
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी। लोकमाता देवी अहिल्याबाई ने शिक्षा और समाज सुधार में अतुलनीय योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया, महिलाओं को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया, और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया । शिक्षण को बढ़ावा देने हेतु उन्होने अपने राज्य में विद्यालयों की स्थापना की व बालिका शिक्षा पर विशेष जोर दिया । लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जी द्वारा महिलाओं को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहन से महिलाओं ने शिक्षा प्राप्त की जिस कारण से समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ । लोकमाता देवी अहिल्याबाई का शिक्षा और समाज सुधार में अतुलनीय योगदान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परिलक्षित है। यह नीति उनके योगदान को मानती है, जो शिक्षा, न्याय, धार्मिक समरसता, और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उनके कार्य के लिए जाना जाता है. अहिल्याबाई ने शिक्षा को बढ़ावा दिया, न्याय-व्यवस्था को सुधारा, और समाज में धार्मिक समरसता स्थापित की । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उनके योगदान को शामिल करने से, भारत की शिक्षा प्रणाली उनके मूल्यों और आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित होगी । हमें यह भी ज्ञात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में महिला और बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है, साथ ही समाज सुधार के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। यह नीति महिलाओं और बालिकाओं की शिक्षा में भागीदारी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाती है, जैसे कि लिंग समावेशी कोष की स्थापना, विद्यालयी आधारभूत संरचना में सुधार, और विशेष रूप से बालिकाओं के लिए अधिक सुरक्षित और समावेशी शिक्षण वातावरण प्रदान करना । इस प्रकार कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में कई प्रावधान देवी अहिल्याबाई होलकर जी से प्रेरित होकर ही समावेशित किए गय हैं । यह विचार डॉ. वाय. पी. सिंह, प्राचार्य, शास. पॉलीटेक्निक महाविद्यालय, सागर ने लोकमाता देवी अहिल्याबाई जी का त्रिशताब्दी समारोह के उपलक्ष में शिक्षा और समाज सुधार में अहिलाया बाई का योगदान तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विषय पर परिचर्चा के दौरान व्यक्त किए । म. प्र. शासन के निर्देशानुसार सहोद्रा राय शासकीय पॉलीटेक्निक महाविद्यालय, सागर में इस विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई । डॉ सिंह ने यह भी लेख किया कि लोकमाता देवी अहिल्या बाई होलकर ने कौशल आधारित शिक्षा पर भी योगदान दिया। महेश्वरी साड़ियों का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है। होल्कर वंश की महान् शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर में सन 1767 में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था। गुजरात एवं भारत के अन्य शहरों से बुनकरों के परिवारों को उन्होंने यहाँ लाकर बसाया तथा उन्हें घर, व्यापार आदि की सुविधाएँ प्रदान कीं। पहले केवल सूती साड़ियाँ ही बनाई जाती थीं, परन्तु बाद के समय में सुधार आता गया तथा उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी तथा सोने व चांदी के धागों से बनी साड़ियाँ भी बनाई जाने लगीं। इन बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए देवी अहिल्याबाई इनके द्वारा निर्मित वस्त्रों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं ख़रीद लेती थीं, जिससे इन बुनकरों को लगातार रोजगार मिलता रहता था। इस तरह ख़रीदे वस्त्र महारानी अहिल्याबाई स्वयं के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए तथा दूर-दूर से उन्हें मिलने आने वाले मेहमानों तथा आगंतुकों को भेंट देने में उपयोग करती थीं। इस तरह से कुछ ही वर्षों में महेश्वर में निर्मित इन वस्त्रों, ख़ासकर महेश्वरी साड़ियों की ख्याति पुरे भारत में फैलने लगी, तथा अब महेश्वरी साड़ी अपने नाम से बहुत दूर-दूर तक मशहूर हो गई। इस अवसर पर कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमति रेखा अहिरवार ने कहा कि लोकमाता के जीवन की अनेक घटनाएं बताती हैं यदि साधन भले की सीमित हो परन्तु यदि ध्येय पवित्र है तो स्वाभिमान के साथ स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए लोक हितैषी शासन चलाया जा सकता है। एक समरस, सुसम्पन्न, सुसंस्कृत राष्ट्र जीवन खड़ा किया जा सकता है। समज में यदि प्रत्येक वर्ग का ध्यान रखा जावेगा यतो समाज का विकास होगा तथा समाज के विकास से ही राष्ट्र का विकास होगा । इस प्रकार कहा जा सकता है कि देवी अहिल्याबाई होलकर जी ने स्वयं को उत्कृष्ट शासक, समाज सुधारक और महिला सशक्तिकरण की समर्थक के रूप में प्रतिस्थापित किया । उनका नेतृत्व हमेशा ही प्रेरणादायक रहा है और उनके द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णयों का महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस परिचर्चा में महाविद्यालय परिवार के सभी सदस्य, छात्र-छात्राओं नें भाग लिया व लोकमाता के जीवन के तत्व अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।