
अप्रतिम शिक्षा व समाज सुधारक थे स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर सत्यनारायण सिंह
118 वीं जयंती पर विशेष
संवाददाता पंकज कुमार शुक्ला बहराइच
बहराइच। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,शिक्षाविद,समाज सुधारक ठाकुर सत्यनारायण सिंह का जन्म 1 मई 1907 को कैसरगंज तहसील मुख्यालय के निकट स्थित ग्राम गुथिया में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। अपने जीवन काल में चलने वाले आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था चाहे वह स्वतंत्रता संघर्ष हो या आर्य समाज का सुधार आंदोलन, लोकतंत्र का महापर्व पहला संसदीय चुनाव,विनोबा भावे द्वारा चलाया गया भूदान आंदोलन। 1957 का पंजाब में हिंदी रक्षा आंदोलन तथा जनपद की शिक्षा के उन्नयन के लिए शिक्षण संस्थाओं की स्थापना। स्वतंत्रता का लक्ष्य पूरा होने के बाद उन्होंने आर्यसमाज,भूदान आंदोलन, शिक्षा और हिंदी रक्षा आंदोलन में जनपद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने फखरपुर और कैसरगंज में उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की।1952 में आचार्य विनोबा भावे के साथ भूदान आंदोलन में शामिल होकर कोलैला घाट से श्रावस्ती तक पदयात्रा की। 1952 में ही लोकसभा क्षेत्र बहराइच पश्चिम से चुनाव चिन्ह दीपक से संसदीय चुनाव भी लड़े। 1957 में हिंदी रक्षा आंदोलन में उनकी राष्ट्रीय भूमिका जनपद के लिए गर्व का विषय है।राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति राजनीतिक कारणों से कई बार असम्मान का भाव प्रकट होता रहा है। 1957 में पंजाब की तत्कालीन प्रताप सिंह कैरो की सरकार ने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति भेदभाव का रुख अपनाया था। इसकी प्रतिक्रिया में पंजाब व दिल्ली में एक बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया जिसे हिंदी रक्षा आंदोलन के नाम से प्रसिद्धि मिली।इसी आंदोलन में बहराइच के सत्याग्रहियों के दल का नेतृत्व करते हुए ठाकुर सत्यनारायण सिंह चंडीगढ़ पहुंचे।वहां उनको सर्वाधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया।बाद में वे गिरफ्तार होकर विचाराधीन कैदी के रूप में जालंधर जेल में तीन माह 13 दिन रहे। सत्याग्रहियों की व्यवस्थापिका सभा के प्रधान चुने गए।उनकी निष्ठा और कर्मठता से प्रभावित होकर देश के कोने-कोने से आए हुए सत्याग्रहियों ने उन्हें विशाल मानपत्र देकर 14 दिसंबर 1957 को सम्मानित किया। इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप हिंदी को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने हरियाणा राज्य का उदय किया। ठाकुर सत्यनारायण सिंह 27 नवंबर 1963 तक मृत्यु पर्यंत देश निर्माण के कार्य में संघर्षशील रहते हुए संलग्न रहे स्वतंत्रता
अप्रतिम शिक्षा व समाज सुधारक थे स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर सत्यनारायण सिंह
118 वीं जयंती पर विशेष
बहराइच। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,शिक्षाविद,समाज सुधारक ठाकुर सत्यनारायण सिंह का जन्म 1 मई 1907 को कैसरगंज तहसील मुख्यालय के निकट स्थित ग्राम गुथिया में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। अपने जीवन काल में चलने वाले आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था चाहे वह स्वतंत्रता संघर्ष हो या आर्य समाज का सुधार आंदोलन, लोकतंत्र का महापर्व पहला संसदीय चुनाव,विनोबा भावे द्वारा चलाया गया भूदान आंदोलन। 1957 का पंजाब में हिंदी रक्षा आंदोलन तथा जनपद की शिक्षा के उन्नयन के लिए शिक्षण संस्थाओं की स्थापना। स्वतंत्रता का लक्ष्य पूरा होने के बाद उन्होंने आर्यसमाज,भूदान आंदोलन, शिक्षा और हिंदी रक्षा आंदोलन में जनपद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने फखरपुर और कैसरगंज में उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की।1952 में आचार्य विनोबा भावे के साथ भूदान आंदोलन में शामिल होकर कोलैला घाट से श्रावस्ती तक पदयात्रा की। 1952 में ही लोकसभा क्षेत्र बहराइच पश्चिम से चुनाव चिन्ह दीपक से संसदीय चुनाव भी लड़े। 1957 में हिंदी रक्षा आंदोलन में उनकी राष्ट्रीय भूमिका जनपद के लिए गर्व का विषय है।राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति राजनीतिक कारणों से कई बार असम्मान का भाव प्रकट होता रहा है। 1957 में पंजाब की तत्कालीन प्रताप सिंह कैरो की सरकार ने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति भेदभाव का रुख अपनाया था। इसकी प्रतिक्रिया में पंजाब व दिल्ली में एक बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया जिसे हिंदी रक्षा आंदोलन के नाम से प्रसिद्धि मिली।इसी आंदोलन में बहराइच के सत्याग्रहियों के दल का नेतृत्व करते हुए ठाकुर सत्यनारायण सिंह चंडीगढ़ पहुंचे।वहां उनको सर्वाधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया।बाद में वे गिरफ्तार होकर विचाराधीन कैदी के रूप में जालंधर जेल में तीन माह 13 दिन रहे। सत्याग्रहियों की व्यवस्थापिका सभा के प्रधान चुने गए।उनकी निष्ठा और कर्मठता से प्रभावित होकर देश के कोने-कोने से आए हुए सत्याग्रहियों ने उन्हें विशाल मानपत्र देकर 14 दिसंबर 1957 को सम्मानित किया। इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप हिंदी को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने हरियाणा राज्य का उदय किया। ठाकुर सत्यनारायण सिंह 27 नवंबर 1963 तक मृत्यु पर्यंत देश निर्माण के कार्य में संघर्षशील रहते हुए संलग्न रहे।