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संस्कृति पर भड़काऊ बयान और मनोरंजन का प्रभाव: एक विश्लेषण
भारत में राजनीति और मनोरंजन, दोनों का जनता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक नेताओं के भड़काऊ बयान और टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले कंटेंट दोनों ही संस्कृति को प्रभावित कर सकते हैं।भड़काऊ बयान और उनकी संस्कृति पर चोटBJP नेताओं—तेजस्वी सूर्या, अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा और रमेश बिधूड़ी—के विवादित और भड़काऊ बयान समय-समय पर चर्चा में रहे हैं। इन नेताओं के भाषणों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं।1. तेजस्वी सूर्या – कई बार उनके बयान सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले रहे हैं।2. अनुराग ठाकुर – 2020 के दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान उनका “देश के गद्दारों को…” वाला नारा विवादों में रहा।3. कपिल मिश्रा – उनके बयानों पर आरोप है कि वे सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।4. रमेश बिधूड़ी – हाल ही में संसद में उनके अपशब्दों ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया।इन बयानों से समाज में विभाजन की स्थिति बन सकती है और इससे संस्कृति को गंभीर खतरा हो सकता है, क्योंकि भारत की संस्कृति आपसी सद्भाव और भाईचारे की रही है।मनोरंजन और सांस्कृतिक प्रभावटेलीविजन और कॉमेडी शो भी समाज पर प्रभाव डालते हैं। कपिल शर्मा शो जैसे कार्यक्रमों पर आरोप लगते हैं कि वे डबल मीनिंग संवाद, महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियों और फूहड़ हास्य का सहारा लेते हैं। इस तरह का कंटेंट भारतीय मूल्यों और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, खासकर नई पीढ़ी पर।
- क्या सिर्फ एक पक्ष को दोष देना सही है?अगर भड़काऊ बयान संस्कृति के लिए खतरा हैं, तो फूहड़ता और डबल मीनिंग जोक्स भी उतने ही हानिकारक हो सकते हैं। संस्कृति को सिर्फ राजनीति से नहीं, बल्कि मनोरंजन और अन्य सामाजिक पहलुओं से भी खतरा हो सकता है। इसलिए, संतुलित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।
निष्कर्षभारत की संस्कृति को बचाने के लिए जरूरी है कि हम हर तरह की सांप्रदायिकता और अनैतिक मनोरंजन पर सवाल उठाएँ। राजनीति में जिम्मेदारी और शालीनता होनी चाहिए, वहीं मनोरंजन में भी शुद्ध और स्वस्थ हास्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।