जिन्दगी में अपनी अहमियत बनाये रखने के लिए सकारात्मक सोच के साथ अच्छे कार्य करते रहिये : आचार्यश्री
आचार्य श्री निर्भय सागर ने बहेरिया तिगड्डा सिदुआ स्थित तपोवन तीर्थ सागर में श्रावकों को उपदेश देते हुए कहा समुद्र एक होते हुए भी सबके लिए समान है परंतु समुद्र में सब अपनी अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं के अनुसार चीजें ढूंढते हैं , जैसे कोई मछली जैसे कोई मछली ढूंढता है , कोई रत्न ढूंढता है , कोई नमक ढूंढता है , कोई पत्थर ढूंढता है , कोई रेत ढूंढता है , वैसे ही साधु सबके लिए होता है परंतु सब अपने अपने कार्य के अनुसार ढूंढते हैं जैसे कोई गुरु के अंदर अचार विचार , ज्ञान संयम इत्यादि को गुरु के अंदर ढूंढते हैं । तो कोई अपनी सांसारिक कार्य की सिद्धि हेतु उनकी शक्ति को ढूंढते है । जैसे गन्ने में जहां गांठ होती हैं वहां रस नहीं होता जहां रस होता हैं । वहां गांठ नहीं होती वैसे ही जिसके जीवन रूपी गन्ने में यदि नफरत की गांठ होगी वहां जीवन भी प्रेम वात्सल्य रूपी रस के बिना होगा और जिसके जीवन में नफरत की गांठ नहीं होगी उसके जीवन में प्रेम वात्सल्य रुपी रस भरा होगा इसलिए प्रेम वात्सल्य रूपी रस से भरे रहिए । जिन्दगी में अपनी अहमियत बनाये रखने के लिए अच्छी सोच विचार के साथ अच्छे कार्य करते रहिये । जीवन में कभी किसी को ठुकराना नहीं क्योंकि ठुकराने वाले को ठोकर अवश्य मिलती है और जहां से प्रेम , वात्सल्य , करुणा , दया की गंगा बहती है वही से जैन धर्म प्रारंभ हो जाता है । आचार्य श्री निर्भयसागर ने कहा जैसे समुद्र में डूबे आदमी के प्राण निकलने पर मुर्दा तैरने लग जाता है वैसे ही ज्ञान की गहराई में डूबने से आत्मा शुद्ध हो जाती है और आत्मा संसार समुद्र से तर जाती है ।