उत्तर प्रदेशबस्तीसिद्धार्थनगर 

सिद्धार्थनगर मेडिकल कॉलेज में भारी लापरवाही, जांच में गलत रिपोर्ट

✍️अजीत मिश्रा(खोजी)✍️ 

सिद्धार्थनगर मेडिकल कॉलेज में भारी लापरवाही, जांच में गलत रिपोर्ट, प्राइवेट टेस्ट में निकला 8 mm का किडनी स्टोन। 

सिद्धार्थनगर: उत्तर प्रदेश जिले के माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा व्यवस्था की गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। 17.5.2025 को कमर दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे अर्जुन कुमार अग्रहरी नामक मरीज को समय पर न तो सही जांच दी गई, न इलाज। अंततः जब निजी जांच कराई गई, तो 8 mm का किडनी स्टोन निकला – जो मेडिकल कॉलेज की लापरवाही का ज्वलंत प्रमाण है। CR.NO.981202500877827 ।।

क्या है पूरा मामला?

मरीज अर्जुन कुमार अग्रहरी कमर दर्द की गंभीर समस्या को लेकर सिद्धार्थनगर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। सबसे पहले उन्हें पर्ची बनवाकर ऑर्थो विभाग भेजा गया, जहां डॉक्टर ने प्रारंभिक जांच के बाद किडनी स्टोन की आशंका जताई और अल्ट्रासाउंड कराने को कहा। जब मरीज अल्ट्रासाउंड कराने ‘आभा काउंटर’ पहुंचा, तो वहां 16 जून 2025 की तारीख दी गई – यानी एक महीने बाद। मरीज ने तत्काल जांच की आवश्यकता बताई लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया।

बिना हस्ताक्षर की पर्ची, इंतजार और गलत रिपोर्ट::

समस्या गंभीर होने पर मरीज दोबारा डॉक्टर से मिले और एडमिट करने की गुहार लगाई। डॉक्टर ने इमरजेंसी में भेजा, फिर वहां से मेडिसिन विभाग। अंततः मरीज को बिना हस्ताक्षर व मोहर के एक पर्ची दी गई, जिसके आधार पर अल्ट्रासाउंड हुआ। रिपोर्ट में ‘कोई समस्या नहीं’ लिखकर मरीज को दवा की पर्ची दे दी गई।

दवा काउंटर तक पहुंचते-पहुंचते वह भी बंद हो चुका था। दर्द से बेहाल मरीज को उसी हालत में घर लौटना पड़ा।

निजी जांच में सामने आया सच::

अगले दिन जब दर्द असहनीय हो गया तो मरीज ने प्राइवेट जांच कराया। वहां साफ-साफ 8 mm का किडनी स्टोन सामने आया। यानि मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट पूरी तरह गलत साबित हुई।

प्रशासन से भी नहीं मिला जवाब::

न्याय की आस में मरीज कॉलेज प्रशासन से मिलने गया, लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी। प्रिंसिपल मौजूद नहीं थे, और डॉक्टर नौशाद ने सिर्फ सीनियर अधिकारियों से संपर्क करने की सलाह दी। डॉ. एके झा और प्रिंसिपल दोनों से फोन बातचीत के बावजूद कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। शाम 6 बजे मिलने का आश्वासन दिया गया, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी।

सवाल गंभीर हैं::

क्या मेडिकल कॉलेज में आम मरीज की कोई सुनवाई नहीं है? एक महीने बाद की अल्ट्रासाउंड तारीख किस आधार पर दी जाती है? बिना हस्ताक्षर की पर्ची पर जांच कैसे की गई? गलत रिपोर्ट देने वाले तकनीकी स्टाफ पर कोई कार्रवाई क्यों नही?

उच्च स्तरीय जांच की मांग और कार्रवाई::

यह मामला न सिर्फ चिकित्सा लापरवाही का है, बल्कि आमजन की जिंदगी से खिलवाड़ का भी। प्रशासन को चाहिए कि मामले की उच्च स्तरीय जांच कराकर जिम्मेदार चिकित्सकों व तकनीकी कर्मियों पर कड़ी कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में किसी और मरीज को इस प्रकार की उपेक्षा और पीड़ा का सामना न करना पड़े।

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