
जबलपुर से जिला ब्यूरो चीफ राहुल सेन की रिपोर्ट/शहर में शराब के मनमाने दामों से जहां शराब प्रेमियों को अपनी जेबें ढीली करनी पड़ रही है तो वहीं प्रशासन और आबकारी विभाग पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई बार शिकायत आबकारी आयुक्त के कानों तक पहुँची कि शराब दुकानों में एमआरपी से ज्यादा पर शराब बेची जा रही है। दुकानों से रेट लिस्ट गायब हैं दुकानों में बिल नहीं दिया जा रहा है। लेकिन इन शिकायतों पर सख्त कदम नहीं उठाया गया जिससे शराब दुकान संचालकों के हौसले बढ़ते गए। लेकिन जिला प्रशासन के गोपनीय ऑपरेशन से पूरी सच्चाई सामने आ गई। तय किए गए अधिकारियों ने दुकानों से शराब की बोतल खरीदी, जिसमें ना तो उन्हें बिल दिया गया और ना ही दुकान में रेट लिस्ट चस्पा मिली। इतना ही नहीं एमआरपी से सौ रूपये अधिक कीमत पर शराब बेची जा रही है यह भी सही साबित हुआ।
दरअसल रोज रोज शराब को लेकर दुकान संचालकों पर तरह तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। इसकी सच्चाई जानने के लिए जिला प्रशासन ने खुद हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। प्रशासन ने एक ऐसी योजना बनाई, जिससे दुकानों की असलियत बिना कोई पूर्व सूचना दिए सामने लाई जा सके। इस कार्रवाई के तहत शहर के अलग-अलग अनुभागों में पदस्थ पटवारियों को आम ग्राहकों की तरह शराब दुकानों में भेजा गया। उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए कि वे अलग-अलग ब्रांड की शराब खरीदें, ऑनलाइन पेमेंट करें और हर खरीद का पूरी तरह दस्तावेजीकरण करें। इस जांच के दौरान पटवारियों ने जिस तरह से ग्राहक बनकर दुकानों में शराब खरीदी, वह पूरी तरह पेशेवर तरीके से किया गया। उन्होंने खरीदी गई हर शराब की बोतल की एमआरपी को नोट किया और फिर दुकान से मांगी गई कीमत को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के माध्यम से पूरा किया। इसके बाद उस ट्रांजेक्शन की रसीद, शराब की बोतल और दुकान के नाम के साथ विस्तृत पंचनामा तैयार किया गया। सभी प्रमाणों को बोतलों पर पर्ची लगाकर सुरक्षित रखा गया और अंत में एसडीएम कार्यालय में जमा किया गया।
एमआरपी से अधिक वसूली
जांच के बाद जो तथ्य सामने आए, उन्होंने सभी को चौंका दिया। कुछ शराब दुकानों में 200 रुपए एमआरपी की बोतल के लिए 280 से 300 रुपए तक की राशि ली गई। यानी प्रति बोतल 80 से 100 रुपए की अवैध वसूली की गई। इसका मतलब है कि सिर्फ एक दिन में हजारों-लाखों रुपए का अवैध मुनाफा कुछ दुकानों द्वारा कमाया जा रहा है, जो कानून और नीति दोनों का घोर उल्लंघन है।
दुकान में नहीं मिली रेट लिस्ट, बिल देने से इंकार
इस कार्रवाई के दौरान यह बात भी स्पष्ट हुई कि अधिकांश दुकानों में न तो शराब की रेट लिस्ट प्रदर्शित की गई थी और न ही ग्राहक को कोई बिल दिया गया। नतीजतन, ग्राहक को यह भी पता नहीं होता कि वह जो बोतल खरीद रहा है, उसकी असली कीमत क्या है। दुकान कर्मचारी मनमानी वसूली करते हैं और ग्राहक मजबूरी में बिना सवाल किए पैसा चुका देता है।
आबकारी विभाग पर उठे सवाल
शहर में इतने लंबे समय से यह अनियमितताएं जारी थीं, लेकिन आबकारी विभाग की ओर से कभी भी इस तरह की छानबीन या कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या विभाग ने जानबूझकर आंखें मूंद ली थीं? क्या कहीं न कहीं भ्रष्टाचार या मिलीभगत की भूमिका तो नहीं रही? इस पूरी स्थिति ने आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं।
भविष्य में और भी कड़ी कार्रवाई की संभावना
सूत्रों के अनुसार जिन दुकानों में नियमों का गंभीर उल्लंघन पाया गया है, उनकी रिपोर्ट अब शासन को भेजी जाएगी। यदि शिकायतें प्रमाणित पाई जाती हैं, तो संबंधित दुकानों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई भी संभव है। इसके अलावा दुकानों को भविष्य में ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है।