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स्वच्छता की राह पर राजस्थान: प्रथम विजेता इंदौर की स्वच्छता केस स्टडी से कोटा शहर के लिए गांधी ने सुझाया रोड़मेप

जब देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु कहती हैं कि “स्वच्छता एक संस्कार है,” तो यह सिर्फ एक नारा नहीं होता, यह एक दिशा होती है। हाल ही में हुए ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25’ के नतीजों ने एक बार फिर पूरे देश के सामने एक आईना रखा है। इस आईने में एक तरफ इंदौर है, जो लगातार 8वीं बार देश का सबसे साफ़ शहर बनकर गर्व से मुस्कुरा रहा है। वहीं दूसरी तरफ, हम हैं- कोटा के निवासी, जो ‘स्मार्ट सिटी’ और ‘शिक्षा नगरी’ का तमगा होने के बावजूद स्वच्छता की दौड़ में बहुत पीछे खड़े हैं। यह सवाल आज कोटा के हर नागरिक के मन में होना चाहिए कि आखिर हम चूक कहाँ रहे हैं? जब हमारे ही प्रदेश के जयपुर और डूंगरपुर जैसे शहर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान पा सकते हैं, तो कोटा क्यों नहीं? यह लेख किसी की आलोचना करने के लिए नहीं, बल्कि इंदौर की सफलता से सीखते हुए अपने शहर के लिए एक उम्मीद जगाने और एक रास्ता बनाने की कोशिश है।

हमारे राजस्थान के गौरवः जयपुर और डूंगरपुर

इससे पहले कि हम कोटा की कमियों पर बात करें, हमें यह देखना होगा कि हमारे अपने राज्य में सफलता के उदाहरण मौजूद हैं। जयपुर (विरासत का सम्मान): देश की ‘गुलाबी नगरी’ जयपुर को ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ में अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को साफ़-सुथरा रखने के लिए हमेशा सराहा गया है। जयपुर हेरिटेज नगर निगम ने यह दिखाया है कि पर्यटन और स्वच्छता साथ-साथ चल सकते हैं। यहाँ पुराने शहर की तंग गलियों से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक, सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यह साबित करता है कि बड़ी आबादी और पुरानी बसावट, गंदगी का बहाना नहीं हो सकते।

डूंगरपुर (जनता की ताकत): डूंगरपुर एक छोटा सा शहर है, जिसके पास इंदौर जैसे बड़े संसाधन नहीं हैं। लेकिन इस शहर ने जो कर दिखाया है, वह किसी जादू से कम नहीं। डूंगरपुर ने ‘डोर-टू-डोर’ कचरा कलेक्शन और गीले-सूखे कचरे को अलग करने के काम को एक जन-आंदोलन बना दिया। यहाँ की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से कचरा प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाई है। डूंगरपुर इस बात का सबूत है कि अगर नियत साफ़ हो और जनता साथ हो, तो छोटे शहर भी बड़ा कमाल कर सकते हैं।

जब जयपुर और डूंगरपुर यह कर सकते हैं, तो कोटा क्यों नहीं? हमारे पास तो संसाधन भी हैं, और ‘स्मार्ट सिटी’ का दिमाग भी। कमी है तो बस उस जज्बे की, जो इंदौर के लोगों में दिखता है।

 

👉* इंदौर का जादूः यह सिर्फ सफाई नहीं, एक सोच है*

✅जीरो लैंड फ्री सिटी, वेस्ट टू वेल्थ’ की ओर बढ़ता इंदौर शहर

✅ट्रीटेड वाटर बेचने की गई इंदौर में शुरुआत

✅एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट देश में सिर्फ इंदौर के पास

