
नई दिल्ली: आज (11 मई) ‘ऑपरेशन शक्ति’ परमाणु परीक्षण के 27 साल पूरे हो गए. तब पोखरण से दुनिया ने भारत की ताकत की गूंज सुनी थी. 11 मई 1998 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में पांच बमों के साथ भूमिगत परमाणु परीक्षणों की एक श्रृंखला आयोजित की थी. पोखरण में हुए परमाणु परीक्षणों की याद में हर साल 11 मई को भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पोकरण में परीक्षण कर दुनिया को चौंकाया था. परीक्षण से पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक खलबली मच गई थी. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में मिशन गुप्त रूप से पूरा किया गया. परीक्षण के दिन सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया था. ऐसा इसलिए किया ताकि मिशन की खुफिया एजेंसियों को भनक ना लगे. इसके लिए मई का महीना इसलिए चुना गया था कि क्योंकि इन दिनों राजस्थान में धूल भरी आंधियां चलती हैं. जिसकी वजह से सेटेलाइट भी तमाम गतिविधियों को पकड़ नहीं पाता है.
कैसे किया गया परमाणु परीक्षण
27 साल पहले 11 मई 1998 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में पांच बमों के साथ भूमिगत परमाणु परीक्षणों की एक श्रृंखला आयोजित करके इतिहास रचा था. 11 मई को दोपहर 3.45 बजे एक फ्यूजन और दो फिजियन बमों के विस्फोट के साथ निर्धारित कोड नाम ऑपरेशन शक्ति के तहत परीक्षण शुरू किए गए थे. उस समय की अटल बिहारी वाजपेई की सरकार से परीक्षणों के लिए मंजूरी मिलने के बाद भारत ने अमेरिका की नजरों से दूर सावधानीपूर्वक योजना बनाना शुरू कर दिया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि परीक्षणों में शामिल लोगों को पूर्ण गोपनीयता की शपथ दिलाई गई थी और साथ ही उन्हें हर कदम की तैयारी और योजना बनाने के लिए डेढ़ साल का समय दिया गया था.
ऐसा करने वाला छठा देश बना
भारत ने दो दिनों में पांच परमाणु विस्फोट किए. 11 मई को किए गए पहले परीक्षण में एक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस (हाइड्रोजन बम), एक फिजियन बम और एक सब-किलोटन डिवाइस शामिल थी. 13 मई को दो और सब-किलोटन डिवाइस का परीक्षण किया गया. इन परीक्षणों की सफलता ने भारत को अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के साथ सार्वजनिक रूप से परमाणु हथियार क्षमता का प्रदर्शन करने वाला दुनिया का छठा देश बना दिया. इन घटनाओं ने भारत की वैश्विक छवि में बदलाव की शुरुआत की, जिससे कूटनीतिक जुड़ाव बढ़ा. शुरुआती प्रतिबंधों के बावजूद परीक्षणों ने अंततः भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंधों को और मजबूत किया. जिसका उदाहरण 2005 का भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता है.
एपीजे अब्दुल कलाम ने किया नेतृत्व
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में यह मिशन गुप्त रूप से पूरा किया गया. परीक्षण के दिन सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया था. ऐसा इसलिए किया गया ताकि मिशन की खुफिया एजेंसियों को भनक ना लगे. साथ ही डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को कर्नल पृथ्वीराज का नकली नाम भी दिया गया था. परीक्षण के दौरान मिसाइलमैन डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम भी सैन्य वर्दी में मौजूद रहे. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बाद में देश के राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया.
