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नेहरू-अयूब खान के 64 साल पुराने समझौते पर मोदी सरकार ने लिया फैसला

✍️अजीत मिश्रा✍️ 

“‘एक्वा बम’: पानी की बूंद-बूंद को तरसेगा पाकिस्तान!

“नेहरू-अयूब खान के 64 साल पुराने समझौते पर मोदी सरकार ने लिया फैसला”

सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे से संबंधित एक समझौता है। यह समझौता 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षर किया गया था. विश्व बैंक ने इस समझौते में मध्यस्थता की.

सिंधु नदी प्रणाली में कुल 6 प्रमुख नदियां हैं-
* सिंधु
* झेलम
* चेनाब
* रावी
* ब्यास
* सतलुज

समझौते के तहत जल का बंटवारा
* पश्चिमी नदियां: सिंधु, झेलम, और चेनाब का जल अधिकार पाकिस्तान को मिला।
* पूर्वी नदियां: रावी, ब्यास और सतलुज का जल अधिकार भारत को मिला।

भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित इस्तेमाल की अनुमति है, जैसे-
* सिंचाई
* घरेलू इस्तेमाल
* जल को बिना रोक कर रखे बिजली उत्पादन

इस समझौते के तहत सिंधु नदी प्रणाली के 20% पानी भारत को और 80% पानी पाकिस्तान को दिया गया है.

सिंधु जल समझौता:
* समय: 19 सितंबर 1960.
* स्थान: कराची.
* हस्ताक्षरकर्ता: भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान.
* मध्यस्थ: विश्व बैंक.

प्रावधान:
* सिंधु नदी प्रणाली के 20% पानी का उपयोग भारत को घरेलू, गैर-उपभोग्य उद्देश्यों के लिए (जैसे सिंचाई, बिजली उत्पादन) करने का अधिकार है.
* सिंधु नदी प्रणाली के 80% पानी का उपयोग पाकिस्तान को करने का अधिकार है.
* भारत को पूर्वी नदियों (ब्यास, सतलज, रावी) का उपयोग करने का अधिकार है.
* पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का उपयोग करने का अधिकार है.

सिंधु नदी सिंधु घाटी सभ्यता का एक बेहद जरूरी हिस्सा है। यह नदी दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से निकलती है और कश्मीर से होते हुए और पंजाब के खेतों में बहते हुए अरब सागर में चली जाती है। इस नदी की मुख्य सहायक नदियों में झेलम, चिनाब, रावी और ब्यास शामिल हैं।

यह पहला मौका है जब भारत ने सिंधु जल समझौता पर रोक लगाया है। पाकिस्तान की करीब 80% कृषि सिंचाई सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर है। सिंधु जल समझौते पर भारत के रोक लगाने पाकिस्तान में जल संकट उत्पन्न होगा और इसका असर कृषि पर पड़ेगा।

वहीं, सिंधु नदी से जुड़े कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पाकिस्तान में हैं। ऐसे में जल की कमी से इनका उत्पादन प्रभावित होगा और ऊर्जा संकट गहराएगा, जो पाकिस्तान में पहले से ही एक बड़ी समस्या है। वहीं, पाकिस्तान के पंजाब और सिंध क्षेत्रों में लाखों लोग इस नदी प्रणाली पर पीने के पानी के लिए निर्भर हैं।


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