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नई दिल्ली:-साल 2025 के दिल्ली चुनाव के दौरान यमुना नदी की गंदगी और इसका प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था. वहीं पिछली AAP सरकार की ‘जहरीली यमुना’ वाली सियासत ने इस मुद्दे को और शीर्ष पर पहुंचा दिया. चुनाव जीतने के बाद बीजेपी से रेखा गुप्ता सीएम बनी हैं और शपथ लेने के तुरंत बाद वह यमुना की सफाई को लेकर एक्शन में आ गई हैं. सीएम गुरुवार शाम को यमुना बाजार के वासुदेव घाट पर पहुंची और यहां उन्होंने यमुना आरती की. इस दौरान दिल्ली सरकार के नए मंत्री भी शामिल रहे. कुल मिलाकर जो सिनेरियो बन रहा है, वह ऐसा है कि बीजेपी यमुना की सफाई को प्रमुखता से महत्व दे रही है और इसके लिए नए सिरे से यमुना सफाई के एक्शन प्लान का आगाज करने वाली है.
1977 में CPCB की स्थापना, केमिकल टेस्ट में सामने आया था भारी प्रदूषण
हालांकि यमुना नदी में प्रदूषण के इतिहास के साथ ही उसकी सफाई के लिए बनने वाले एक्शन प्लान का भी लंबा इतिहास रहा है. यमुना की गंदगी साफ करने के पहले भी प्रयास तो कई हुए हैं, सरकारी धन की भी बड़ी राशि खर्च हुई है, लेकिन किसी भी प्रयास का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है. इसकी शुरुआत करें तो साल 1977 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना होने के बाद से ही यमुना के पानी की जांच, केमिकल टेस्ट वगैरह हो रहे हैं और यह बात पब्लिक डोमेन में आ गई थी कि यमुना औद्योगिक कचरों के साथ-साथ मानव मल-मूत्र से भी दूषित है.
1993 में बना था यमुना एक्शन प्लान
यमुना नदी की दशा सुधारने के लिए 1993 में यमुना एक्शन प्लान बनाया गया. इस योजना के तहत 25 वर्षो के दौरान 1514 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं. बात अगर दिल्ली सरकार की करें तो यमुना की सफाई के लिए 2018 से 2021 के बीच करीब 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है, जिसका कोई जोड़ नहीं है, लेकिन नदी की हालत कितनी सुधरी? ये सवाल सरकारी तंत्र और उसकी ‘ईमानदार’ कोशिश की सच्चाई की चुगली करता है.
यमुना की सफाई के लिए क्या कोशिशें हुईं, एक नजर में पूरा ब्यौरा
1. यमुना एक्शन प्लान को अप्रैल 1993 में शुरू किया गया. इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 21 शहर शामिल थे. वर्ष 2002 तक इसमें कुल खर्च 682 करोड़ रुपये.
2. यमुना एक्शन प्लान (2) – वर्ष 2012 में शुरू कुल खर्च 1,514.70 करोड़ रुपये.
3. यमुना एक्शन प्लान चरण (3) – अनुमानित खर्च 1,656 करोड़ रुपये. इस चरण में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ट्रंक सीवर को नए सिरे से बनाने के साथ, इन्हें और उन्नत बनाने का काम शामिल है.
4. वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अंतर्गत 1,000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे.
5. आम आदमी पार्टी की सरकार ने वर्ष 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया.
6. जल शक्ति मंत्रालय ने 11 परियोजनाओं के लिए 2361.08 करोड़ रुपये दिए.
7. यमुना नदी के कायाकल्प के लिए एनजीटी की ओर से जनवरी, 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में हाई लेवल कमेटी गठित की गई थी. नजफगढ़ ड्रेन सहित यमुना के कुछ क्षेत्र की सफाई अभियान शुरू किया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली के मुख्य सचिव को समिति का अध्यक्ष बनाया गया.
