
अजीत मिश्रा (खोजी)
अयोध्या में विकास ने आँखें खोलीं… और सामने ठेकेदार की जेब दिखी!
अयोध्या।
जिस राम की नगरी को ‘सांस्कृतिक राजधानी’ कहकर चुनावी भाषणों में फूल-मालाओं से सजाया गया उसी नगरी में जब विकास का जन्म हुआ… तो दाई बनकर पहुंचे नगर निगम, इंजीनियर और ठेकेदार साहब। पर हुआ यूँ कि विकास जैसे ही रोना शुरू करता, कोई न कोई मशीन उसकी नाक में नली डाल देता। अब हालत ये है कि विकास हँस नहीं सकता, बोल नहीं सकता… बस “जियो फ़ाइबर की तरह खुदाई और जल निगम की तरह टाल-मटोल” उसका भाग्य बन गया है।
चलिए ज़रा तस्वीर देखे-
करोड़ों की मशीनें सड़कों पर लगी हैं, जैसे किसी शवयात्रा में बैंड बाजा। शहर मोहल्ला ऐसा है जैसे कोई सर्जरी के बाद टांकों के सहारे चल रहा हो। और ऊपर से नगर निगम का बुलेटिन – शिकायत के लिए टोल‑फ्री नंबर डायल करें। मतलब पहले जनता की जेब से कर लो लूट, फिर उसी जनता से शिकायत भी मँगाओ! वाह रे रामराज!
👉अब कुछ गूढ़ प्रश्न उठते हैं-
💫अगर विकास हुआ तो हर बारिश में सड़कों की लंगोटी क्यों उतर जाती है?
💫ढलान था, तो पानी चढ़ाई पर कैसे चढ़ गया?
💫नालियाँ बनीं तो उसमें कमाई बह गई या पानी?
कहावत तो सुनी थी –“राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। पर अब नारा है – विकास नाम की लूट है, टेंडर से लेकर लोकार्पण तक है सबूत!
चर्चा है कि – कुछ इंजीनियरों की ज़ुबान से ज़्यादा फुर्ती ठेकेदारों की जेब में है।जो काम चार महीने चले, वो चार दिन में खत्म दिखा दिया जाता है *बस कैमरा सही एंगल पर हो।और जब बारिश में पोल खुलती है, तो उसे ‘प्राकृतिक आपदा’ बताकर काग़ज़ों को फिर से सुखाया जाता है।
अब जनता क्या करे?
जनता बस सोशल मीडिया पर ‘विकास मरा’ लिखकर दुख जता रही है। लेकिन विकास तो अभी ज़िंदा है…
ज़िंदा है उन फाइलों में जहां कमीशन की संख्या विकास के खर्च से ज़्यादा है। ज़िंदा है उस जेसीबी में जिसकी हर खुदाई में “श्रीराम” नहीं, “पेट्रोल का बिल और पेमेंट का इंतज़ार” लिखा होता है।
राम की इस धरती पर अब सीता खोज रही हैं कि आखिर ये विकास कौन है? क्योंकि राम को तो कभी झूठ पसंद नहीं था… पर ये विकास तो झूठ का पोस्टर बॉय बन चुका है।