
- नीतीश ने वक्फ बिल पर जेडीयू की आपत्तियां मनवाईं.
- तेजस्वी यादव ने नीतीश को अचेत साबित करने की कोशिश की.
- नीतीश ने मुस्लिम नेताओं से विपक्ष के आरोपों का जवाब दिलवाया.
बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बारे में उनके विरोधी कई तरह की बातें कहते हैं. नीतीश कुमार के साथ सरकार में डिप्टी सीएम रह चुके आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तो नीतीश कुमार को अचेत साबित करने का अभियान ही छेड़ दिया है. जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाते रहे हैं. पर, ऐसा कहने या सोचने वाले भूल जाते हैं कि जवानी में हल जोतने वाला बैल बुढ़ापे में हल जोतने की कला नहीं भूलता. भोजपुरी इलाके में यह कहावत भी प्रचलित है- बूढ़ बैल हराई ना भुलाना.
विपक्ष बताता रहा है अचेत
नीतीश को मानसिक रूप से बीमार बता कर सत्ता में उनकी विरासत का दावेदार बनने के लिए तेजस्वी की लार तब से टपकती रही है, जब दो बार नीतीश की कृपा से वे डिप्टी सीएम बन गए. नीतीश को बूढ़ा, बीमार और लाचार बताने का वे कोई मौका अब नहीं चूकते. विपक्षी नेताओं ने उनके हाव-भाव और बोलने के अंदाज को लेकर न सिर्फ सार्वजनिक बयान देना शुरू किया है, बल्कि सोशल मीडिया पर मीम्स की भरमार भी लगा दी है. इसमें आरजेडी के आईटी सेल के लोग आगे हैं.
आलोचना का अलग अंदाज
आरजेडी के एमएलसी सुनील कुमार सिंह तो नीतीश की तस्वीरों को लेकर घिबली आर्ट्स (Ghibli Arts) से बने स्केच सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं. खासकर वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के पास हो जाने के बाद नीतीश पर विपक्ष के हमले तेज हो गए हैं. वक्फ बिल पर जेडीयू के समर्थन से नीतीश को मुस्लिम विरोधी साबित करने का विपक्ष को अचूक मौका मिल गया है. उन्होंने घिबली आर्ट्स का एक स्केच डालते हुए लिखा है- ‘जितना बड़ा शुभचिंतक ये मेरे हैं, उससे भी बड़ा शुभचिंतक मैं भी इनका हूँ. लेकिन ग़ौरतलब हो कि वक्फ़ बिल संशोधन विधेयक पर इनकी डुबती हुई पार्टी का असली चेहरा उज़ागर हो गया है और इन्होंने बता दिया कि मेरे पेट में ही नहीं, बल्कि मेरे पीठ पर भी दांत है. मानसिक रूप से बीमार चल रहे इस बेचारे व्यक्ति..’ उन्होंने नीतीश का नाम तो नहीं लिखा है, लेकिन तस्वीर से स्पष्ट है कि वे नीतीश कुमार के बारे में कह रहे हैं. सुनील कुमार सिंह सिंह वहीं एमएलसी हैं, जिन्हें नीतीश पर आपत्तिजनक टिप्पणी का दोषी माना गया था. उनकी विधान परिषद की सदस्यता भी रद्द हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दोबारा बहाल हुई है.

बिहार की सियासत में भी घिबली ट्रेंड करने लगा है.
मुस्लिम नेताओं ने मोर्चा संभाला
पर, क्या सच में ऐसा है, जैसा नीतीश के बारे में विपक्ष बता रहा है? वक्फ के मुद्दे पर नीतीश नहीं बोल रहे. इससे जाहिर है कि विपक्ष का साहस बढ़ा होगा. जेडीयू के कुछ छोटे नेताओं ने शायद इसी वजह से नीतीश को गुनहगार मान लिया और आनन-फानन इस्तीफे सौंप दिए. अब नीतीश के लिए आवश्यक हो गया था कि वे कुछ करें. शनिवार को जेडीयू के कुछ बड़े मुस्लिम नेताओं को उन्होंने मैदान में उतार दिया.
सफाई, आरोप और दावा
मुस्लिम कम्युनिटी के जो जेडीयू नेता वक्फ संशोधन को लेकर आसमान सिर पर उठाए हुए थे, उन्हें इन लोगों ने जवाब दे दिय. उन्होंने साफ कर दिया कि जेडीयू ने क्यों बिल का समर्थन किया. इसके साथ ही जोरदार ढंग से यह स्थापित किया नीतीश कैसे मुसलमानों के हितैषी हैं. उनका आरोप था कि विपक्ष बेवजह नीतीश को मुस्लिम विरोधी बता रहा है. दावा भी किया कि जिन लोगों ने जेडीयू छोड़ी है, पार्टी में उनकी कोई औकात ही नहीं. बिहार के मुसलमान पूरी ताकत के साथ नीतीश कुमार और जेडीयू के साथ खड़े हैं. उन्होंने सफाई भी दी कि जेडीयू ने बिल का समर्थन क्यों किया.
चुप रहे, पर एक्शन से नहीं चूके
राष्ट्रीय स्तर के इस महत्वपूर्ण मुद्दे के समर्थन या विरोध में नीतीश की चुप्पी को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी. वैसे संवेदनशील मुद्दों पर जल्दी न बोलने की उनकी आदत भी रही है. जहरीली शराब से मौतें हों या मिड डे मील से स्कूली बच्चों की मौत का मामला, वे तब तक चुप रहे, जब तक जांच का परिणाम सामने नहीं आया. हां, वे एक्शन से पीछे नहीं हटे. गोपालगंज जहरीली शराब मामले और सारण मिड डे मील मामले में सजा भी हो चुकी है.
नीतीश की चाल विपक्ष पर भारी
खैर, बड़ी चालाकी से नीतीश ने वक्फ मुद्दे पर बड़ी सहयोगी भाजपा से संबंधों को भी बनाए रखा और अपनी सारी आपत्तियां भी मनवा लीं. जेडीयू के बड़े मुस्लिम नेताओं ने शनिवार को वक्फ के मुद्दे पर विपक्ष के प्रहारों का जबरदस्त प्रतिकार किया. मीडिया के सामने उन नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वक्फ बिल पर जेडीयू के समर्थन की वजहें क्या रहीं. जेडीयू ने पांच आपत्तियां इस मुद्दे पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को दर्ज कराईं, उसे बिल में शामिल कर लिया गया. इसके बाद बिल के विरोध का कोई औचित्य ही नहीं रह गया था.
तेजस्वी भी ताकत से जुटे हैं
तेजस्वी यादव अब भी इस मुद्दे से फायदे की उम्मीद पाले हुए हैं. उन्होंने आह्वान किया है – “सरकार बनाकर इस कानून को कूड़ेदान में फेंक देना है.” ऐसा पहले आरजेडी ने किया है, उसकी याद भी दिलाते हैं. कहते हैं कि एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर भी राजद ने विधानसभा में प्रस्ताव लाकर विरोध दर्ज कराया था. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके लिए बूढ़े अचेत नीतीश उनको छकाते है या तेजस्वी उन पर भारी पड़ते हैं. यह संशय इसलिए कि एक सर्वे में बिहार के 41 प्रतिशत लोगों ने तेजस्वी को अपना सीएम पसंद बताया है, जबकि 18 प्रतिशत ही नीतीश को सीएम की पसंद मानते हैं
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