
लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी, एक ऐसा शहर है जो अपनी विरासत और संस्कृति के लिए जाना जाता है। लेकिन, हाल के वर्षों में, यहां की विकास प्रक्रिया ने एक असमानता का चेहरा उजागर किया है। सवाल यह उठता है कि क्या केवल उन कॉलोनियों में ही विकास हो सकता है जहां नेता या बड़े अधिकारी रहते हैं?
विशेष कॉलोनियों का विकास
लखनऊ में कई ऐसी कॉलोनियाँ हैं जहाँ नेता, मंत्री, और उच्च अधिकारी निवास करते हैं। इन क्षेत्रों में विकास कार्य तेजी से होते हैं। सड़कों की मरम्मत, जल निकासी की व्यवस्था, स्वच्छता, पार्कों का निर्माण, और अन्य बुनियादी सुविधाएं यहां प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई जाती हैं। यह देखकर आम नागरिकों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या विकास का अधिकार केवल विशिष्ट वर्गों तक सीमित है?
उपेक्षित कॉलोनियाँ
इसके विपरीत, शहर की कई कॉलोनियाँ ऐसी भी हैं जहाँ बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। हरिओम नगर जैसी फ्री होल्ड कॉलोनियाँ, जो सरोजिनी नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं, अभी भी विकास की उम्मीद में हैं। इन क्षेत्रों में न तो सड़कों की सही व्यवस्था है, न ही जल निकासी का उचित प्रबंध। बिजली और पानी की समस्याएँ यहाँ आम हैं। स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की भी भारी कमी है।
असमान विकास की समस्या
इस असमान विकास ने शहर के निवासियों में एक प्रकार की नाराजगी और असंतोष पैदा कर दिया है। आम जनता महसूस करती है कि सरकार और प्रशासन केवल उन्हीं क्षेत्रों पर ध्यान देते हैं जहाँ उच्च पदों पर बैठे लोग रहते हैं। इस स्थिति ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को और बढ़ावा दिया है।
सरकार से अपेक्षाएँ
लखनऊ के निवासी चाहते हैं कि विकास की प्रक्रिया समान रूप से सभी क्षेत्रों में हो। सरकार को चाहिए कि वह केवल विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित न करे, बल्कि हर कॉलोनी और मोहल्ले को विकास की मुख्यधारा में शामिल करे। सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए, चाहे वे किसी भी क्षेत्र में रहते
निष्कर्ष
लखनऊ का हाल यह बता रहा है कि विकास की प्रक्रिया में असमानता है। यह समय है कि सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान दें और सुनिश्चित करें कि विकास की रोशनी हर गली, हर मोहल्ले तक पहुंचे, ताकि सभी नागरिक एक समान और सम्मानजनक जीवन जी सकें।