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संसार में कोई भी वस्तु भगवान से अलग नहीं/पूज्य गुरुदेव पं,हरिनारायण शास्त्री वृंदावन धाम

अभिषेक लोधी

संसार में कोई भी वस्तु भगवान से अलग नहीं/पूज्य गुरुदेव पं,हरिनारायण शास्त्री वृंदावन धा

अभिषेक लोधी  सांचेत

सांचेत ग्राम नांदनबारा में श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन शनिवार को भागवत व्यास पूज्य गुरुदेव पं,हरिनारायण शास्त्री वृंदावन धाम वाले ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा सुनाई। जिसे सुनकर सभी श्राेता भक्ति में लीन हो गए।जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण से संस्कार की सीख लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा हैं.

उसके बाद भी वह अपने माता पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे।श्रीमद् भागवत कथा के माध्यम से भागवत व्यास पूज्य गुरुदेव पं,हरिनारायण शास्त्री वृंदावन धाम बालो ने पहले धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने कहा कि जब-जब धरा पर अत्याचार, दुराचार, पापाचार बढ़ा है, तब-तब प्रभु का अवतार हुआ है।प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। जब धरा पर मथुरा के राजा कंस के अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए, तब धरती की करुण पुकार सुनकर श्री हरि विष्णु ने देवकी माता के अष्टम पुत्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया। इसी प्रकार त्रेता युग में लंकापति रावण के अत्याचारों से जब धरा डोलने लगी तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जन्म लिया, ऐसे तमाम प्रसंग श्रोताओं को सुनाएं, जिसे सुनकर उपस्थित श्रोता भक्ति भाव में तल्लीन हो गए। गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया।प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है कथा व्यास ने बताया कि वास्तविकता में श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया।

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