देवास। बसंत ऋतु में नवनीत की प्राप्ति होती है। पतझड़ के बाद वृक्षों मै नए पत्ते आते हैं। उसी तरह जीवन को भी समझना चाहिए कि आखरी में शिशु रूप धारण हो जाता है। बसंत प्रकृति का एक नया नित्य स्वरूप है।
प्रकृति साल में एक बार नवनीत रूप में नव श्रंगारित होती हैं। जैसे गेहूं में बाली आ जाती हैं, दाना आ जाता है दूध से दाना बनता है। उसी प्रकार पेड़ नया वस्त्र धारण करते हैं।
ऐसा ही मनुष्य को याद दिलाया जाता है कि साहब मेरा नित नया।हम नित नई सांस लेते हैं। इससे यह ध्यान दिखाया जाता है कि आप सत्य हो स्वास रूप हो विदेही हो। विदेही रूप को जीव धारण करता है।
जीव भी विदेही और स्वांस भी विदेही। दोनों मिलते हैं तब संदेह खत्म होता है। 84 लाख योनि का श्रृंगार चेतना, चेतना का स्वरूप तैयार होता है। उसी प्रकार मनुष्य में भी नवनीतता आती है।
मनुष्य बिना धरती के पैदा होता है। अपनी मां के नाभि कमल से। एक पौधा उगता है अंकुरित होता है वह जमीन पर उगाया जाता है। लेकिन मानव मां के नाभि कमल से ही जन्म लेता है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने प्रताप नगर कबीर प्रार्थना स्थली पर आयोजित दो दिवसीय बसंत महोत्सव के दौरान पहले दिन गुरुवाणी पाठ, तत्व बोध चर्चा, गुरु शिष्य संवद में प्रकट किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ सतगुरु मंगलम साहब द्वारा ध्वजारोहणकर किया गया इस अवसर पर सदगुरु कबीर के अनुयाई साध संगत, सेवादार बड़ी संख्या में उपस्थित थे।यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।