
सीकर/फतेहपुर. पंचायत परिसीमन के नए प्रस्ताव के खिलाफ नारसरा गांव में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला। ग्रामवासियों ने नवगठित ग्राम पंचायत बीबीपुर बड़ा में शामिल किए जाने का विरोध करते हुए प्रशासन को ज्ञापन सौंपा और मांग की कि नारसरा को पुनः पूर्ववर्ती बांठोद ग्राम पंचायत में ही रखा जाए।
ग्रामीणों ने विरोध दर्ज कराते हुए निम्नलिखित ठोस कारण प्रस्तुत किए:
भौगोलिक दूरी का तर्क: नारसरा और बांठोद की दूरी मात्र 100 मीटर से भी कम है, जबकि बीबीपुर बड़ा पंचायत की दूरी 5 किलोमीटर से अधिक है। ऐसे में नारसरा को बीबीपुर में शामिल करना हास्यास्पद और अव्यवहारिक है।
ऐतिहासिक संबंध: नारसरा गांव पंचायतीराज अधिनियम के लागू होने से लेकर अब तक बांठोद ग्राम पंचायत का अभिन्न हिस्सा रहा है। इस ऐतिहासिक जुड़ाव को अनदेखा करना ग्रामीणों के साथ अन्याय है।
आवागमन की सुविधा: विकलांग, असहाय और बुजुर्ग लोगों के लिए बांठोद पंचायत आवागमन के लिहाज से अधिक सुविधाजनक और सरल है, जबकि बीबीपुर की दूरी और मार्ग दोनों ही असुविधाजनक हैं।
शैक्षणिक और प्रशासनिक लाभ: बांठोद पंचायत का मुख्यालय राजकीय विद्यालय के पास स्थित है, जिससे छात्रों और आमजन को जाति प्रमाण पत्र, मूल निवास, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, ई-मित्र आदि आवश्यक सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।
भौगोलिक और सामाजिक एकता: नारसरा और बांठोद गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वे एक ही ग्राम जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे दो करीब बसे गांवों को अलग-अलग पंचायतों में बांटना लोगों को अनावश्यक परेशानी में डालने जैसा है।
जनभावनाओं के खिलाफ निर्णय: बांठोद ग्राम पंचायत से नारसरा को हटाकर बीबीपुर बड़ा में शामिल करना ग्रामीणों की जनभावनाओं के पूर्णतः खिलाफ है। गांववाले इस निर्णय से बेहद निराश हैं और इसे बदलवाने के लिए संघर्षरत हैं।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांग पर त्वरित निर्णय नहीं लिया गया, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। उनका स्पष्ट कहना है कि यह लड़ाई केवल पंचायत सीमा की नहीं, बल्कि गांव की सुविधा, भावनात्मक जुड़ाव और अधिकारों की है।