
ग्वालियर: एक शताब्दी से अधिक समय से पहले सिर्फ 50 हजार की आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया तिघरा जलाशय (बांध) आज शहर की 16 लाख की आबादी पर प्यास बुझा रहा है। सिंधिया रियासत के तत्कालीन महाराज माधौराव सिंधिया के आग्रह पर मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (जिनकी स्मृति में अभियंता दिवस मनाया जाता है) ने इस बांध का निर्माण कराया था। बांध की खासियत इसके 64 फ्लड गेट थे, जो पानी के अतिरिक्त दबाव से खुद ही खुलते थे। बाद में यह गेट पहेली बन गए।
इन्हें वेल्डिंग से बंद कराकर 2003 में रेडियल गेट लगाए गय। अब जब बांध का जल स्तर (739 फीट) से अधिक हो जाता है तो इन्हें खोल दिया जाता है। हाल ही में 12 सितंबर को इन्ही सात गेट को खोलकर अतिरिक्त पानी बहाया गया। सिविल इंजीनियरिंग के इस बेजोड़ उदाहरण का निर्माण वर्ष 1906 से आरंभ हुआ और इसका कार्य 1916 में पूरा हुआ। दरअसल, तत्कालीन ग्वालियर रियासत में अकाल पड़ा था।
रियासत में जंगल भी बहुत थे और नदियां भी पर्याप्त थीं, लेकिन ऐसा कोई साधन नहीं था कि रियासत के जल संसाधनों को आपातकाल के लिए संग्रहित कर रखा जा सके। ऐसे में तत्कालीन महाराजा माधौराव ने फैसला किया कि शहर की प्यास बुझाने और आपातकाल में किसानों को पानी देने लिए एक बड़ा बांध बनाया जाए। मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया ने महाराजा माधौराव के आग्रह को मानकर ग्वालियर के लिए बांध बनाने की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली।
सर्वे के बाद तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे सांक नदी के क्षेत्र को बांध के लिए चुना गया। करीब 24 मीटर ऊंचे और 1341 मीटर लंबे इस बांध की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक फीट है। इसमें विश्वेश्वरैया ने खुद के ईजाद किए फ्लड गेट लगाए थे, जिन्हें बाद में विश्वेश्वरैया गेट के नाम से पेटेंट भी कराया गया था।
इसलिए बंद कराए फ़लड गेट
- इसलिए बंद कराए फ्लड गेट तिघरा बांध के ऐतिहासिक 64 गेटों की इंजीनियरिंग वर्तमान में अब भी पहेली है। ये गेट पानी के दबाव से स्वयं कैसे खुलते थे, इसकी इंजीनियरिंग बाद में भी किसी को समझ नहीं आई। क्योंकि एक कुएं में अधिक पानी भरने पर एक बार में बांध के आठ गेट खुल जाते थे।
- जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री राजेश चतुर्वेदी बताते है कि बाद में यह कार्यप्रणाली समझ में नहीं आने पर इन गेटों को वेल्डिंग कराकर स्थायी रूप से बंद कर दिया गया। इसके बाद यहां 16 जंक्शन गेट लगाए गए थे, लेकिन उनसे भी पानी की निकासी पर्याप्त नहीं होती थी। इसके बाद यहां सात रेडियल गेट लगाए गए, जो वर्तमान में मोटरों की सहायता से खोले जाते हैं।