
सीधी।आदिवासी बाहुल्य विकासखंड क्षेत्र कुसमी का आखिरी ग्राम पंचायत अमरोला जिसकी सीमा पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से लगती है वहां पंचायती राज के माध्यम से बह रही विकास की गंगा के सारे दस्तावेज गायब हो गए हैं।
यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वहां पदस्थ पंचायत सचिव श्रीमती लीलावती यादव ने यह जानकारी चर्चा के दौरान दी है। श्रीमती यादव से उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क कर जब हमने पंचायत के संबंध में कुछ आवश्यक जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि जानकारी दे पाना संभव नहीं है क्योंकि पंचायत में कोई रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं है। आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे पहले उन्हें जनपद में कई वर्षों तक अटैच रखा गया था। अमरोला में पदस्थ रोजगार सहायक गंगा प्रसाद यादव के जिला पंचायत सीधी में अटैच हो जाने पर उन्हें यहां का सचिव नियुक्त किया गया है लेकिन जब उन्होंने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई तो यहां पर पंचायत में बिल वाउचर और अन्य किसी भी तरह का रिकॉर्ड उन्हें नहीं मिला। इसके ठीक उल्टा जब हमने रोजगार सहायक गंगा प्रसाद से उनके मोबाइल पर संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है पंचायत में समस्त रिकार्ड उपलब्ध है। सवाल यह उठता है कि ग्राम पंचायत के रिकॉर्ड और दस्तावेज जब पंचायत में उपलब्ध नहीं है तो क्या रोजगार सहायक गंगा प्रसाद यादव के घर में रखे हुए हैं। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि ग्राम पंचायत अमरोला जो कि सीधी जिले और जनपद पंचायत कुसमी की 42 ग्राम पंचायत में से आखिरी ग्राम पंचायत है जहां विकास के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ है इसलिए यहां पदस्थ रहे पंचायत सचिवों ने जाते-जाते अपने कारनामों का काला चिट्टा भी गायब कर दिया हो और उस पर पर्दा डालने की नीयत से मई – जून 2024 से यहां पदस्थ पंचायत सचिव श्रीमती लीला यादव को आज तक कोई भी दस्तावेज और रिकॉर्ड प्राप्त नहीं हुआ है जो कि रोजगार सहायक गंगा प्रसाद यादव की छत्र छाया में उनके घर में रखे हुए हैं। सवाल यह उठता है कि गंगा प्रसाद ने सरकारी दस्तावेजों पर कब्जा क्यों जमा रखा है जबकि वह रिकॉर्ड पंचायत सचिव के पास होना चाहिए। इसका सीधा और सरल जवाब है पंचायत में विकास के नाम पर हुए भ्रष्टाचार और पूर्व सचिवों की करतूत पर परदा डालने तथा अपनी सहभागिता को छुपाने की नीयत से गंगा प्रसाद सरकारी दस्तावेजों पर कुंडली मारे बैठा हुआ हैं।
“इस संबंध में जनपद पंचायत कुसमी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ज्ञानेंद्र मिश्रा का कहना है कि संबंधित व्यक्ति को रिकॉर्ड उपलब्ध कराने हेतु नोटिस जारी किया जा चुका है।”
नोटिस जारी होने के बाद भी रोजगार सहायक द्वारा रिकॉर्ड और दस्तावेज उपलब्ध न कराना सभी संदेहों का सबूत बन जाता है ।