*मकर संक्रांति क्षेत्रीय सीमाओं से परे एक त्योहार*
राजकुमार अश्क़
जौनपुर।वैसे देखा जाए तो सम्पूर्ण भारत ही पर्वों, त्योहारों का देश माना जाता है। यहाँ साल के जितने दिन नहीं है उससे कहीं ज्यादा त्योहार है। कुछ त्योहार क्षेत्रीय होते हैं तो कुछ क्षेत्रीय सीमाओं को तोड़ कर सम्पूर्ण देश में अलग अलग नामों से मनाए जाते हैं। त्योहार ही होतें है जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अपनी भव्यता को हस्तांतरित होतें रहते हैं। उसी कड़ी में मकर संक्रांति का नाम आता है यह त्योहार अंग्रेजी नववर्ष के जनवरी माह में पड़ने वाला साल का पहला त्योहार होता है। यह त्योहार सूर्य की गति पर आधारित त्योहार माना जाता है। जब सूर्य एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रमण काल कहते हैं। वैसे तो पूरे वर्ष में कुल 12 राशियाँ होती है मगर इनमें चार राशियाँ मेष, कर्क, तुला,और मकर राशि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। वैसे यदि देखा जाए तो भारतीय पंचांग चंद्रमा की गति से निर्धारित होता है मगर संक्रांति सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी संक्रांति काल को हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है, जिसे सम्पूर्ण भारत के साथ साथ नेपाल के भी बहुत भक्ति भाव से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व को मकर संक्रांति, पंजाब में लोहड़ी, गढ़वाल में खिचड़ी, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आध्रप्रदेश में संक्रांति कहते हैं। इस दिन से उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बडे़ तथा राते छोटी होनी शुरू हो जाती है। तथा सर्दी की ठिठुरन भी कम होने लगता है।
मकर संक्रांति अंधकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। प्रकाश ज्ञान का तथा अंधकार अज्ञानता का प्रतीक माना जाता है यहाँ पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व की लगभग 90 फीसदी आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में निवास करती है। इस कारण मकर संक्रांति का पर्व न केवल भारत में अपितु लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन माना जाता है। संभवतः मकर संक्रांति ही एक खगोलीय घटना, वैश्विक भूगोल और विश्व कल्याण की भावना पर आधारित है। वेद पुराणों के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु प्रकाश में होती है वह मनुष्य दुबारा जन्म नहीं लेता है इसी कारण गंगा पुत्र भीष्म ने भी अपना शरीर तब तक नही छोड़ा जब तक कि सूर्य उत्तरायण नहीं हो गया।
सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी मिलता है।
पंजाब और हरियाणा में इस समय नईं फसल का स्वागत किया जाता है वही असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
*मकर संक्रांति का वैज्ञानिक आधार* मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन की क्रिया बहुत तेजी से होती है, जिस कारण इसमें स्नान करने से बहुत तरह के रोगो से निजात मिल जाता है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में काफी ठंड रहती है ऐसे में गुड़ और तिल से बने विभिन्न प्रकार के मिष्ठान के प्रयोग से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। खिचड़ी खाने से हमारी पाचन क्रिया बहुत अच्छी हो जाती है इसमें अदरक और हरी मटर खाने से शरीर को अनेक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
*इस पर्व से जुडी़ कुछ रोचक तथ्य*
राजा हर्षवर्द्धन के समय में मकर संक्रांति 24 दिसंबर को मनाई जाती थी। मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाई जाती थी।
शिवाजी के जीवनकाल में मकर संक्रांति 11 जनवरी को मनाई जाती थी।
मकर संक्रांति पर दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
इस दिन सूर्योदय से पहले तिली के तेल से स्नान करना शुभ माना जाता है।
स्रोत:- विभिन्न पुस्तकों, लेखो, संत महात्मा के प्रवचनों एवं सोशलमीडिया के ज्ञान पर आधारित।