1970 के दशक में औद्योगीकरण के साथ बढ़ने लगा प्रदूषण
1980 के दशक में जब दिल्ली का औद्योगीकरण हुआ और इसके बाद जनसंख्या तेजी से बढ़ी, तब यमुना में प्रदूषण गंभीर रूप से बढ़ने लगा. 1993 में सरकार ने यमुना एक्शन प्लान (YAP) लॉन्च किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नदी की स्थिति चिंताजनक हो चुकी थी. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से देखें तो 1950-60 के दशक तक में भी यमुना का पानी दिल्ली में पीने योग्य माना जाता था, लेकिन 1970 के दशक में औद्योगीकरण, शहरीकरण और सीवेज के अंधाधुंध बहाव के कारण पहली बार इसके जल की गुणवत्ता का स्तर खतरनाक रूप से गिरने लगा.
नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा प्रदूषण कारक
यमुना में बढ़ते प्रदूषण को लेकर साल 1986 में चार शोधकर्ताओं ने जांच के आधार पर रिसर्च पेपर जारी किया था. एचसी अग्रवाल, पीके मित्तल, केबी मेनन और एमके पिल्लई के इस रिसर्च पेपर में ये सामने आया था कि, 1978 में जब दिल्ली में यमुना नदी के चार विभिन्न स्थलों से पानी के सैंपल लिए गए थे, तब इसमें DDT की भारी मात्रा पाई गई थी. सबसे अधिक कुल डीडीटी सांद्रता वजीराबाद के डाउनस्ट्रीम स्थल पर पाई गई थी, जहां नदी के जल में नजफगढ़ का नाला आकर मिलता था. इस नाले में एक डीडीटी फैक्ट्री सहित अन्य उद्योगों के अपशिष्ट भी मिलते थे.
DDT का यमुना जल में घुलना और मछलियों की मौत
डी.डी.टी. (DDT) यानी डाइक्लोरो-डाइफिनाइल-ट्राइक्लोरोएथेन एक रासायनिक कीटनाशक (pesticide) है, जिसे 1940 के दशक में कीड़ों को मारने के लिए विकसित किया गया था. इसे मुख्य रूप से मलेरिया और टाइफस जैसी बीमारियों को फैलाने वाले मच्छरों और अन्य कीटों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
इसी तरह, साल 2010 में एक और शोधार्थी अनिल कुमार मिश्रा ने भी इसी विषय पर रिसर्च पेपर लिखा था. ‘A River about to Die: Yamuna’ शीर्षक से प्रकाशित इस रिसर्च पेपर में दिल्ली में यमुना के बिगड़े हाल को विषय बनाया गया था. रिसर्च पेपर में यमुना के प्रदूषण का भयावह जिक्र था और ये सामने आया था कि नदी का प्रदूषण अब अपने जल में रहने वाली मछलियों के लिए ही खतरा बन रहा है.
इस रिसर्च पेपर में साल 2002 की उस बड़ी घटना का जिक्र है, जिसने यमुना में प्रदूषण की समस्या को उभार कर सामने रखा था और ये भी बयां किया कि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है. रिपोर्ट में लिखा है ‘यमुना में प्रदूषण का स्तर 13 जून 2002 की घटना से समझा जा सकता है, जब सिकंदरा (ताजमहल क्षेत्र) में हजारों मरी हुई मछलियां पाई गईं. इसके बाद बटेश्वर (आगरा से 78 किमी दूर) तक कई इलाकों से इसी तरह की घटनाओं की खबरें आईं.
वजीराबाद से ओखला तक… 22 किमी की दूरी में 76 फीसदी प्रदूषण
हालत यह है कि दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी का 22 किमी का हिस्सा (जो इस नदी की लंबाई का दो प्रतिशत से भी कम है) सबसे ज्यादा प्रदूषित है और नदी के कुल प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान इस क्षेत्र का है. हर दिन राजधानी के 18 बड़े नालों के जरिये 350 लाख लीटर से अधिक गंदा पानी और अनट्रीटेड सीवेज सीधे यमुना में बहाया जाता है. इस गंदे पानी में फास्फेट और एसिड भी होता है जिससे पानी में जहरीला झाग बनता है जो एक गंभीर चिंता का विषय है.