परमाणु टेस्ट को मिली हरी झंडी
ऑपरेशन शक्ति परीक्षण की शुरुआत तब हुई जब साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने दिल्ली में साउथ ब्लॉक में एक सीक्रेट बैठक की। इसमें पीएम वाजपेयी, आडवाणी, एटॉमिक एनर्जी चीफ डॉक्टर आर. चिदंबरम, एनएसए ब्रजेश पाठक और डीआरडीओ प्रमुख अब्दुल कलाम शामिल थे। सब कुछ समझने के बाद अटल सरकार ने परमाणु टेस्ट की हरी झंडी दे दी।
एक के बाद एक 3 परमाणु टेस्ट
अटल बिहारी की सरकार ने 11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में एक के बाद एक 3 परमाणु टेस्ट किए। भारत के इस कदम से पूरी दुनिया दंग रह गई थी। इस पूरे ऑपरेशन को इस तरह से अंजाम दिया गया था कि किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। दरअसल, अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA भारत पर 4 सैटेलाइट के साथ पूरी नजर रखे हुए थी। लेकिन CIA को चकमा देने के लिए भारत ने पूरी तैयारी की थी।
अमेरिका की आंखों में झोंकी धूल
भारत ने अमेरिका की आंख में धूल झोंकते हुए इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। ऑपरेशन में शामिल होने वाले वैज्ञानिकों के नाम बदल दिए गए थे, इसके अलावा उन्हें सेना की वर्दी में परीक्षण स्थल ले जाया गया था। उन्हें ताजमहल, व्हाइट हाउस और कुंभकरण जैसे कोड दिए गए थे। सेना की वर्दी में डॉ. कलाम को मेजर जनरल पृथ्वीराज का नाम दिया गया था। अमेरिका के सैटेलाइट से बचने के लिए रात को काम किया जाता था। रात में उस वक्त काम होता था, जब अमेरिकी जासूसी सैटेलाइट दूसरी दिशा में मुड़ जाते थे। रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे गए।
कब मिला योजना को ऑपरेशन का नाम?
10 मई की रात को योजना को ऑपरेशन शक्ति नाम दिया गया। सुबह तड़के 4 ट्रकों से परमाणु बमों को परीक्षण स्थल लाया गया था। रेगिस्तान में खोदे गए कुओं में परमाणु बमों को रखा गया और उसके ऊपर बालू के टीले बनाए गए। इसके बाद पोखरण के खेतोलाई गांव में 11 मई 1998 को भारत ने परमाणु परीक्षण किया। जब विस्फोट हुआ तो एक बड़ा गड्ढा बन गया था।
न्यूक्लियर सिटी पोखरण: राजस्थान के रेगिस्तान में भारत की रणनीतिक ताकत का गढ़
जैसलमेर, राजस्थान – भारत के परमाणु शक्ति संपन्न प्रतिष्ठानों में से एक, पोखरण (Pokhran), जिसे ‘Nuclear City’ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में स्थित है। यह शहर न केवल भारत की परमाणु नीति का प्रतीक है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
परमाणु परीक्षणों का गवाह
पोखरण को भारत ने दुनिया के नक्शे पर उस समय दर्ज कराया जब 1974 में यहाँ पहला परमाणु परीक्षण ‘स्माइलिंग बुद्धा’ किया गया। इसके बाद 1998 में पोखरण-II (Operation Shakti) के तहत पाँच परमाणु परीक्षणों ने भारत को वैश्विक परमाणु ताकतों की पंक्ति में खड़ा कर दिया।
पोखरण में कब-कब हुए परमाणु परीक्षण?
पहला-18 मई 1974
दूसरा- 11 मई 1998
तीसरा- 13 मई 1998
भू-राजनीतिक दृष्टि से सामरिक स्थिति
पोखरण की स्थिति पाकिस्तान सीमा से क़रीब 100 किलोमीटर के दायरे में है, जिससे यह भारत की सामरिक योजना में एक फॉरवर्ड डिफेंस ज़ोन बन जाता है। यहाँ से पाकिस्तान के अंदर तक निगरानी और जवाबी कार्रवाई की क्षमता बनी रहती है।
सरकार ने किया ऐलान
इसके बाद सरकार की तरफ से परमाणु परीक्षण का ऐलान किया गया। इसके दो दिन बाद 13 मई को दो और परमाणु विस्फोट किए गए। इससे 45 किलोटन टीएनटी ऊर्जा पैदा हुई थी। इसमें फिजन और फ्यूजन दोनों तरह के परीक्षण किए गए थे। संयुक्त राष्ट्र तक ने इसकी आलोचना की, लेकिन भारत को बैन से ज्यादा इस बात की खुशी थी कि वह परमाणु शक्ति और शक्तिशाली देश बन गया था। ऑपरेशन शक्ति की वजह से आज भारत को शक्तिशाली देशों में गिना जाता है। ऑपरेशन शक्ति परीक्षण को भारत के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। अपने परमाणु परीक्षण से भारत ने न सिर्फ सबको चौंकाया, बल्कि पूरी दुनिया को अपनी ताकत का भी परिचय दिया था।