🫵* इंदौर ने फिर लहराया है परचम*

इंदौर ने एक बार फिर देश में स्वच्छता का परचम लहराया है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के नतीजे आज दिल्ली में घोषित किए गए हैं। इंदौर पिछले 7 सालों से लगातार सबसे स्वच्छ शहर चुना जा रहा है। आठवीं बार वह नंबर वन बना है। इंदौर नगर निगम और वहां के सफाईकर्मियों ने इसके लिए काफी मेहनत की है। साथ ही आमलोगों में भी स्वच्छता को लेकर जागरूकता पैदा की है। इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण में सुपर स्वच्छ लीग रखा गया था। इसमें इंदौर नंबर वन बना है। दूसरे नंबर पर सूरत है और तीसरे नंबर नवी मुंबई है। विजयवाड़ा चौथे नंबर पर है। इस बार के सर्वेक्षण में इंदौर के साथ सूरत और नवी मुंबई को भी टॉप श्री में जगह मिली है। वहीं 3 से 10 लाख की आबादी वाले शहरों की कैटेगरी में नोएडा पहले नंबर पर रहा, जबकि चंडीगढ़ दूसरे और मैसूर तीसरे स्थान पर रहे। राष्ट्रपति द्वारा पुनः इंदौर सम्मानित हुआ है। लोग अक्सर सोचते हैं कि इंदौर नगर निगम के पास कोई जादुई छड़ी है। लेकिन सच यह है कि इंदौर की सफलता किसी एक व्यक्ति या मशीन की नहीं, बल्कि पूरे शहर की बदली हुई सोच का नतीजा है। अगर हमें कोटा को बदलना है, तो हमें इंदौर की इन बातों को गहराई से समझना होगाः

1. मेरा घर ही नहीं, मेरा शहर भी साफ़ होः इंदौर के लोगों ने इस सोच को अपनाया है। वे घर का कचरा सड़क पर फेंकने से पहले सोचते हैं कि यह सड़क भी उनके घर का हिस्सा है। यह बदलाव रातों-रात नहीं आया। इसके लिए सालों तक अभियान चलाए गए, लोगों को समझाया गया, और स्वच्छता को इंदौर की पहचान से, उसके गौरव से जोड़ दिया

2. कचरा गाड़ी नहीं, सम्मान गाड़ी: इंदौर में जब कचरा लेने वाली गाड़ी आती है, तो एक गाना बजता है- “इंदौर बना है नंबर वन, इंदौर रहेगा नंबर वन। “यह गाना लोगों के लिए सिर्फ एक सूचना नहीं, बल्कि एक रिमाइंडर है कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी है। गाड़ी में गीले, सूखे, प्लास्टिक, और हानिकारक कचरे के लिए अलग-अलग खाने बने हैं। लोग स्वयं ही अपने घर पर कचरा अलग करके रखते हैं।

3. कचरा मतलब पैसा (वेस्ट टू वेल्थ): इंदौर ने यह साबित कर दिया है कि कचरा बोझ नहीं, बल्कि कमाई का जरिया है। गीले कचरे से गैसःघरों से निकलने वाले गीले कचरे से एशिया का सबसे बड़ा बायो-सीएनजी प्लांट चलाया जा रहा है। इस गैस से इंदौर की सिटी बसें चलती हैं। सोचिए, आपके किचन से निकला कचरा शहर की बसें चला सकता है। सूखे कचरे से कमाईः प्लास्टिक, कांच, और धातु को अलग करके रीसाइक्लिंग प्लांट में बेचा जाता है। इस काम में हजारों लोगों, खासकर महिलाओं को रोजगार मिला है। मल से खादःसीवेज के पानी को ट्रीट करके उससे जो खाद बनती है, उसे किसानों को बेचा जाता है।

4. लगातार निगरानी और राजनीतिक इच्छाशक्तिः इंदौर के मेयर और बड़े अधिकारी खुद सुबह-सुबह शहर की सड़कों पर सफाई का जायजा लेने निकल पड़ते हैं। नियम तोड़ने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाता है, लेकिन साथ ही अच्छा काम करने वाली कॉलोनियों और दुकानों को सम्मानित भी किया जाता है। यह दिखाता है कि सफाई उनकी प्राथमिकता है, सिर्फ एक चुनावी वादा नहीं।

