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प्रभु जी मेटो पीर हमारी

प्रभु जी मेटो पीर हमारी

*अरदास*

🙏🙏🙏🙏🙏
प्रभु जी मेटो पीर हमारी।
पीर हुई है अतिशय भारी।।
मोह पाश में बाँधे माया।
गहन जाल उसने फैलाया।।

विषयों ने मति मारी मोरी।
रसना करती है मुँह जोरी।।
बुद्धि विवेक गया सब मारा।
नाथ तुम्हारा मिले सहारा।।

जब कोई भी राह न पाऊँ ।
तेरे दर पर दौड़ी आऊँ।।
थामों बैंया अब तो मोरी।
चरण पढूँ मैं भगवन तोरी।।

भूल क्षमा सब मेरी करना
अवगुण मेरे चित्त न धरना।।
सत की राह मुझे दिखलाओ।
भवसागर से पार कराओ।।

दुनिया के गोरख धंधे में।
लख चौरासी के फंदे में।।
और जनम कितने बीतेंगे।
“ऊषा” के बंधन टूटेंगे।।

*🙏🌹सुप्रभात जी🌹🙏*

*ऊषा जैन उर्वशी कोलकाता*

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