धनबाद: धनबाद जिले में छह विधानसभा क्षेत्र हैं. तीन पर भाजपा की जीत हुई है. दो पर माले ने विजय पाई है. तो एक पर झामुमो की जीत हुई है. माले के दोनों विधायक को राजनीति विरासत में मिली है .तो झरिया और बाघमारा के भाजपा विधायको पर भी परिवार की राजनीति को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी है .
निरसा के विधायक अरूप चटर्जी के पिता गुरुदास चटर्जी निरसा से विधायक रह चुके हैं. वह एके राय की पार्टी के बड़े नेता थे. उनकी हत्या के बाद उनके पुत्र अरूप चटर्जी राजनीति में आए और उसके बाद आगे बढ़ते चले गए. सिंदरी की बात की जाए तो विधायक बबलू महतो के पिता आनंद महतो सिंदरी से चार बार विधायक रहे. इस बार बढ़ती उम्र के कारण वह चुनाव नहीं लड़े. उनके पुत्र बबलू महतो पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े और वह विधायक बन गए .पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की उनके ऊपर बड़ी जिम्मेवारी होगी. वही झरिया की बात की जाए तो झरिया सीट को भाजपा ने इस बार कांग्रेस से छीन ली है. रागिनी सिंह झरिया से विधायक चुनी गई है. रागिनी सिंह फिलहाल सिंह मेंशन का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. कोयलांचल में सिंह मेंशन की राजनीति को आगे बढ़ाने की रागिनी सिंह पर बड़ी जवाब दे ही होगी.
इसी प्रकार बाघमारा से भाजपा के टिकट पर शत्रुघ्न महतो चुनाव जीते हैं. शत्रुघ्न महतो सांसद ढुल्लू महतो के बड़े भाई हैं. धनबाद लोकसभा से ढुल्लू महतो के सांसद चुने जाने के बाद बाघमारा सीट खाली हुई थी. बाघमारा सीट से भाजपा ने उनके भाई को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीत गए. बाघमारा में भी सांसद ढुल्लू महतो की राजनीति को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी विधायक शत्रुघ्न महतो पर होगी.
टुंडी विधानसभा से 2019 की तरह इस बार भी झामुमो की जीत हुई है और मथुरा प्रसाद महतो वहां से चुनाव जीत गए हैं. धनबाद सदर विधानसभा से भाजपा के टिकट पर राज सिन्हा लगातार तीसरी बार चुनाव जीते हैं. वह खुद राजनीति में आए और अपनी बदौलत तीन बार विधायक बने. यह अलग बात है कि राज सिन्हा को पूर्व सांसद पशुपतिनाथ सिंह का सहयोग मिला और वह राजनीति में आगे बढ़ते चले गए. टुंडी से झामुमो के विधायक मथुरा प्रसाद महतो झामुमो सुप्रीमो के साथ भी काम कर चुके हैं. इस वजह से वह झामुमो के वरीय नेताओ में गिने जाते हैं.
इस प्रकार देखा जाए तो धनबाद जिले से चुने गए चार विधायकों के कंधों पर विरासत को आगे बढ़ाने की बड़ी जिम्मेवारी है. यह अलग बात है कि धनबाद जिले के किसी भी विधानसभा क्षेत्र से झारखंड सरकार में कोई मंत्री नहीं बना है. बावजूद धनबाद को विधायकों से बड़ी उम्मीद है. सबने चुनाव के पहले कुछ ना कुछ घोषणाएं की है .अब उन घोषणाओं को कसौटी पर कसने का समय आ गया है. सबसे बड़ी बात है कि एक समय का हंसता खेलता धनबाद जिला आज परेशानी में है. उद्योग धंधे बुरे हाल में चल रहे हैं. कोयला आधारित उद्योगों को कच्चा माल नहीं मिल रहा है. कोयला उद्योग राष्ट्रीयकरण के बाद उस समय के कोलियरी मालिक के परिवार वालों ने हार्ड कोक उद्योग में बड़ी पूंजी लगाई. उद्योग चला भी, लेकिन अब कच्चे माल के अभाव में लगभग सभी उद्योग बंद हो गए हैं .उद्योग मालिकों की माने तो वही उद्योग चला पा रहे हैं, जो चोरी के कोयला का उपयोग कर रहे हैं. साफ सुथरा व्यवसाय करने वाले घर में बैठ गए हैं. उद्योग धंधे बंद होने के बाद बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ गई है. एक आंकड़े के अनुसार इस उद्योग पर धनबाद के एक से डेढ़ लाख की आबादी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पा रही थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. कोयला चोरी के लिए कुख्यात हो चुका धनबाद अब उद्योगों के लिए भी “काल” बन गया है.