 

👉🫵कोटा का सचः हम कहाँ गलती कर रहे हैं?*

अब बात करते हैं अपने शहर कोटा की। एक ‘स्मार्ट सिटी’ और ‘एजुकेशन हब’ होने के बावजूद, हमारी गलियों, बाजारों और सार्वजनिक जगहों पर गंदगी का आलम किसी से छिपा नहीं है। हमारी मुख्य समस्याएं हैं:

आम जन की सहभागिता का अभाव हम यह मानते हैं कि सफाई सिर्फ नगर निगम की जिम्मेदारी है। हम अपने घर को तो साफ़ रखते हैं, लेकिन बाहर की चिंता नहीं करते।

कचरा प्रबंधन की अधूरी कहानीः कचरा उठता तो है, लेकिन उसका सही तरीके से निपटारा नहीं होता। गीला-सूखा कचरा अलग करने की आदत अभी तक हममें नहीं आई है। शहर के बाहर कचरे के बड़े-बड़े ढेर (डंपिंग यार्ड) बीमारी और प्रदूषण फैला रहे हैं।

 

कोचिंग छात्रों की भूमिका नगण्यः कोटा में हर साल लाखों छात्र आते हैं, जो एक बड़ी आबादी का हिस्सा हैं। लेकिन उन्हें स्वच्छता अभियान से जोड़ने का कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ है। हॉस्टल और मेस से निकलने वाले कचरे का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है। प्रेरणा और गौरव का अभावः हमारे अंदर यह भावना ही नहीं है कि “हमारा कोटा सबसे साफ़ होगा।” हमने गंदगी को स्वीकार कर लिया है, यह हमारी सबसे बड़ी हार है।

👉* कोटा के लिए इंदौर मॉडल से सीखः एक व्यावहारिक रोडमैप* युवा मैनेजमेंट विश्लेषक, प्रख्यात आईआईपीएस मुंबई विश्विद्यालय के एलुमनाई, डेवलेपमेंट प्रैक्टिशनर डॉ नयन प्रकाश गांधी मानते है कि सिर्फ समस्याओं को गिनाने से कुछ नहीं होगा। हमें इंदौर से सीखते हुए अपने कोटा के लिए एक ठोस योजना बनानी होगी। यहाँ कुछ कदम दिए गए हैं, जिन्हें तुरंत उठाने की जरूरत है:

✅कोटा को स्वच्छ बनाने के मुख्य बिंदु

नंबर 1 – मानसिकता बदलो अभियानः “मेरा कोटा, मेरा गौरव” जैसा एक शक्तिशाली अभियान शुरू करें जो हर नागरिक, छात्र और दुकानदार तक पहुंचे।

नंबर 2 – कचरा पृथक्करण अनिवार्यः हर घर, दुकान और हॉस्टल के लिए गीला-सूखा कचरा अलग करना अनिवार्य किया जाए। नियम तोड़ने पर जुर्माने का प्रावधान हो।

नंबर 3 -‘Waste to Wealth’ प्लांट: इंदौर की तर्ज पर कोटा में भी गीले कचरे से बायो-सीएनजी और खाद बनाने का प्लांट स्थापित किया जाए। इससे नगर निगम की कमाई होगी और प्रदूषण कम होगा।

नंबर 4 – छात्रों को बनाओ ‘स्वच्छता दूत’: हर कोचिंग संस्थान और हॉस्टल में ‘स्वच्छता क्लब’ बनाए जाएं। छात्रों को इस अभियान का एम्बेसडर बनाया जाए। “सबसे स्वच्छ हॉस्टल” और “सबसे स्वच्छ कोचिंग” जैसे पुरस्कार शुरू किए जाएं।

