
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी,8225072664-व्यंग्य – गंदी सोच
आजकल आदमी की सफाई देखकर धोखा मत खाइए, साबुन से सिर्फ हाथ-मुँह चमकता है, सोच नहीं। गंदी सोच का लोकतंत्र चारों ओर फहराता नज़र आता है।
गली का नाला चोक हो जाए तो मोहल्ला वाले नगर निगम को कोसते हैं, पर सोच का नाला जाम हो तो बड़े गर्व से कहते हैं – “भाई, दिमाग़ चलता है हमारा!”।
गंदी सोच वाले लोग समाज के असली “इन्वेंटर” हैं। वे वहाँ भी बुराई खोज लेते हैं, जहाँ कोई नहीं। कोई पेड़ लगाए तो कहेंगे – “ज़रूर फोटो खिंचवाने का शौक है”। कोई लड़की मुस्करा दे तो पूरा चरित्र-चित्रण लिख डालेंगे।
गंदी सोच का एक और कमाल है – यह बिना वाई-फाई के भी 24 घंटे ऑनलाइन रहती है। मीटिंग, शादी, संस्कार, यहाँ तक कि अंतिम यात्रा में भी इनके दिमाग़ में गंदगी की “लाइव स्ट्रीमिंग” चलती रहती है।
समाज में जितनी समस्याएँ हैं, उनमें से आधी गंदी सोच की देन हैं और बाकी आधी गंदी सोच वालों की सलाह पर बनाई गई योजनाओं की।
कुल मिलाकर, गंदी सोच वही है जो खुद तो बदबू फैलाती है, और जब कोई नाक बंद कर ले तो कहती है – “देखो, दूसरों से घमंड नहीं सहा जाता”।