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उलझे हुए जीवन को सुलझाने की साधना है रामकथा – संत मुरलीधर जी महाराज

के डी अब्बासी

कोटा। दशहरा मैदान स्थित श्रीराम रंगमंच पर आयोजित श्रीराम कथा महोत्सव के पहले दिन पूज्य संत श्री मुरलीधर जी महाराज की अमृतवाणी में श्रद्धालुजनों को रामचरितमानस का महत्त्व और गुरु वंदना का भावपूर्ण रसपान कराया। मानस वक्ता मुरलीधर महाराज ने मंगलाचरण के बाद कथा के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा कि भगवान राम की कथा सुनने तथा उसे आत्मसात करने के बाद व्यक्ति के मन से हर प्रकार की शंका स्वतः ही दूर हो जाती है।

महाराज श्री ने रामकथा को उलझे हुए जीवन को सुलझाने वाली साधना बताते हुए कहा कि बिना सत्संग और रामकथा के विवेक उत्पन्न नहीं होता। वे तुलसीदास रचित पंक्तियाँ उद्धृत करते हैं “बिनु सतसंग न हरि कथा, तेहि बिनु मोह न भाग।” उन्होंने गुरू की व्याख्या करते हुए कहा कि गुरु चमत्कारी नहीं होता, बल्कि वह कृपा सिंधु है, जो अंधकार में प्रकाश का काम करता है।

 

घर में ग्रंथ रखने और विशेषकर महाभारत रखने को लेकर समाज में कई भ्रांतियां है। न महाभारत रखने से संकट आता है और न ही रामचरित मानस रखने से राम के संस्कार आप में आ जाते हैं। सनातन धर्म में रामायण और महाभारत दो जीवनदर्शन हैं- एक सिखाती है क्या करना चाहिए, दूसरी क्या नहीं करना चाहिए।

 

संत भाग्य नहीं, भाव बदलते हैं

अपने प्रवचन में संत श्री ने अंधविश्वासों और चमत्कारों की मानसिकता पर भी कटाक्ष किय़ा। उन्होंने कहा कि संत का काम साधक को ठाकुर जी से जोड़ने का है न की स्वयं से। संत भाग्य नहीं बदलते, वे भाव बदलते हैं। जब मन, वचन और कर्म से आप सेवा करते हैं, तभी संत के आशीर्वाद से कल्याण संभव होता है। जो भाग्य में लिखा होता है वो निश्चित है, टोटकों से प्रारब्ध नहीं बदल सकता ।

 

सत्संग दुर्लभ है, सहज नहीं मिलता

संत श्री ने कहा कि सत्संग और रामकथा कोई साधारण आयोजन नहीं, यह केवल उसे मिलता है जिस पर प्रभु श्री राम और हनुमानजी की विशेष कृपा होती है। वे कहते हैं, जब कथा मन में उतरती है, तभी मन परमात्मा की शरण में जाता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि वे रामचरितमानस साथ लाकर कथा में सहभागी बनें। कथा के प्रसंगों के साथ प्रस्तुत मधुर भजनों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।

 

राम से प्रेम ही सच्ची साधुता है

प्रवचन में पूज्य संत श्री मुरलीधर जी महाराज ने भरत चरित्र का उदाहरण देते हुए कहा कि भरत जी ने कैकई को केवल इसलिए बुरा-भला कहा क्योंकि उन्होंने राम से प्रेम त्यागकर भरत से प्रेम किया। महाराज श्री ने स्पष्ट किया कि साधु वही है, जिसका प्रेम स्वार्थरहित हो और जो प्रभु श्रीराम के चरणों में अटूट निष्ठा रखे।

 

कथा से पूर्व निकली भव्य कलश यात्रा

कथा से पूर्व डॉल्फिन चौराहे से भव्य कलश यात्रा निकाली गई। बड़ी संख्या में महिलाएं कलश धारण कर प्रभु श्रीराम के भजनों के साथ पहुंची। इस दौरान पूरा मार्ग “जय श्रीराम” के उद्घोष से गूंजता रहा और श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा से स्वागत किया। कलश यात्रा ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर कर दिया। इस दौरान श्रीराम कथा सेवा समिति की संरक्षक डॉ. अमिता बिरला, कथा आयोजक अशोक जाजोदिया, आनन्द जाजोदिया, सीता देवी, अनन्त प्रकाश जाजोदिया सहित सम्पूर्ण जाजोदिया परिवार औऱ सेवा समिति के पदाधिकारियों ने व्यासपीठ की पूजा कर संत श्री का आशीर्वाद लिया।

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