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संकल्प ‘विकसित भारत’ का, चुनौती जमीनी क्रियान्वयन की: झालावाड़ का हादसा व्यवस्थागत सुधार की एक मार्मिक पुकार 

झालावाड़ के पीपलोदी गाँव में सरकारी स्कूल की छत के मलबे में दबे सात मासूम बच्चों की दर्दनाक मृत्यु, आजादी के अमृतकाल में हमारे राष्ट्र के सामने एक आईना रखती है। यह आईना हमें दो तस्वीरें एक साथ दिखाता है। एक तस्वीर में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक नए, आत्मनिर्भर और ‘विकसित भारत’ का दृढ़ संकल्प है, जो वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहा है। दूसरी तस्वीर उस क्रूर यथार्थ की है, जहाँ हमारी व्यवस्था की जंग लगी कड़ियाँ टूटकर मासूमों की जान ले रही हैं। यह हादसा केवल एक प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम नहीं, बल्कि यह उस खाई को दर्शाता है जो एक महान ‘विजन’ और उसके जमीनी ‘क्रियान्वयन’ के बीच मौजूद है।

यह समय केवल शोक या आक्रोश का नहीं, बल्कि गहरे आत्ममंथन का है। हमें यह समझना होगा कि सरकार की प्रगतिशील नीतियों और नेक इरादों के बावजूद, ऐसी त्रासदियाँ क्यों घटित हो रही हैं और क्यों बेवजह हमारे नौनिहालों की जानें जा रही हैं।

#### एक दूरदर्शी सोच और स्वर्णिम भारत का संकल्प

इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारें भारत के कायाकल्प के लिए एक अभूतपूर्व दृष्टिकोण के साथ काम कर रही हैं। प्रधानमंत्री जी का ‘विकसित भारत @ 2047’ का विजन केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सुविचारित रोडमैप है।

* नई शिक्षा नीति (NEP):वर्षों बाद देश को एक ऐसी शिक्षा नीति मिली है जो रटने की बजाय रचनात्मकता, कौशल और समग्र विकास पर जोर देती है। यह वैश्विक मानकों के अनुरूप हमारे युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करने की एक शानदार पहल है। 

समग्र शिक्षा अभियान, पीएम श्री स्कूल: इन योजनाओं के माध्यम से स्कूलों के भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए हजारों करोड़ का बजट आवंटित किया गया है, जो सरकार की शिक्षा को प्राथमिकता देने की मंशा को स्पष्ट करता है।

* ग्रामीण और शहरी विकास:’प्रधानमंत्री आवास योजना’ से लेकर *जल जीवन मिशन’ तक, गाँवों में जीवन स्तर सुधारने के लिए ऐतिहासिक कार्य हो रहे हैं। वहीं,’स्मार्ट सिटी मिशन’ और अमृत योजना’ शहरों को एक नई पहचान दे रहे हैं।

सरकार की इन नीतियों की प्रशंसा की जानी चाहिए, क्योंकि ये उस गहरी समझ को दर्शाती हैं कि देश का विकास तभी संभव है जब गाँव और शहर दोनों एक साथ प्रगति करें।

  1. ### संकल्प और यथार्थ के बीच की खाई: भ्रष्टाचार की दीमक 

लेकिन जब इतनी स्पष्ट नीति और बजट आवंटन के बावजूद झालावाड़ जैसी घटनाएँ होती हैं, तो सवाल उठता है कि यह खाई क्यों है? इसका सबसे बड़ा और कड़वा जवाब है- भ्रष्टाचार। यह वो दीमक है जो आजादी के बाद से हमारी विकास की नींव को खोखला कर रहा है।

यह भ्रष्टाचार अक्सर उच्चतम स्तर पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर, गाँव की चौपाल से शुरू होता है। ग्राम पंचायत स्तर पर, जहाँ विकास की पहली ईंट रखी जानी है, वहाँ अक्सर एक अपवित्र गठजोड़ काम करता है। कुछ भ्रष्ट जनप्रतिनिधि (सरपंच, पंच), सरकारी अधिकारी (ग्राम सचिव, कनिष्ठ अभियंता) और ठेकेदार मिलकर जनता के पैसे की बंदरबाँट करते हैं। स्कूल की मरम्मत, सामुदायिक भवन का निर्माण या सड़क बनाने के लिए स्वीकृत हुआ बजट कागजों पर तो पूरा खर्च हो जाता है, लेकिन हकीकत में या तो काम होता ही नहीं, या फिर घटिया सामग्री का इस्तेमाल कर खानापूर्ति कर दी जाती है। पीपलोदी का स्कूल शायद इसी भ्रष्टाचार का शिकार हुआ, जहाँ मरम्मत के नाम पर आवंटित पैसा सही जगह नहीं लगा और परिणाम सात जिंदगियों की भेंट चढ़ गया।

