
प्रयागराज में मसूद ग़ाज़ी की दरगाह पर फहराया गया भगवा झंडा, क्या है पूरा मामला?
इमेज स्रोत,Kasifuddin
- Author,सैयद मोज़िज इमाम
- पदनाम,बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सिकंदरा स्थित सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की दरगाह पर महाराजा सुहेलदेव सुरक्षा सम्मान मंच के कार्यकर्ताओं ने रामनवमी के दिन भगवा झंडा फहरा दिया.
इसके बाद से वहाँ तनाव का माहौल है, हालाँकि पुलिस का कहना है कि स्थिति शांतिपूर्ण है.
इस घटना के बाद प्रयागराज में गंगानगर के डीसीपी कुलदीप सिंह गुनावत ने बताया, “सिकंदरा स्थित इस दरगाह में पाँच मज़ारें हैं, जहाँ पर दोनों धर्मों के लोग जाते हैं. यहाँ कुछ युवकों ने धार्मिक झंडा लहराकर नारेबाज़ी की. इनको मौक़े पर मौजूद पुलिस ने रोका. इस घटना की जाँच की जा रही है.”
इस मामले में महाराजा सुहेलदेव सम्मान सुरक्षा मंच के अध्यक्ष मनेंद्र प्रताप सिंह को हिरासत में लिया गया है.

क्या था मामला?
रविवार को महाराजा सुहेलदेव सम्मान सुरक्षा मंच के अध्यक्ष मनेंद्र प्रताप सिंह की अगुवाई में भगवा झंडा लेकर क़रीब दो दर्जन से ज़्यादा बाइक सवार कार्यकर्ता दरगाह पर पहुँचे और नारेबाज़ी की.
कुछ कार्यकर्ता दरगाह के गेट के ऊपर चढ़ गए, जिन्हें बाद में पुलिस ने हटाया.
इस घटना की ख़बर के बाद एसीपी फूलपुर पंकज लवानिया और थाना बहरिया के एसओ महेश मिश्रा फ़ोर्स के साथ मौक़े पर पहुँचे.
पुलिस ने क़स्बे में फ़्लैग मार्च किया और शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की.
दरगाह मेला कमेटी के अध्यक्ष सफ़दर जावेद ने पत्रकारों से कहा कि दरगाह पर चढ़कर झंडा फहराना ग़लत है.
उन्होंने बताया, “पुलिस मामले की जाँच कर रही है. प्रशासन जो कार्रवाई करेगा, उसमें मेरा सहयोग रहेगा.”
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को इस घटना पर कहा था, “कार्रवाई इसलिए नहीं हो रही है, क्योंकि दरगाह पर चढ़ने वाला मुख्यमंत्री जी की बिरादरी का है. उसको ना एसओ बोलेगा और ना एसपी बोलेगा. उसको इम्यूनिटी है. ये बिना मुख्यमंत्री के इशारे के नहीं हो सकता. जहाँ पर क़ानून हो, वहाँ पर कोई झंडा लेकर इस तरह का व्यवहार कर ले, ये बिना इशारे के नहीं हो सकता. क्योंकि उनको अपनी नाकामी छिपानी है.”

महाराजा सुहेलदेव सम्मान सुरक्षा मंच के अध्यक्ष मनेंद्र प्रताप सिंह ने इससे पहले कहा था, “हम लोगों ने रामनवमी पर शोभा यात्रा निकाली थी. जैसा कि हम लोग पहले से आंदोलनरत हैं. सिकंदरा में जो ग़ाज़ी मियाँ का मेला लगता है, उसको हम लोग बंद करवाना चाहते हैं. मज़ार भी अवैध है. हम लोग इसे हटवाना चाहते हैं. हम लोगों ने भगवा ध्वज फहरा कर विरोध दर्ज किया है.”
उनका दावा है कि इस परिसर में हिंदू देवी-देवता भी मौजूद हैं, जहाँ 95 फ़ीसदी हिंदू जाते हैं.
मनेंद्र प्रताप सिंह ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील भी की कि इस मज़ार को यहाँ से हटाया जाए.
