सुख और समृद्धि प्रदान करता है अचला सप्तमी का पूजन :- डॉ ब्रजेश कुमार विभूति
अचला सप्तमी को सूर्य सप्तमी तथा रथ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि रथ सप्तमी यानी अचला सप्तमी के दिन भगवान सूर्यदेव का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए यह दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा के लिए बेहद ही शुभ और सर्वोत्तम माना गया है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का विशेष महत्व है। इस सप्तमी को शास्त्रों में अचला सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी, रथ सप्तमी और पुत्र सप्तमी भी कहा गया है। इसी दिन सूर्य ने सबसे पहले अपना प्रकाश प्रकाशित किया था। आज के दिन तेल और नमक का अवश्य त्याग करना चाहिए। भविष्य पुराण में इस सप्तमी को वर्ष भर की सप्तमी में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
इस दिन महिलाएं व्रत कर सूर्यदेव को प्रसन्न करती हैं और घर में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगती हैं।
इस दिन भगवान सूर्य के सामने मुंह करके नमस्कार मुद्रा में खड़े हो जाएं. मुड़े हुए हाथ से छोटे कलश की सहायता से धीरे-धीरे जल अर्पित करें। लोटे या मिट्टी के बड़े पात्र से जल देना सर्वश्रेष्ठ है। अर्घ्य नदी में रहकर दे सकते हैं और घर पर भी। याद रखें उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना सर्वोत्तम होता है।
आइए भगवान सूर्य के परिवार से आपको परिचय करवाते हैं।
भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरीचि हुए, मरीचि से कश्यप ऋषि का जन्म हुआ,कश्यप की पत्नी अदिति हैं। भगवान सूर्य इन्हीं कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। कश्यप ऋषि के पुत्र होने के कारण इनका एक नाम काश्यप भी है, और अदिति के पुत्र होने के कारण इनका एक नाम आदित्य भी है। विश्वकर्मा को पुत्री संज्ञा और छाया सूर्य की दो पत्नियां हैं, संज्ञा का एक नाम अश्विनी भी है।अश्विनी से सूर्य के सात संताने हुई ,जिनमें वैवस्वत, मनु,यम, यमुना, रेवत और अश्विनीकुमार द्वय । भगवान सूर्य की दूसरी पत्नी छाया से, शनि, भद्रा,विष्टि और सवर्णी मनु ,चार संताने हुई, इस प्रकार सूर्य की कुल दस संताने हुई। पौराणिक कथा है कि जब संज्ञा का विवाह सूर्य के साथ हुआ तब पहले तीन संताने हुई, मनु, यम और यमुना,इसके बाद जब संज्ञा सूर्य के तेज को सहने में असमर्थ हो गई तो अपनी ही रूपाकृति के वर्णवाली छाया को वहां रख कर अपने पिता के घर होती हुई उत्तर कुरु में जा कर छिप गई और अश्वा अर्थात घोड़ी का रूप धारण कर रहने लगी और शक्ति वृद्धि के लिए घोर तपस्या करने लगी। इधर सूर्य ने छाया को ही अपनी पत्नी माना और छाया से शनि ,तपती, भद्रा और सवर्णी मनु के रूप में चार संतामें हुई। छाया अपनी संतानों को प्यार करती थी लेकिन संज्ञा के संतानों को तिरस्कृत करती थी। तभी इसकी शिकायत यम ने अपने पिता से किया,फिर छाया सब बात सूर्य के डर से बोल दी। पुनः सूर्य संज्ञा को खोजते हुए उसके पास पहुंचे जो घोड़ी अर्थात अश्वा का रूप धारण किए हुए थी,जिनसे अश्विनी कुमार तथा रेवत नामक संतान हुए। अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं। भगवान सूर्य का वाहन साथ घोड़े का रथ है जिसके सारथी वरुण जी है जो भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी के छोड़े भाई हैं। भगवान सूर्य रक्त वर्ण ,इनकी जाति क्षत्रिय है ये कलिंग देश के राजा हैं।भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत घमंड था. शाम्ब ने एक बार ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया. इस अपमान से क्रोधित हुए ऋषि ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. जब भगवान कृष्ण को इस श्राप के बारे में पता चला तो उन्होंने दुर्वासा ऋषि से बहुत प्रार्थना की ,अपराध के लिए क्षमा मांगा,पर दुर्वासा ऋषि ने कहा कि अब जाओ शाकदीप और वहां के मग ब्राह्मण जो वैद्य है मिश्रक है उन्हें जम्बूदीप में ले आओ । अब एक मात्र शाकद्वीपीय ब्राह्मण ही आपके पुत्र शाम्ब को इस कुष्ठ रोगबसे मुक्ति प्रदान कर सकते हैं क्योंकि शाकद्वीपीय ब्राह्मण ही एक मात्र सूर्यांश हैं, सूर्य के उपासक हैं,और भगवान सूर्य ही इस कुष्ठ रोग से शाम्ब को मुक्त कर सकते हैं, साथ ही सूर्य की आराधना करने को कहा। पिता की बात मान शाम्ब ने सूर्य की आराधना की और शाकद्वीपीय मिश्रक शाम्ब का इलाज करने लगे, सूर्य देव की कृपा से कुष्ठ रोग से शाम्ब को मुक्ति मिल गई। अब वापस जम्बूदीप से शाकद्वीप जाने की बात हुई तो
फल फूल पत्र में दोष नाहीं नारियल एक लीजिए… कहते हुए
चुपके से रुक्मिणी ने दक्षिणा स्वरूप नारियल के अंदर हीरे -जवाहरात भरकर ब्राह्मण को दे दिया, तभी गरुड़ देव उन्हें शाकदीप ले जाने में असमर्थता दिखाई क्योंकि दक्षिणा लेने से उनका तेज धूमिल हो गया था। तभी भगवान कृष्ण ने उन्हें बहत्तर गांव निवास करने हेतु दे दिए। वही आज बहत्तर पुर के रूप में विख्यात है। आज भी बिहार के मुंगेर जिले में यदि सूर्यास्त हो गया हो तो किसी शाकद्वीपी ब्राह्मण को सूर्य का प्रतीक मानकर उन्हें अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
शाकद्वीपं च वक्ष्यामि यथावदिह पार्थिव
क्षीरोदो भरतश्रेष्ठ येन सम्परिवारितः
अचला सप्तमी का व्रत निरोगी शरीर ,सुख,सौभाग्य,पुत्र,ऋणमुक्त अचल संपत्ति के लिए किया जाता है।