अदालत की कार्यवाही को विफल करने का प्रयास भी अवमानना के दायरे में: सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि न्यायालय का अवमानना अधिकार केवल व्यक्त आदेशों के उल्लंघन तक सीमित नहीं है। यह उन कार्यों पर भी लागू होता है, जिनका उद्देश्य अदालती कार्यवाही को विफल करना या अंतिम निर्णय को निष्प्रभावी बनाना होता है।
न्यायालय ने कहा:
“न्यायालय का अवमानना अधिकार क्षेत्र केवल स्पष्ट आदेशों की अवज्ञा तक सीमित नहीं है। यदि पक्षकार अदालती कार्यवाही को विफल करने या अंतिम निर्णय को दरकिनार करने का प्रयास करते हैं, तो वह भी अवमानना के बराबर होगा। इस प्रकार के कृत्य न्यायपालिका के अधिकार और न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करते हैं।”
यह टिप्पणी जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने सेलीर एलएलपी बनाम बाफना मोटर्स (मुंबई) मामले में की।
केस का घटनाक्रम:
मामला संपत्ति के नीलामी खरीद से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया था और बैंक को नीलामी खरीदार (याचिकाकर्ता) को बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया। लेकिन कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान उधारकर्ता ने संपत्ति को किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दिया था।
न्यायालय ने कहा:
“संपत्ति का हस्तांतरण न केवल न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है बल्कि न्याय प्रक्रिया को विफल करने का एक प्रयास भी है। ऐसे मामलों में पक्षकारों का जानबूझकर किया गया आचरण अवमानना के बराबर होगा।”
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को अवमानना का दोषी ठहराने से परहेज करते हुए उन्हें निर्णय का पालन करने का अवसर दिया।
न्यायालय का निष्कर्ष:
“किसी भी निषेधात्मक आदेश की अनुपस्थिति में भी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को दरकिनार करने का प्रयास अवमानना माना जाएगा।”
यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और आदेशों के अनुपालन के महत्व को रेखांकित करता है।
(वंदे भारत लाइव न्यूज़ | संपर्क: एलिक सिंह, संपादक | 📞 8217554083)