नंबर 5 – टेक्नोलॉजी का सही उपयोगः कचरा गाड़ियों पर जीपीएस लगाने के साथ-साथ एक मोबाइल ऐप बनाया जाए, जहाँ लोग गंदगी की फोटो भेजकर शिकायत कर सकें और उस पर तुरंत कार्रवाई हो।

नंबर 6 – महिला शक्ति का उपयोगः डूंगरपुर की तरह, कोटा में भी महिला स्वयं सहायता समूहों को कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग के काम से जोड़ा जाए, जिससे उन्हें रोजगार मिले।

🫵इस रोडमैप को विस्तार से समझते हैं:

☑️पहला कदमः मानसिकता पर काम

कोटा नगर निगम को एक आक्रामक और सकारात्मक जागरूकता अभियान चलाना होगा। होर्डिंग्स, रेडियो जिंगल्स, नुक्कड़ नाटक और सोशल मीडिया के माध्यम से “मेरा कोटा, मेरा गौरव” का संदेश फैलाना होगा। इस अभियान का चेहरा शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर, शिक्षक और खुद कोचिंग संस्थानों के निदेशक बनें। जब शहर के सम्मानित लोग झाडू उठाएंगे, तो आम जनता खुद-ब-खुद जुड़ जाएगी।

दूसरा कदमः कचरे को घर पर ही अलग करना यह इस पूरी कवायद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। नगर निगम को हर घर में दो रंग के डस्टबिन (नीला और हरा) अनिवार्य करने होंगे। शुरुआत में लोगों को दिक्कत होगी, लेकिन जब कचरा गाड़ी सिर्फ अलग किया हुआ कचरा ही उठाएगी, तो लोग धीरे-धीरे सीख जाएंगे। कॉलोनियों में जागरूकता के लिए टीम भेजनी होगी जो लोगों को इसका महत्व समझाए।

तीसरा कदमः कचरे को कमाई में बदलना सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर कोटा में ‘Waste to Wealth’ प्रोजेक्ट पर निवेश करना होगा। शहर के कचरे से अगर सीएनजी बनने लगे और उससे सिटी बसें या ऑटो चलने लगें, तो यह एक क्रांति होगी। इससे न केवल शहर साफ़ होगा, बल्कि नगर निगम आत्मनिर्भर बनेगा और सैकड़ों लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

चौथा कदमः युवाओं की ऊर्जा का उपयोग

कोटा की सबसे बड़ी ताकत यहाँ के युवा और छात्र हैं। हमें उन्हें इस मिशन से जोड़ना होगा। हर कोचिंग में अनिवार्य रूप से ‘स्वच्छता शपथ’ दिलाई जाए। हर महीने एक दिन ‘कैंपस क्लीनिंग डे’ मनाया जाए। छात्रों को कचरे से कला (Waste to Art) जैसी प्रतियोगिताओं में शामिल किया जाए। जब देश का भविष्य इस अभियान से जुड़ेगा, तो सफलता निश्चित है।

* संकल्प का समयः

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 2047 के “विकसित भारत” का जो सपना देखा है, उसकी नींव “स्वच्छ भारत” पर ही रखी जाएगी। इंदौर ने दिखा दिया है कि यह सपना असंभव नहीं है। अब बारी हमारी है। कोटा सिर्फ एक शहर नहीं है, यह लाखों युवाओं के सपनों को पंख देने वाली धरती है। क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं कि हम उन्हें एक साफ़-सुथरा और स्वस्थ माहौल दें? अब बहाने बनाने का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी उठाने का समय है। नगर निगम, कोचिंग संस्थान, व्यापारी और हर एक नागरिक को मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि हम कोटा की पहचान सिर्फ ‘शिक्षा’ से नहीं, बल्कि ‘स्वच्छता’ से भी बनाएंगे। जिस दिन कोटा का हर नागरिक सड़क पर पड़ा एक कागज का टुकड़ा उठाकर कूड़ेदान में डालने लगेगा, उस दिन समझिए कि बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। आइए, इंदौर से प्रेरणा लें, जयपुर और डूंगरपुर से सीखें, और अपने कोटा को देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में लाने के लिए आज से ही जुट जाएं। जब तक हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा और प्रशासन अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से नहीं निभाएगा, तब तक कोटा का स्मार्ट सिटी का सपना अधूरा ही रहेगा। स्वच्छता केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है, और इसे प्राथमिकता देना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

