एक तरंग के रुप में कार्य करती है आत्मा वो उर्जा है वह सूक्ष्म शक्ति जो समान रूप से सभी में विद्यमान है जो सम्पूर्ण जीवनचर्या को संचालित करती है, हमारे शरीर को चलाती है उस ऊर्जा से हमारा शरीर बना है न कि शरीर से आत्मा, और वो आत्मा अजर, अमर, अविनाशी, अलौकिक दिव्य शक्तियों से सम्पन्न सर्वशक्तिमान है जिसे ध्यान साधना योग के माध्यम से आप अपने अन्तर्निहित अलौकिक शक्ति को जाग्रत कर आश्चर्य चकित कार्य करने में सक्षम, सफल हो सकते हैं, रास्ता कितना भी लंबा हो संघर्ष कितना ही बड़ा क्यों ना हो अगर आपको अपने भगवान(ईष्ट) पर पूर्ण श्रद्धा विश्वास और समर्पण है तो आपका कोई भी अनिष्ट कर ही नही सकता ऐसे कार्य जो आपको असंभव सा प्रतीत हो रहा उसे भी आप संभव करने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेंगे, किसी एक विचारधारा का कठपुतली बनकर काम करना कलमकार का काम नही होता उसे उन समस्त बिन्दुओं पर स्वतंत्र रूप से ध्यान केन्द्रित कर प्रकाश में लाना होता है जिससे समाज को जागरूक जिम्मेदार आदर्श नागरिक बनाकर राष्ट्रहित की अवधारणा को समृद्ध समुन्नत किया जा सके! -लेखक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व स्तंभकार
वन्देभारत लाइव टी वी न्यूज के साथ डिस्ट्रिक्ट हेड कैलाश नाथ तिवारी अयोध्या/अम्बेडकरनगर।