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साल 1942 से लेकर 1946 तक जब स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, तब डॉ बाबा साहेब आंबेडकर वायसराय की काउंसिल में श्रम मंत्री थे. जब संविधान सभा का गठन हो रहा था तब डॉ आंबेडकर ने मुंबई से चुनाव लड़ा था और हार गए थे. संविधान लागू होने के बाद साल 1951-1952 में देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ. बाबा साहब को उन्हीं के पीए नारायण काजरोलकर ने हराया था और उनकी यह चुनावी हार लंबे समय तक चर्चा में रही थी. आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में देश में बनी पहली अंतरिम सरकार में बाबा साहब विधि और न्यायमंत्री बनाए गए थे. इसी बीच, आम चुनाव की घोषणा हो गई जिसके लिए मतदान 1951 से लेकर 1952 तक हुए. इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर खुद भी लड़े पर जब नतीजे आए तो काफी चौंकाने वाले थे.चुनावी हार के बाद बाबा साहेब ने कहा था कि "मुझे अपने ही लोगों ने धोखा दिया है". डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने उत्तरी मुंबई सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले में उन्हीं के पीए नारायण एस काजरोलकर को मैदान में उतार दिया था. इसके अलावा इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने भी अपना-अपना प्रत्याशी खड़ा किया था. नारायण काजरोलकर दूध का कारोबार करते थे और राजनीति में वह नौसिखिए नेता थे. इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले थे और वह चौथे स्थान पर थे. वहीं, 1,37,950 वोट पाकर काजरोलकर चुनाव जीते थे. इसके बाद साल 1954 में बंडारा लोकसभा के लिए उप चुनाव हुआ था. इसमें भी डॉ. भीमराव आबंडेकर खड़े हुए पर एक बार फिर उन्हें कांग्रेस से हार का समाना करना पड़ा था. लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना के बाद नतीजा आया. कांग्रेस को बड़ी आसानी से स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ. कांग्रेस को पहले चुनाव में लोकसभा की 489 में से 364 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इसी तरह से पूरे देश में 3280 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे, जिनमें से उसे 2247 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तब पूरे संसदीय चुनाव के दौरान कांग्रेस को कुल मतदाताओं की संख्या का 45 फीसदी वोट मिला था. इसकी जीती सीटें कुल सीटों का करीब 74.4 फीसदी थीं. वहीं, राज्य विधानसभाओं के लिए हुए पड़े कुल वोटों में से उसे 42.4 फीसदी मत हासिल हुए थे. तब विधानसभाओं की 68.6 फीसदी सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था. हालांकि आश्चर्यजनक रूप से उस माहौल में भी कांग्रेस के 28 मंत्री चुनाव हार गए थे. ब्रिटेन से आज़ादी मिलने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही पहली संसद के सदस्य बने थे.इसके बाद जुलाई, 1946 में डॉ आंबेडकर संयुक्त बंगाल से संविधान सभा के सदस्य बने थे. तब संयुक्त बंगाल के एक महत्वपूर्ण नेता जोगेंद्र नाथ मंडल और हुसैन सोहरावर्दी की मदद से डॉ आंबेडकर ने खुलना से उप-चुनाव लड़ा और जीतकर संविधान सभा पहुंचे. आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाने के लिए मुस्लिम लीग ने अपने जीते हुए उम्मीदवार को इस्तीफ़ा दिलवाया और फिर हुए उप-चुनाव में मुस्लिम लीग के समर्थन से उनको वहां से खड़ा करवाया. विभाजन के बाद आंबेडकर का निर्वाचन क्षेत्र खुलना पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चला गया और आंबेडकर के सामने संविधान सभा में पहुंचने की चुनौती थी. महात्मा गांधी चाहते थे कि डॉ आंबेडकर संविधान सभा में रहें. उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद और सरदार वल्लभभाई पटेल को बुलाया और कहा कि मुझे हर हाल में डॉ आंबेडकर संविधान सभा में चाहिए. दोनों ने फिर डॉ आंबेडकर को खत लिखे और फिर उनको मुंबई प्रांत से चुनकर भेजा गया." कांग्रेस ने मुंबई में अपने एक नेता एम आर जयकर को इस्तीफ़ा दिलवाकर वहां से आंबेडकर को खड़ा करवाया और सदन में भेजा. इसके बाद डॉ. आंबेडकर ने संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में उल्लेखनीय योगदान दिया.

