
मीनाक्षी विजय कुमार भारद्वाज/मुंबई /महाराष्ट्र में पहले यूपी-बिहार वालों को मारा-पीटा, फिर गुजराती विवाद अब हिंदी पर काट रहे बवाल,
मुंबई/महाराष्ट्र : राज्य महाराष्ट्र में ‘मराठी अस्मिता’ के नाम पर सियासी रोटी सेकने का पुराना इतिहास रहा है। पहले भाषा के नाम पर यूपी-बिहार वालों को मारा-पीटा जाता था। उन्हें मराठी न बोलने पर भगाया जाता था। वही एक घटना घाटकोपर की एक आवासीय सोसायटी में अधिकांश गुजराती, जैन , और मारवाड़ी परिवार रहते है। उन लोगों को धमकी मिली। और वहा भी मराठी, गैर मराठी को लेकर विवाद गरमाया काफी विवाद हुआ।अब हिंदी भाषा पर बवाल काटा जा रहा है।यह वही हिंदी है, जो हर राज्य को एक-दूसरे से जोड़े रहती है।महाराष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने का फैसला हुआ है। इस फैसले ने सियासी बवाल मचा दिया है।किसी तरह महाराष्ट्र में अपना सियासी वजूद बचाने में जुटी राज ठाकरे की मनसे आग बबूला हो चुकी है।मनसे यानी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चीफ राज ठाकरे ने फडणवीस सरकार के इस निर्णय की निंदा की।कहा कि मनसे इस फैसले का पुरजोर विरोध करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि इसे लागू न किया जाए।अब तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में केवल दो भाषाएं पढ़ाई जाती थीं, लेकिन अब हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने एन ई पी (नेप)2020 के तहत 2025-26 सत्र से मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में मराठी, अंग्रेजी और हिंदी को त्रिभाषा नीति के तहत अनिवार्य करने का फैसला किया। मतलब मराठी अब भी पहली अनिवार्य मातृभाषा है।अंग्रेजी सेकेंड है।अब हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया गया है। अब समझ नहीं आता कि इसमें विवाद क्यों है। कारण कि अगर मराठा भाषी राज्य में अगर हिंदी को पहली अनिवार्य भाषा बनाया जाता तो विरोध समझ में आता है। मगर मनसे ने तो आसमान ही सिर पर उठा लिया है।मराठी के नाम पर सियासी गेम मनसे और अन्य संगठनों ने इसे मराठी संस्कृति पर खतरा माना है।मनसे चीफ राज ठाकरे का कहना है कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं, बल्कि एक क्षेत्रीय भाषा है। तमिलनाडु की तरह इसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने हिंदी साइन बोर्ड हटाने और स्कूलों में हिंदी पढ़ाने के खिलाफ आंदोलन की धमकी दी।राज ठाकरे इसे ‘मराठी अस्मिता पर हमला’ करार देते हुए हिंदी को ‘थोपा गया’ बताया।पूरे विवाद को देखें तो लगता है मराठी अस्मिता के नाम पर सियासी गेम चल रहा।अब तक महाराष्ट्र में दो भाषाओं मराठी और अंग्रेजी का अध्ययन करने की परंपरा थी। मगर अब सरकार ने दो भाषाओं का अध्ययन कराने की परंपरा से हटकर राज्य भर के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ना अनिवार्य करने का निर्णय लिया है।राज ठाकरे ही नहीं, विपक्षी कांग्रेस भी इसके विरोध में है। कांग्रेस ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा उसका यह निर्णय हिंदी थोपने जैसा है।महाराष्ट्र में हिंदी और हिंदी भाषी लोगों से घृणा कोई नई बात नहीं है।हिंदी बोलने वाले यूपी-बिहार वालों को भाषा के नाम पर ही तो मारा-पीटा जाता था। उन्हें भगाया जाता था।यूपी-बिहार के प्रवासियों पर हमले होते थे।उन्हें भगाया जाता था।बस मराठी अस्मिता के नाम पर इसमें मनसे और शिवसेना दोनों शामिल रही हैं। महाराष्ट्र में यूपी-बिहार के प्रवासियों को स्थानीय नौकरियों और संसाधनों पर ‘बोझ’ बताकर निशाना बनाया जाता रहा है। हाल के दिनों में भी ऐसी कई घटनाएं सामने आईं, जहां मराठी न बोलने पर मारा-पीटा गया।
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