
जबलपुर, मध्य प्रदेश: संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर में एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल मानवता को शर्मसार कर दिया बल्कि समाज के संवेदनहीन चेहरे को भी उजागर किया। रांझी इलाके में दिव्यांग महिला शारदा शेट्ठी और उनके छोटे-छोटे बच्चों को तहसीलदार और पुलिस ने घर से जबरन बाहर निकाल दिया।
दर्दनाक घटना का सिलसिला
शारदा शेट्ठी, जो शारीरिक रूप से विकलांग हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण दूसरों के घरों में काम करके करती हैं, अपने रोज़मर्रा के कार्यों में व्यस्त थीं। तभी तहसीलदार और पुलिसकर्मी उनके घर पहुंचे। घर पर केवल शारदा के मासूम बच्चे मौजूद थे, जो खाना खा रहे थे। अधिकारियों ने बच्चों को न केवल खाने से रोका, बल्कि उन्हें धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया।
बच्चों के अनुसार, “हमें धक्का देकर बाहर कर दिया गया, हमारी थाली तक फेंक दी गई। उसके बाद घर के अंदर घुसकर हमारे कपड़े फाड़ दिए गए, पलंग तोड़ दिया गया और सारा सामान बाहर फेंक दिया।”
फर्जी मुकदमे और दबाव की राजनीति
घटना के पीछे शारदा शेट्ठी की मौसी पूर्णिमा सेठी का नाम सामने आ रहा है, जो कथित रूप से मकान पर कब्जा करने के लिए फर्जी सीनियर सिटिजन एक्ट का सहारा लेकर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के पास मामला दर्ज करवा चुकी थीं। बिना दोनों पक्षों की सुनवाई किए, मकान खाली करने का आदेश पारित कर दिया गया।
हालांकि, शारदा ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। इसके बावजूद, तहसीलदार और पुलिस ने इस अपील को नजरअंदाज करते हुए बिना पूर्व सूचना या वैध प्रक्रिया के, शारदा के घर में घुसकर तोड़फोड़ और अत्याचार किया।
दर्द से भरा एक मां का बयान
शारदा शेट्ठी का कहना है, “उन्होंने मेरे पैसे और गहने भी छीन लिए। मेरे बच्चों को ठंड में रात 2 बजे घर के बाहर रहने पर मजबूर किया। अगर हमें कुछ भी होता है तो इसके जिम्मेदार तहसीलदार और पुलिस होंगे।”
छोटे बच्चों पर अत्याचार, समाज ने उठाई आवाज
इस हृदयविदारक घटना की जानकारी मिलने पर कई सामाजिक संगठन और मानवाधिकार कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री, मानवाधिकार आयोग और महिला एवं बाल विकास आयोग को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है।
सवाल जो न्याय की मांग करते हैं:
- मकान खाली कराने से पहले कोई नोटिस क्यों नहीं दिया गया?
- आदेश का पालन करने में उच्च न्यायालय की अपील को क्यों अनदेखा किया गया?
- मकान पर फर्जी सील और सफेद कागज पर हस्ताक्षर क्यों करवाए गए?
- छोटे बच्चों और एक दिव्यांग महिला के साथ अमानवीय व्यवहार क्यों किया गया?
- सरकार की ‘लाडली बहना’ योजना के बावजूद ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं?
जनता के सेवक या मानवता के भक्षक?
यह घटना दिखाती है कि प्रशासनिक तंत्र, जो जनता का सेवक होने का दावा करता है, किस तरह भक्षक की भूमिका निभा रहा है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री गरीब महिलाओं को सुरक्षा और आवास देने की योजनाएं चला रहे हैं, वहीं उनके ही अधीनस्थ अधिकारी गरीबों को बेघर कर रहे हैं।
न्याय की उम्मीद:
जबलपुर के कलेक्टर और प्रदेश के मुख्यमंत्री से अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या वे इस घटना पर कार्रवाई करेंगे? क्या दोषियों को दंडित किया जाएगा और क्या शारदा शेट्ठी और उनके बच्चों को न्याय मिलेगा?
यह घटना मानवता के लिए एक बड़ा धब्बा है। अब देखना यह है कि प्रशासन और न्यायपालिका कितनी तत्परता और संवेदनशीलता के साथ इस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाती है।
समाज और न्यायपालिका से अपील:
हर नागरिक को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं फिर न हों। यह समय है जब मानवता और संवेदनशीलता के साथ सही कदम उठाए जाएं।