A2Z सभी खबर सभी जिले कीअन्य खबरेताज़ा खबरदेशनागपुरमहाराष्ट्र

*प्रशासन की गहरी नींद, सावनेर के नागरिक ध्वनि प्रदूषण से त्रस्त: नवजात शिशु कराह रहे, बीमार पीड़ा में, छात्र पढ़ाई से वंचित*


सावनेर में DJ ‘ध्वनि का आतंक’: नवजात शिशुओं की चीखें, बीमारों की आहें, छात्रों का भविष्य अंधकार में, प्रशासन बेखबर!

नागपूर ग्रामीण, सावनेर प्रतिनिधी: सूर्यकांत तळखंडे

सावनेर: सावनेर शहर में तेज डीजे संगीत का बढ़ता कहर अब मासूम नवजात शिशुओं, बीमार नागरिकों और छात्रों के भविष्य पर एक गहरा संकट बनकर मंडरा रहा है। रिहायशी इलाकों में देर रात तक कानों के पर्दे फाड़ने वाले शोर ने हर वर्ग के नागरिक का जीना दूभर कर दिया है। नवजात शिशु अपनी पीड़ा व्यक्त भी नहीं कर पाते, बीमार अपनी तकलीफें सह रहे हैं, और छात्र अपनी पढ़ाई छोड़कर शोर कम होने का इंतजार कर रहे हैं। विडंबना यह है कि स्थानीय प्रशासन गहरी नींद में सोया हुआ है और इस गंभीर समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। सावनेर के नागरिकों में इस संवेदनहीनता के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त है।
रात भर बजते डीजे से नवजात शिशुओं की नींद हराम, स्वास्थ्य पर मंडरा रहा है खतरा
स्थानीय माताओं का कहना है कि रात भर के प्रचंड शोर ने उनके नवजात शिशुओं की नींद उड़ा दी है। बार-बार नींद टूटने से बच्चे चिड़चिड़े हो गए हैं और लगातार रो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि नवजात शिशुओं के लिए शांत वातावरण अत्यंत आवश्यक है, और तेज ध्वनि प्रदूषण उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इतना ही नहीं, यह उनके कोमल श्रवण तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है और भविष्य में सुनने संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है। लगातार शोर के कारण उनका हृदय गति और रक्तचाप भी प्रभावित हो सकता है, जो उनके नाजुक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।
बीमार और बुजुर्ग कराह रहे, छात्रों का भविष्य अंधकार में
सिर्फ नवजात शिशु ही नहीं, तेज डीजे संगीत से बीमार और बुजुर्ग भी बुरी तरह परेशान हैं। उनकी रातों की नींद हराम हो गई है, जिससे उनकी स्वास्थ्य समस्याएं और बढ़ गई हैं। वहीं, छात्रों का भविष्य भी इस शोरगुल के कारण अंधकार में डूब रहा है। खासकर बोर्ड परीक्षाओं और अन्य महत्वपूर्ण परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अजय, सीमा, राहुल, प्रीति जैसे सैकड़ों विद्यार्थी रात भर शोर के कारण पढ़ नहीं पा रहे हैं। दिन में स्कूल और कोचिंग के बाद रात को पढ़ाई का समय मिलता है, लेकिन डीजे के शोर ने वह भी छीन लिया है। छात्रों का कहना है कि इस शोर के कारण उनकी एकाग्रता भंग हो रही है और उन्हें डर है कि इसका सीधा असर उनके परीक्षा परिणामों पर पड़ेगा।
कानून की उड़ रही धज्जियां, रिहायशी इलाकों में डीजे का शोर 100-120 डेसिबल तक!
भारत सरकार के ध्वनि प्रदूषण (नियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार, रिहायशी इलाकों में दिन के समय ध्वनि का स्तर 55 डेसिबल (dB) से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि रात के समय यह सीमा 45 डेसिबल निर्धारित की गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देश तो रिहायशी इलाकों में रात के समय ध्वनि स्तर को 40 डेसिबल से कम रखने की सलाह देते हैं ताकि नींद में खलल न पड़े।
लेकिन सावनेर में तेज डीजे संगीत का शोर इन सभी नियमों और दिशानिर्देशों को धता बताते हुए 100 से 120 डेसिबल तक पहुंच रहा है। यह स्तर न केवल असहनीय है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी बेहद खतरनाक है। विशेषज्ञों का कहना है कि 85 डेसिबल से ऊपर की ध्वनि लंबे समय तक सुनने पर श्रवण हानि का कारण बन सकती है, जबकि 100 डेसिबल से ऊपर की ध्वनि हृदय और मस्तिष्क संबंधी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है।
प्रशासन की संवेदनहीनता शर्मनाक
रिहायशी इलाकों में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के स्पष्ट कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन सावनेर में इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। तेज डीजे संगीत बिना किसी रोक-टोक के देर रात तक बजाया जा रहा है, और स्थानीय प्रशासन गहरी नींद में सोया हुआ है। नवजात शिशुओं की पीड़ा, बीमारों की आहें और छात्रों की बेबसी प्रशासन को क्यों नहीं दिखाई दे रही? प्रशासन की यह संवेदनहीनता शर्मनाक है और नागरिकों को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या इस शहर में मासूम बच्चों, बीमारों और छात्रों की कोई कद्र नहीं है।
माताओं, बीमारों और छात्रों का फूटा गुस्सा, प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग
अपने नवजात शिशुओं की पीड़ा से व्याकुल माताओं, अपनी सेहत से जूझ रहे बीमार नागरिकों और अपने भविष्य को लेकर चिंतित छात्रों का गुस्सा अब फूट पड़ा है। उन्होंने प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप करने और रिहायशी इलाकों में बजने वाले तेज डीजे संगीत पर कठोर कार्रवाई करने की मांग की है। उनका कहना है कि उनके बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य के साथ खिलवाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि प्रशासन ने अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो वे सड़कों पर उतरकर व्यापक आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।
कब सुनेगा बहरा प्रशासन मासूमों की चीखें, बीमारों की आहें और छात्रों की बेबसी?
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सावनेर का प्रशासन कब अपनी गहरी नींद से जागेगा और इन मासूम नवजात शिशुओं की चीखों, बीमारों की आहों और छात्रों की बेबसी को सुनेगा। क्या प्रशासन कुछ गैर-जिम्मेदार लोगों की खुशी के आगे नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य, बीमार नागरिकों की शांति और छात्रों के भविष्य को दांव पर लगाता रहेगा? सावनेर के नागरिक जवाब का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

Back to top button
error: Content is protected !!