इस घटना पर कांग्रेस के सांसद इमरान प्रतापगढ़ी का कहना है, “अभी चार दिन पहले ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी एक इंटरव्यू में कह रहे थे कि मुस्लिम समाज धार्मिक हिंदुओं से अनुशासन सीखे. क्या यही वो अनुशासन है, जिसकी बात मुख्यमंत्री जी कर रहे थे? क्या भारत के सबसे बड़े राज्य में इस तरह की अराजकता पर उत्तर प्रदेश पुलिस कोई उदाहरण प्रस्तुत करने वाली कार्रवाई करेगी?”
हालाँकि, इस दरगाह पर मेला लगने को लेकर विवाद पिछले महीने मार्च में शुरू हुआ था.
स्थानीय लोगों के मुताबिक़, विवाद 23 मार्च को शुरू हुआ था, जब दरगाह पर मेला कमेटी के अध्यक्ष सफ़दर जावेद ने प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ताला लगा दिया था.
बाद में मेला कमेटी की तरफ़ से सफ़दर जावेद ने बयान जारी कर बताया था कि मरम्मत के काम की वजह से ताला लगाया गया है.
इसके बाद अगले दिन 24 मार्च को ताला खोल दिया गया. 30 मार्च को मेले वाले दिन फिर बैरिकेडिंग कर दी गई. प्रशासन ने वहाँ मेला नहीं लगने दिया था.
इससे पहले संभल पुलिस ने ग़ाज़ी मियाँ की याद में नेज़ा मेला नहीं लगने दिया था.
कौन हैं सालार मसूद ग़ाज़ी?
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी का इतिहास 11वीं शताब्दी का है.
ग़ाज़ी मियाँ वर्ष 1034 में सुहेलदेव के ख़िलाफ़ युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनकी मौत हो गई. उन्हें बहराइच में दफ़नाया गया, जहाँ अब उनकी दरगाह है.
दरगाह समिति बहराइच के बक़ाउल्ला हबीब के मुताबिक़, “जब सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की वफ़ात (मौत) हुई, तब उनकी उम्र सिर्फ़ 18 साल 4 महीने थी. इन्हें सूफ़ी संत माना जाता है. सभी धर्मों के लोग उनके उर्स में आते हैं. ये हिंदू कैलेंडर के अनुसार जेठ के महीने में आयोजित होता है और लगभग एक महीने तक चलता है.”
स्थानीय लोग उन्हें “बाले मियाँ” के नाम से भी जानते हैं और श्रद्धालु उनकी दरगाह पर झंडा चढ़ाते हैं.
बहराइच के स्थानीय पत्रकार अज़ीम मिर्ज़ा के अनुसार, 1034 में सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मौत के बाद संघा परासी नाम की जगह (जो अब बहराइच का हिस्सा है) पर उनकी क़ब्र बनाई गई थी.
मिर्ज़ा ने बताया, “1250 में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने इस क़ब्र को मज़ार का रूप दिया. तब से वहाँ मेला लगता आ रहा है. जो लोग वहाँ जाते हैं, उनमें से कुछ ने वहाँ से एक ईंट लेकर अपने गाँव में भी मेला लगवाना शुरू कर दिया. इस तरह क़रीब 1900 जगहों पर सैयद साहब के नाम का मेला लगता है.”
बहराइच ज़िला प्रशासन की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ यह इलाक़ा ‘भर’ घराने की राजधानी हुआ करता था. चीनी यात्री ह्वेन सांग और फाह्यान के अलावा इब्न बतूता ने भी इस स्थान की यात्रा की थी.
ज़िला प्रशासन के मुताबिक़, ये दरगाह 11वीं शताब्दी के एक सूफ़ी संत की है. इसका निर्माण फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने करवाया था.
सलार मसूद ग़ाज़ी पर राजनीति
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के नाम पर लंबे समय से राजनीति होती रही है.
बीजेपी और कुछ अन्य पार्टियाँ राजा सुहेलदेव को नायक बताती रही हैं.
ओमप्रकाश राजभर ने राजा सुहेलदेव के नाम पर अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है, जबकि बीजेपी ने भी सुहेलदेव को काफ़ी अहमियत दी है.
वर्ष 2021 में राजा सुहेलदेव के स्मारक की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की नज़र राजभर समाज के वोटों पर रही है, जो सुहेलदेव को अपना पूर्वज मानता है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 20 मार्च को बहराइच में कहा था कि बहराइच वही ऐतिहासिक भूमि है, जहाँ एक विदेशी आक्रांता को धूल-धूसरित करते हुए महाराजा सुहेलदेव ने विश्व पताका लहराई थी
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