
एम्बुलेंस केवल एक वाहन नहीं, बल्कि आपातकाल में जीवन और मृत्यु के बीच का सेतु है। जब सड़क दुर्घटना, हृदयाघात, या कोई अन्य चिकित्सा आपातकाल हो, तो एम्बुलेंस ही वह पहली उम्मीद होती है जो मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाती है। इसमें मौजूद प्रशिक्षित पैरामेडिक्स और जीवन रक्षक उपकरण, जैसे ऑक्सीजन, डिफाइब्रिलेटर, और दवाइयां, मरीज की स्थिति को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन क्या हो अगर इस एम्बुलेंस सेवा को बिना किसी कारणवश रोक दिया जाए। मिली जानकारी के अनुसार दुमका-हंसडीहा मुख्य मार्ग पर स्थित नोनीहाट के हटिया प्लॉट में एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है। जहां तीन एम्बुलेंस (JH 01CJ7839) जिसे एम परिवहन एप्प में देखने के बाद इस एम्बुलेंस की आयु 8 वर्ष 1 महीने दिखाती है। वहीं दूसरी एम्बुलेंस (JH01CJ3548) इस एम्बुलेंस की आयु एम परिवहन में देखने के बाद 8 वर्ष 2 महीने दिखाती है। और एक एम्बुलेंस में नम्बर प्लेट नहीं है। जिस वजह से उसकी जानकारी साझा कर पर थोड़ा मुश्किल है। यह तीनों एम्बुलेंस जो कभी जीवन बचाने का प्रतीक थीं, अब कचरे के ढेर की तरह सज-धजकर खड़ी हैं। मानो स्वास्थ्य विभाग ने इन्हें एक खुले म्यूजियम में लोगो को दिखाने के लिए रख छोड़ा हो। जब इस व्यस्त मार्ग पर किसी प्रकार की सड़क दुर्घटना होती है। तो नोनीहाट तथा आस पास के ग्रामीणों के द्वारा सड़क दुर्घटना में घायल हुए लोगों को बचाने के लिए सरैयाहाट, रामगढ़ या फिर जरमुंडी से एम्बुलेंस मंगवाने की जरूरत पड़ती है। जब इन तीनो जगहों से एम्बुलेंस बुलाए जाते हैं तब एम्बुलेंस के डायल नम्बर 108 के द्वारा बड़े शान से यह उत्तर भी दिया जाता है। कि एम्बुलेंस को घटना स्थल पर पहुँचने में एक से दो घंटे का समय लगेगा इससे पहले पहुचने का कोई उपाय नहीं है। इस स्थिति में घरवालों को मजबूरी में प्राइवेट गाड़ी का सहारा लेना पड़ता है। और ऐसे समय मे घायल मरीज समय से जूझते हैं, और कई बार उनकी सांसें एम्बुलेंस के इंतजार में दम तोड़ देती हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग को इससे क्या ही मतलब है। उनकी नजर में तो ये तीनो एम्बुलेंस शायद ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिन्हें छूना भी गुनाह है! विडंबना देखिए, जिस नोनीहाट में ये एम्बुलेंस धूल चाट रहे हैं। और कचरे के ढेर के जैसे पड़े हुए है । उस रास्ते मे दुर्घटनाएं आम बात हैं। फिर भी, स्वास्थ्य विभाग का रवैया आम जनता के लिए ऐसा है। जैसे वे कह रहे हों, एम्बुलेंस तो आम जनता की सेवा में है ना, बस वाहन से थोड़ा धूल हटाकर देख लो एम्बुलेंस दिख जाएगा। इन एम्बुलेंसो के लिए चालक नहीं है। तकनीशियन भी नहीं है। और एम्बुलेंस का रखरखाव भी नहीं हो पा रहा है। लेकिन इस विषय पर आम जनता को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के पास बहानों का अंबार लगा हुआ है। आम लोग शिकायत करेंगें विरोध करेंगे इससे क्या हो जाएगा। स्वास्थ्य विभाग कोई नया बहाना बना देगा। आखिरकार सबसे उदासीन विभाग जो ठहरा।
आम लोग चीख-चीखकर इस एम्बुलेंस के मुद्दे को उठाते हैं, मगर उनकी आवाज प्रशासन के कानों तक पहुंचते-पहुंचते बिल्कुल ही धीमी हो जाती है। जिसे स्वस्थ्य विभाग और उनके पदाधिकारी सुन भी नहीं पाते है। शायद स्वास्थ्य विभाग को लगता है कि मरीजों को बचाने से ज्यादा जरूरी इन एम्बुलेंसो को विंटेज लुक देना है। आखिर कोई पदाधिकारी क्यों नहीं चाहेगा कि उसका क्षेत्र‘ जंग लगी एम्बुलेंस के संग्रहालय’ के लिए मशहूर हो। स्वास्थ्य विभाग को यह समझना चाहिए कि एम्बुलेंस सजावट की वस्तु नहीं। बल्कि आम लोगो के जिंदगियों की आखिरी उम्मीद है। यह ऐसी उम्मीद है जो ज्यादातर उन गरीब लोगो का सहारा बनति हैं। जो लोग पिछड़े होते हैं। और वास्तविक रूप से गरीब होते हैं और प्राइवेट गाड़ी का खर्च नहीं उठा पाते हैं। अगर इन तीन एम्बुलेंसो को दुरुस्त कर के इनमें चालक और चिकित्सा कर्मी नियुक्त कर दिए जाएं, तो शायद नोनीहाट तथा आस पास के लोग भी यह भरोसा कर सकें कि उनकी जान की कीमत धूल से ज्यादा है।