संविधान के विषय के उपर माहिती

प्रेस विज्ञाप्ति
प्रतिनिधि नागपुर

संविधान के विषय के उपर माहिती
साल 1942 से लेकर 1946 तक जब स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, तब डॉ बाबा साहेब आंबेडकर वायसराय की काउंसिल में श्रम मंत्री थे.

जब संविधान सभा का गठन हो रहा था तब डॉ आंबेडकर ने मुंबई से चुनाव लड़ा था और हार गए थे.

संविधान लागू होने के बाद साल 1951-1952 में देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ. बाबा साहब को उन्हीं के पीए नारायण काजरोलकर ने हराया था और उनकी यह चुनावी हार लंबे समय तक चर्चा में रही थी.

आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में देश में बनी पहली अंतरिम सरकार में बाबा साहब विधि और न्यायमंत्री बनाए गए थे.

इसी बीच, आम चुनाव की घोषणा हो गई जिसके लिए मतदान 1951 से लेकर 1952 तक हुए. इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर खुद भी लड़े पर जब नतीजे आए तो काफी चौंकाने वाले थे.चुनावी हार के बाद बाबा साहेब ने कहा था कि “मुझे अपने ही लोगों ने धोखा दिया है”.

डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने उत्तरी मुंबई सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले में उन्हीं के पीए नारायण एस काजरोलकर को मैदान में उतार दिया था. इसके अलावा इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने भी अपना-अपना प्रत्याशी खड़ा किया था.

नारायण काजरोलकर दूध का कारोबार करते थे और राजनीति में वह नौसिखिए नेता थे. इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले थे और वह चौथे स्थान पर थे. वहीं, 1,37,950 वोट पाकर काजरोलकर चुनाव जीते थे. इसके बाद साल 1954 में बंडारा लोकसभा के लिए उप चुनाव हुआ था. इसमें भी डॉ. भीमराव आबंडेकर खड़े हुए पर एक बार फिर उन्हें कांग्रेस से हार का समाना करना पड़ा था.

लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना के बाद नतीजा आया. कांग्रेस को बड़ी आसानी से स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ.

कांग्रेस को पहले चुनाव में लोकसभा की 489 में से 364 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इसी तरह से पूरे देश में 3280 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे, जिनमें से उसे 2247 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तब पूरे संसदीय चुनाव के दौरान कांग्रेस को कुल मतदाताओं की संख्या का 45 फीसदी वोट मिला था. इसकी जीती सीटें कुल सीटों का करीब 74.4 फीसदी थीं. वहीं, राज्य विधानसभाओं के लिए हुए पड़े कुल वोटों में से उसे 42.4 फीसदी मत हासिल हुए थे. तब विधानसभाओं की 68.6 फीसदी सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था.

हालांकि आश्चर्यजनक रूप से उस माहौल में भी कांग्रेस के 28 मंत्री चुनाव हार गए थे.

ब्रिटेन से आज़ादी मिलने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही पहली संसद के सदस्य बने थे.इसके बाद जुलाई, 1946 में डॉ आंबेडकर संयुक्त बंगाल से संविधान सभा के सदस्य बने थे. तब संयुक्त बंगाल के एक महत्वपूर्ण नेता जोगेंद्र नाथ मंडल और हुसैन सोहरावर्दी की मदद से डॉ आंबेडकर ने खुलना से उप-चुनाव लड़ा और जीतकर संविधान सभा पहुंचे.

आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाने के लिए मुस्लिम लीग ने अपने जीते हुए उम्मीदवार को इस्तीफ़ा दिलवाया और फिर हुए उप-चुनाव में मुस्लिम लीग के समर्थन से उनको वहां से खड़ा करवाया.

विभाजन के बाद आंबेडकर का निर्वाचन क्षेत्र खुलना पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चला गया और आंबेडकर के सामने संविधान सभा में पहुंचने की चुनौती थी.

महात्मा गांधी चाहते थे कि डॉ आंबेडकर संविधान सभा में रहें. उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद और सरदार वल्लभभाई पटेल को बुलाया और कहा कि मुझे हर हाल में डॉ आंबेडकर संविधान सभा में चाहिए. दोनों ने फिर डॉ आंबेडकर को खत लिखे और फिर उनको मुंबई प्रांत से चुनकर भेजा गया.”

कांग्रेस ने मुंबई में अपने एक नेता एम आर जयकर को इस्तीफ़ा दिलवाकर वहां से आंबेडकर को खड़ा करवाया और सदन में भेजा.

इसके बाद डॉ. आंबेडकर ने संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में उल्लेखनीय योगदान दिया.

वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज नागपुर
सम्पादक
दिल्ली क्राईम प्रेस, नागपुर
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