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नरवाई जलाने पर जुर्माना लगाने के निर्देश कलेक्टर ने दिए

सागर । वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी।। जिले में गेहूं कटाई के बाद खेतों में नरवाई (फसल अवशेष) जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिससे पर्यावरण, पशुधन और खेत की उर्वरता पर गंभीर असर पड़ रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए जिला प्रशासन ने सख्त कदम उठाया है।कलेक्टर संदीप जी.आर. ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत आदेश जारी करते हुए संपूर्ण जिले में नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि इस तरह की घटनाएं न सिर्फ किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि पर्यावरण, पशुओं और समाज के लिए भी खतरनाक साबित होती हैं।उप संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास, जिला सागर द्वारा मेरे संज्ञान में लाया गया है कि, वर्तमान में गेहूं की फसल कटाई अधिकांशतः कम्बाईन्ड हार्वेस्टर द्वारा की जाती है। कम्बाईन्ड हार्वेस्टर से कटाई उपरांत फसल की नरवाई में आग लगाने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के द्वारा नरवाई में आग लगाने की घटनाओं की सेटेलाइट मैपिंग की जा रही है। राष्ट्रीय फसल अवशेष प्रबंधन नीति 2014 के अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन हेतु जिला स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन समिति का गठन किया गया है।
कटाई उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बनाकर जला देते हैं। फसल अवशेष भूसे का उपयोग पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में किया जा सकता है। एकत्रित किया गया भूसा अन्य उ‌द्योगों में उपयोग किया जाता है। भूसे एवं पैरा की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है। एकत्रित भूसा 08-10 रूपये प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है। पर्याप्त मात्रा में भूसा / अवशेष उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे कागज, पालिथीन आदि खाते हैं, जिससे वे बीमार हो जाते हैं तथा अनेक बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है तथा कृषकों को यही भूसा बढ़ी हुई दरों पर क्रय करना पड़ता है। नरवाई एवं अवशेष में आग लगाना कृषि के लिये नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। इसके कारण विगत वर्षों में गंभीर स्वरूप की अग्नि दुर्घनाएं घटित हुई हैं तथा व्यापक संपति की हानि हुई है। ग्रीष्म ऋतु में बढ़ते जल संकट में इससे बढ़ोत्तरी तो होती ही है, साथ ही कानून व्यवस्था के लिये विपरीत परिस्थितियां निर्मित होती हैं।नरवाई एवं अवशेष जलाने से प्रथम दृष्टया निम्नलिखित नुकसान होने से जनहित में इस पर रोक लगाई जाना आवश्यक प्रतीत होता है।खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जन, धन, संपति, प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे व्यापक नुकसान होता है।खेत की मिटटी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु इससे नष्ट होते हैं। जिससे खेत की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है।खेत में पड़ा कचड़ा भूसा डंठल सड़ने के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाउ बनाते हैं। जिन्हें जलाकर नष्ट करना उर्जा को नष्ट करना है।आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।उपरोक्त परिस्थितियों में जन सामान्य के हित सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा पर्यावरण की हानि रोकने एवं लोक व्यवस्था बनाये रखने हेतु कलेक्टर ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत जिले की सीमा में गेहूं एवं अन्य फसलों के डंठलों (नरवाई) में आग लगाये जाने पर प्रतिबंध है।फसलों की कटाई में उपयोग किये जाने वाले प्रत्येक कम्बाईन्ड हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने हेतु स्ट्रा, रीपर अनिवार्य रूप से रखा जाये या कम्बाईन्ड हार्वेस्टर में स्ट्रा मेनेजमेंट सिस्टम लगाना अनिवार्य होगा।जिले में चलने वाले कम्बाईन्ड हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा रीपर/स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम की सतत निगरानी जिला परिवहन अधिकारी एवं सहायक कृषि अभियांत्रिकी द्वारा की जावेगी। साथ ही बिना स्ट्रा रीपर/स्ट्रा मेनेजमेंट सिस्टम के कम्बाईन्ड हार्वेस्टर चलाये जाने पर वैधानिक कार्यवाही करेंगे।पर्यावरण विभाग द्वारा नरवाई में आग लगाने की घटनाओं को प्रतिबंधित कर दण्ड अधिरोपित करने का प्रावधान किया गया है। नोटिफिकेशन से पर्यावरण सुरक्षा हेतु माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश क्रम में एयर प्रिवेंशन & कंट्रोल ऑफ़ पॉल्युशन एक्ट 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों विशेषतः धान एवं गेहूं की फसल कटाई उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाये जाने हेतु प्रतिबंधित किया गया है, जिसे तत्काल प्रभाव से संपूर्ण मध्यप्रदेश में लागू किये जाने के निर्देश का उल्लंघन किये जाने पर व्यक्त/निकाय को नोटिफिकेशन के प्रावधान अनुसार पर्यावरण क्षति पूर्ति राशि देय होगी।
कृषक जिनके पास 02 एकड़ से कम जमीन है, उन्हें 2500/- रु. प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा।कृषक जिनके पास 02 एकड़ से अधिक एवं 05 एकड़ से कम जमीन है, उन्हें 5000/- रु. प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा।कृषक जिनके पास 05 एकड़ से अधिक जमीन है उन्हें 15000/- रु. प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा।उपरोक्त आदेश में उल्लेखित शर्तों का जिले में परिपालन सुनिश्चित करने हेतु उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास जिला सागर नोडल अधिकारी होंगे। आदेश में उल्लेखित किसी भी शर्त का उल्लंघन होने की स्थिति निर्मित होने पर संबंधित कृषि विस्तार अधिकारी क्षेत्र के पटवारी के साथ संयुक्त जांच कर प्रतिवेदन संबंधित तहसीलदार को प्रस्तुत करेंगे, तहसीलदार संबंधित अपचारी कृषकों को युक्तियुक्त अवसर प्रदान कर एवं सुनवाई कर 15 दिवस के अंदर शास्ति अधिरोपित से संबंधित समुचित निर्णय लेंगे।

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