
🔴 शीर्षक: “जब ईश्वर भी समाजसेवा चाहता है” – श्री सांवरिया सेठ मंदिर में ₹23 करोड़ का चढ़ावा, लेकिन क्या अब वक़्त नहीं कि ये धन सीधे गरीबों के आंसू पोंछे?
राजस्थान के प्रसिद्ध श्री सांवरिया सेठ मंदिर में इस बार भक्तों ने जो चढ़ावा अर्पित किया, वह देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। ₹23 करोड़ नकद, 132 किलो चांदी, और 700 ग्राम सोना— यह न केवल आस्था की ताकत है, बल्कि सामाजिक सोच की भी कसौटी है। सवाल यह नहीं कि भक्तों ने क्या दिया, सवाल यह है कि अब यह धन कहां जाएगा?
आज भारत में लाखों लोग भुखमरी, बीमारी, अशिक्षा और बेघरपन से जूझ रहे हैं। सरकारी योजनाएं अपनी जगह हैं, लेकिन ज़मीन पर हालात गवाही देते हैं कि जरूरतमंदों तक मदद अब भी सीमित है। क्या अब समय नहीं आ गया कि धार्मिक संस्थाएं, जो समाज का नैतिक नेतृत्व करती हैं, अपना योगदान सीधा जनसेवा में दें?
⛪ धार्मिक स्थलों को समाज की उम्मीद बनना होगा
हर साल देश के प्रमुख मंदिरों में करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है। कुछ मंदिरों ने इस दिशा में अच्छा उदाहरण पेश किया है – जैसे तिरुपति बालाजी मंदिर की अस्पताल व विश्वविद्यालय परियोजनाएं या शिरडी ट्रस्ट द्वारा संचालित भोजनालय। लेकिन यह अपवाद हैं, नियम नहीं।
श्री सांवरिया सेठ मंदिर जैसे प्रतिष्ठानों से समाज को यह अपेक्षा है कि उनका धन भव्य आरती और सोने के दरवाज़ों से आगे बढ़कर उन ज़रूरतमंद आंखों तक पहुंचे, जो वर्षों से किसी मदद का इंतजार कर रही हैं।
🙏 भक्ति वहीं सच्ची है जो भूख मिटाए, शिक्षा दे, इलाज कराए
आज यदि ₹23 करोड़ का चढ़ावा—
5,000 जरूरतमंद मरीजों के मुफ्त ऑपरेशन में लगे,
10,000 गरीब बच्चों को किताबें, यूनिफॉर्म और स्कूल फीस मिले,
1,000 बेटियों की शादी गरिमापूर्वक हो सके,
भूख से तड़पते हज़ारों परिवारों की थाली भर जाए,
तो यही चढ़ावा सबसे बड़ी आरती बन जाएगा। यही भक्ति का सामाजिक स्वरूप होगा।
🗣️ जनता का सवाल – क्या मंदिर ट्रस्ट जवाब देगा?
अब समाज जागरूक है। लोग सवाल पूछ रहे हैं— क्या भगवान सिर्फ़ स्वर्ण सिंहासन पर रहेंगे, या गरीब की झोंपड़ी में भी उजाला लाएंगे? अगर मंदिरों को करमुक्त आय मिलती है, तो उन्हें सार्वजनिक जवाबदेही भी निभानी चाहिए।
✍️ निष्कर्ष:
मंदिर आस्था का केंद्र हैं, लेकिन अब उन्हें सामाजिक नेतृत्व का भी केंद्र बनना होगा। श्री सांवरिया सेठ मंदिर के पास आज यह ऐतिहासिक अवसर है कि वह देश को एक नया संदेश दे— ईश्वर सिर्फ मंदिर में नहीं, भूखे की रोटी में, बीमार की दवा में और अनपढ़ की किताब में भी बसते हैं।
✍️ रिपोर्ट: एलिक सिंह
संपादक – वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़
उत्तर प्रदेश महासचिव – भारतीय पत्रकार अधिकार परिषद
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