*आपदा प्रबंधन का अधूरा अध्याय: जल-भराव से लेकर जर्जर भवन तक*

झालावाड़ की घटना हमें एक और गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान खींचती है – हमारा कमजोर आपदा प्रबंधन। यह केवल एक जर्जर भवन का गिरना नहीं है। आज पूरे भारत में, चाहे दिल्ली-मुंबई जैसे महानगर हों या छोटे कस्बे और गाँव, थोड़ी सी बारिश में जल-भराव एक आम समस्या बन गई है। घरों और दुकानों में पानी भर जाना, सड़कों का नदियों में तब्दील हो जाना, यह दर्शाता है कि हमारे शहरों और गाँवों का विकास अनियोजित है। हमारे पास उचित जल निकासी प्रणाली और आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

एक स्कूल की छत का बारिश न सह पाना और एक शहर का बारिश में डूब जाना, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही मामलों में, हमारा बुनियादी ढांचा और हमारी तैयारी प्रकृति के सामान्य प्रकोप को झेलने में भी असमर्थ है। यह एक मानवीय और संवेदनशील कमी है, जिसे तत्काल दूर करने की आवश्यकता है।

#### आशा की किरणें: जहाँ संकल्प साकार हो रहा है**

इस निराशाजनक तस्वीर के बीच, हमें उन अनगिनत आशा की किरणों को भी नहीं भूलना चाहिए जो देश के कोने-कोने में चमक रही हैं। भारत में ऐसे हजारों गाँव हैं जहाँ इन्हीं सरकारी योजनाओं ने चमत्कार किया है। ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ और अन्य पहलों के तहत, कई ईमानदार सरपंचों, समर्पित जिला कलेक्टरों और जागरूक नागरिकों ने मिलकर अपने गाँवों की तस्वीर बदल दी है।

वहाँ स्कूल की इमारतें चमक रही हैं, हर घर में नल से जल पहुँच रहा है, और सामुदायिक भागीदारी से विकास की एक नई गाथा लिखी जा रही है। ये सफल उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि समस्या नीतियों में नहीं, बल्कि उनके क्रियान्वयन की निष्ठा में है। यदि स्थानीय स्तर पर नेतृत्व ईमानदार हो और नागरिक जागरूक हों, तो सरकारी योजनाएं वास्तव में वरदान साबित हो सकती हैं।

####निष्कर्ष: व्यवस्थागत सुधार और सामूहिक चेतना का आह्वान

झालावाड़ की त्रासदी एक मार्मिक पुकार है। यह प्रधानमंत्री जी के ‘विकसित भारत’ के संकल्प को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए एक आह्वान है।

सरकार के लिए:यह समय नीतियों की प्रशंसा से आगे बढ़कर उनके क्रियान्वयन की कठोर निगरानी का है। टेक्नोलॉजी का उपयोग कर (जियो-टैगिंग, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) पंचायत स्तर पर होने वाले हर खर्च में पारदर्शिता लाई जाए। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जाए और उन्हें कठोरतम दंड दिया जाए।

2. समाज के लिए: हमें केवल सरकार को कोसने की बजाय एक ‘जिम्मेदार नागरिक’ बनना होगा। अपने गाँव के विकास कार्यों पर नजर रखनी होगी, सूचना के अधिकार (RTI) का प्रयोग करना होगा और गलत के खिलाफ आवाज उठानी होगी। हमें उन ईमानदार अधिकारियों और नेताओं को सम्मानित करना होगा जो अच्छा काम कर रहे हैं।

भारत एक महान राष्ट्र बनने की राह पर है। सरकार की दूरदर्शी नीतियाँ इसका इंजन हैं, लेकिन इस यात्रा को सफल बनाने के लिए हमें भ्रष्टाचार और उदासीनता के ब्रेक को हटाना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की रोशनी हर गाँव, हर घर और हर स्कूल तक पहुँचे, ताकि फिर किसी मासूम को एक जर्जर छत के नीचे अपनी जान न गंवानी पड़े।

लेखक परिचय

✍️ डॉ. नयन प्रकाश गांधी पूर्व सलाहकार, ग्रामीण विकास विभाग, राजस्थान सरकार रह चुके हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS), मुंबई विश्वविद्यालय के एलुमनाई हैं, एवं देश के प्रख्यात युवा मैनेजमेंट विश्लेषक व सामाजिक विचारक हैं। वे स्वतंत्र रूप से सामाजिक पत्रकारिता में सक्रिय हैं और लगातार समय-समय पर निर्भीक और निष्पक्ष रूप से जन-कल्याणकारी एवं आमजन हित के सामाजिक मुद्दों पर प्रभावशाली लेखन करते रहते हैं।

 

 

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