
प्रेस विज्ञप्ति
सुल्तानपुर,उत्तरप्रदेश
*श्री राम कथा में मिलता है पावन चरित्र का वर्णन– कथा व्यास रवि मोहन दास जी महाराज*
सुल्तानपुर। श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर ट्रस्ट परिवार द्वारा आयोजित श्री राम कथा के चतुर्थ दिवस पर अयोध्या धाम से पधारे पूज्य कथा व्यास रवि मोहन दास जी महराज ने भगवान राम की सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि प्रभु श्री राम की बाल लीलाएं बहुत ही कलाओं से पूर्ण हैं।
बारेहि ते निज हित पति जानी ! लछिमन राम चरन रति मानी !!
भरत सत्रुहन दूनउ भाई ! प्रभु सेवक जसि प्रीति बड़ाई !!
कथा ब्यास ने वर्णन किया है बचपन से ही लक्ष्मण जी की राम जी के चरणों में प्रीति थी और भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है, वैसी प्रीति हो गई । वैसे तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं लेकिन सुख के समुद्र श्री रामचन्द्रजी सबसे अधिक हैं ।
माँ कभी गोदी में लेकर भगवान को प्यार करती है। कभी सुंदर पालने में लिटाकर प्यारे ललना कहकर दुलार करती है। जो भगवान सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित) निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वो आज प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में खेल रहे हैं। भगवान के कान और गाल बहुत ही सुंदर हैं । ठोड़ी बहुत ही सुंदर है । दो-दो सुंदर दूँतुलियाँ हैं, लाल-लाल होठ हैं। नासिका और तिलक के सौंदर्य का तो वर्णन ही कौन कर सकता है । जन्म से ही भगवान के बाल चिकने और घुँघराले हैं, जिनको माता ने बहुत प्रकार से बनाकर सँवार दिया है। पूज्य कथा व्यास ने आगे बताया कि प्रभु श्री राम सहित चारों भाइयों के चेहरे पर दिव्या ज्योति थी उसमें राम के श्यामवर्ण मुस्कान और शरीर के बाकी अंगों की बहुत ही सुंदर व्याख्या कथा व्यास द्वारा की गई। गुरु जी ने बाल रामचंद्र जी के कथा के मुख्य उद्देश्य को छात्रों में नैतिक मूल्यों को स्थापित करना बताया। प्रभु की बाल लीलाओं से न केवल पिता दशरथ और माता कौशल्या का मन पुलकित होता था बल्कि प्रभु ने अपने मनोहर बाल रूप और बाल क्रियाओं से समस्त नगर वासियों को भी सुख दिया। माता कौशल्या तो कभी अपने लाल को हिलाती बुलाती तो कभी पालने में झूलाती। चारों भाई महल से बाहर बच्चों के साथ दिनभर खेलते तथा राजा दशरथ के बुलाने पर भी बाल समाज को छोड़कर अंदर नहीं आते। बाद में माता कौशल्या दौड़कर बालक राम को पड़ती है और घर के अंदर ले आती हैं। दशरथ जी ज्ञान के प्रतीक हैं और कौशल्या भक्ति की प्रतीक है और जीवन का सूत्र है कि भक्ति की कृपा से ही भगवान ज्ञान की गोद में आ सकते हैं। चारों भाइयों को महाराज दशरथ ने विद्या अध्ययन के लिए वशिष्ठ जी के आश्रम में भेजा। इसी दौरान विश्वामित्र नाम के ऋषि अवध में माया दशरथ की राजसभा पहुंचते हैं और यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों के विनाश के लिए राम और लक्ष्मण को साथ ले जाने का आग्रह करते हैं। प्रभु श्री राम की बाल लीलाओं का जितना ही वर्णन किया जाए उतना ही कम है।
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