✍️लेखक परिचय

डॉ. नयन प्रकाश गांधी, भारत के एक प्रख्यात युवा मैनेजमेंट विश्लेषक, चर्चित स्तंभकार, और करियर कोच हैं। भारत सरकार स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन अंतराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान मुंबई विश्विद्यालय के एलुमनाई रहे है एवं साथ ही पॉपुलेशन स्ट्डीज (शहरी क्षेत्रीय योजना), मार्केटिंग प्रबंधन, मानव संसाधन प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी (कंप्यूटर साइंस), सोशल वर्क आदि से उच्च योग्यता धारक है, गांधीं को उनके उच्चस्तरीय कार्यों हेतु कई अंतराष्ट्रीय कांफ्रेंसेज में ह्यूमन राइट्स, सोशल वर्क, प्रबंधन आदि में मानद डॉक्टरेट उपाधि से नवाजा जा चुका है।

गांधी को पूर्व में राज्य सरकार की विभिन्न परियोजना में कार्य का अनुभव है सरकारी गैर सरकारी लोक कल्याणकारी जन हितैषी योजनाओं के जमीनी स्तर के क्रियान्वयन, मूल्यांकन, प्रोजेक्ट प्रबंधन आदि का प्रगाढ़ अनुभव है। गांधी को उत्कृष्ट कार्यों के लिए नेशनल यूथ एक्सीलेंसी अवार्ड महाराष्ट्र सदन नई दिल्ली, लाइफ टाइम अचीवमेंट कलाम यूथ लीडरशिप अवार्ड अंतराष्ट्रीय युवा केंद्र नई दिल्ली, नोबेल सिटीजन सम्मान कंस्टीट्यूशन क्लब नई दिल्ली, नेशनल अवार्ड फॉर डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन (राज्य विभागीय टीम) नई दिल्ली, हाड़ौती गौरव कोटा रत्न, मोस्ट इन्फ्लूएंशियल कोच 40 under 40, अवार्ड फॉर कटिंग एज रिसर्चेज, युवा स्किल्ड चेंजमेकर, सोशल साइंटिस्ट, युवा अलंकरण, बेस्ट यूथ मोटीवेटर, बेस्ट परफॉर्मर इन रूरल डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट कंसल्टिंग आदि कई सम्मानों ने नवाजा जा चुका है और साथ ही सैकड़ों राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय कांफ्रेंसेज में गांधी ने सहभागिता की है पेपर प्रजेंटेशन देकर सेशन चेयर मॉडरेटर, गेस्ट स्पीकर, आदि में भी भूमिका अदा की है। आईआईएम अहमदाबाद, एनआईआरडी हैदराबाद, गुड गवर्नेस इनिशिएटिव, यूनिसेफ, यूएन ऑनलाइन आदि कई उच्चस्तरीय संस्थानों के फिजिकल और डिजिटल कार्यशालाओं से प्रबंधन, सीएसआर, रूरल डेवलेपमेंट, कम्युनिटी बिल्डिंग आदि कई विधाओं में प्रशिक्षण प्राप्त किया है, गांधी विभिन्न राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सामाजिक संस्थाओं के सदस्य भी रहे है और गांधी गुड गवर्नेस, रूरल डेवलेपमेंट, यूथ एंपावरमेंट, करियर डेवलपमेंट, लीडरशिप डेवलपमेंट डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन एवं समसामयिक विषयों पर प्रभावशाली लेखन एवं वक्ता के रूप में सक्रिय रहते है।

 

 

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