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विकासखण्ड चिकित्सा अधिकारी की ट्रांसफर में गड़बड़ी या संरक्षण……?

डॉ. आर. एल. सिदार और डॉ. सुरेश कुमार खूंटे अपने निजी हॉस्पिटल से महज कुछ ही दुरी पर पदस्थ, आखिर क्यों....?

वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज़ डिस्ट्रिक्ट हेड चित्रसेन घृतलहरे, 04 जुलाई  2025//पेंड्रावन // सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में स्वास्थ्य विभाग के दो प्रमुख अधिकारियों के ट्रांसफर को लेकर शासन की कार्यशैली पर गहरे सवाल उठ खड़े हुए हैं। 26 जून 2025 को जारी स्थानांतरण आदेश में सारंगढ़ और बिलाईगढ़ के विकासखंड चिकित्सा अधिकारियों (BMO) को हटाया गया था, लेकिन सिर्फ 4 दिन बाद, यानी 30 जून को उसी आदेश को संशोधित कर उन्हें फिर से उसी पद पर बहाल कर दिया गया। यह संशोधन मात्र एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संगठित प्रणालीगत सच्चाई को उजागर करता है जहाँ कुछ अधिकारी सालों से एक ही पद पर टिके, निजी अस्पताल चलाते हुए, नियमों और जवाबदेही से पूरी तरह मुक्त दिखाई देते हैं। स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों का गुस्सा अब इस बात पर है कि क्या शासन ने जानबूझकर ऐसे अधिकारियों को बचाने के लिए नियमों को मोड़ा है? और क्या यह ट्रांसफर आदेशों में राजनीतिक या आर्थिक प्रभाव का परिणाम है?

डॉ सिदार की पोस्टिंग सारंगढ़ से पत्थलगाव जशपुर और फिर पुनः सारंगढ़ वही डॉ सुरेश खूंटे की पोस्टिंग कोंडागांव और पुनः पोस्टिंग बिलाईगढ़:-

सूत्रों के अनुसार, बिलाईगढ़ BMO डॉ. सुरेश कुमार खूंटे वर्षों से एक ही पद पर टिके हुए हैं और पेंड्रावन में ‘सतगुरु हॉस्पिटल’ नाम से उनका निजी अस्पताल वर्षों से संचालित हो रहा है। वहीं सारंगढ़ BMO डॉ. आर. एल. सिदार भी लगभग दो दशकों से सारंगढ़ में ही जमे हुए हैं, जिनका निजी अस्पताल भी वहीं मौजूद है। इन दोनों के ट्रांसफर 26-06-2025 को जशपुर जिला और कोंडागांव जिला हुआ जिसकी खबर से जनता में लंबे समय बाद उम्मीद जगी थी कि शायद अब स्वास्थ्य सेवाओं में निष्पक्षता और सुधार आएगा। लेकिन जब चार दिन के भीतर ही 30-06-2025 को संशोधन आदेश आ गया, तो लोगों में गहरा आक्रोश फैल गया। कई कांग्रेस नेताओं ने इस फैसले को “भ्रष्टाचार का संरक्षण” करार देते हुए आरोप लगाया कि यह निर्णय धनबल और रसूख के दबाव में लिया गया है।

क्या कहती है सेवा नियमावली? निजी अस्पताल संचालन की छूट किस आधार पर?

इस प्रकरण में सबसे गंभीर सवाल यह है कि क्या इन अधिकारियों को अपने कार्यक्षेत्र में निजी अस्पताल संचालन की शासन से विधिवत अनुमति प्राप्त है? यदि नहीं, तो यह स्पष्ट रूप से केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 की नियम 15 का उल्लंघन है, जो कहती है: “कोई भी सरकारी सेवक, सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई व्यापार, व्यवसाय या प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकता।” और यदि अधिकारी Non-Practicing Allowance (NPA) ले रहे हैं, तो वे किसी भी रूप में प्राइवेट चिकित्सा प्रैक्टिस नहीं कर सकते। शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, NPA लेने वाले डॉक्टरों के लिए निजी प्रैक्टिस, प्रत्यक्ष या परोक्ष, दोनों वर्जित हैं। इतना ही नहीं, यदि उनका निजी अस्पताल Clinical Establishments (Registration and Regulation) Act, 2010 के तहत पंजीकृत है और उसमें डॉक्टर के रूप में उनका नाम दर्ज है, तो यह स्वतः इस बात का प्रमाण बनता है कि वे पूर्णकालिक सरकारी सेवा में रहते हुए निजी चिकित्सा सेवा दे रहे हैं, जो पूरी तरह प्रतिबंधित है।

बीएमओ का कर्तव्य 24 घंटे का — तो निजी अस्पताल चलाना कैसे संभव?

एक विकासखंड चिकित्सा अधिकारी की जिम्मेदारी सिर्फ कार्यालयीन समय तक सीमित नहीं होती। उनकी ड्यूटी 24 घंटे की होती है, जिसमें आपात स्थिति में कभी भी – दिन हो या रात – मरीजों की देखरेख के लिए तत्पर रहना अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में, अगर वही अधिकारी अपने निजी अस्पताल में मरीज देख रहे हों, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या सरकारी सेवाओं की उपेक्षा कर, निजी लाभ के लिए पद का दुरुपयोग नहीं किया जा रहा है?

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