
*जालौन में जातिगत समीकरणों से निकलेगी जीत – गठबंधन का उम्मीदवार तय करेगा जीत हार*
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*जालौन में 6 बार BJP का कब्जा, 40 साल से जीत के लिए तरस रही कांग्रेस इसबार गठबंधन के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के खाते में गयी सीट*
आजादी के बाद से 1952 में आम चुनाव होने शुरू हुए। शुरुआत में लगातार जालौन लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी जीतते रहे पर 1991 के रामलहर में चीजें बदल गईं। बीजेपी ने पहली बार खाता खोला। 1984 के बाद से इस सीट पर कांग्रेस जीत हासिल नहीं कर सकी है।
देश में अगले माह लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रही है। बुंदेलखंड की चुनिंदा लोकसभा सीटों में से जालौन में आजादी के बाद सबसे पहले चुनाव 1952 में हुआ था। कांग्रेस के लोटन राम लोकसभा के पहले सांसद बने थे। इसके बाद 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में इसी परिवार के लच्छीराम ने जीत दर्ज कर कांग्रेस का दबदबा बनाया। 1962 में कांग्रेस के रामसेवक ने बाजी मारी। इसके बाद हैट्रिक लगाते हुए चौधरी राम सेवक 1967 और 1971 में भी सांसद चुने गए। इमरजेंसी के आक्रोश की आग के बाद इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा टूटा। पहली बार 1977 के चुनाव में कांग्रेस को यहां हार मिली और लोकदल ने जीत हासिल की। इसके बाद 1980 और 1984 के चुनावों में यहां पर कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की। नाथूराम और लच्छीराम सांसद बने। 1989 में यहां जनता दल ने खाता खोला और जीत दर्ज की। आज 40 साल बीत गए और इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी एक जीत के लिए तरस गई है। इस लोकसभा 16 बार चुनाव हुए जिसमें में 7 बार कांग्रेस को जीत मिली है।
जालौन की लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इसमें कालपी, उरई, माधौगढ़, भोगनीपुर, गरौठा – 5 विधानसभाएं आती हैं। यहां पर साक्षरता दर 73.7 है। जनसंख्या के मामले में ये यूपी में 57वें नंबर पर आता है। यहां की आबादी 26 लाख 25 हजार 771 है। यहां पर प्रथम स्वतंत्रा संग्राम की चिंगारी भी फूटी थी। किसी जमाने में यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, फिलहाल यहां बीजेपी का कब्जा है।
1991 के चुनाव में जनता दल के राम सेवक भाटिया से बीजेपी ने यह सीट छीन ली। बीजेपी के गया प्रसाद कोरी पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1996 और 1998 दोनों ही चुनावों में यहां बीजेपी जीती और भानु प्रताप वर्मा सांसद बने। 1999 में यहां तख्ता पलट हुआ और बसपा के बृजलाल खाबरी ने भानु प्रताप वर्मा को हैट्रिक नहीं बनाने दिया। साल 2004 के चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी ने वापसी की और भानु प्रताप सिंह जीते। 2009 में यहां पहली बार सपा ने खाता खोला और घनश्याम अनुरागी चुनाव जीते। 2014 में फिर से ये सीट बीजेपी के खाते में गई और भानु प्रताप सांसद चुने गए। भानु प्रताप वर्मा ने बसपा के प्रत्याशी बृजलाल खाबरी को 2 लाख 87 हजार 202 वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया था।
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक चला और बीजेपी के भानु प्रताप वर्मा ने एक बार फिर बंपर वोटों से जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर सपा से कांग्रेस में आ चुके बृजलाल खाबरी रहे। तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के घनश्याम अनुरागी रहे। 2019 में फिर बीजेपी सरकार रिपीट हुई और भानु प्रताप वर्मा पांचवीं बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी बीएसपी प्रत्याशी अजय पंकज को 1 लाख 57 हजार 377 वोटों से मात दी।
जालौन लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति का फैक्टर काफी मायने रखता है। यहां 45 फीसदी एससी वोटर्स हैं इनमें सबसे बड़ी संख्या लगभग तीन लाख के आसपास में जाटव/दोहरे/अहिरवार वोटरों की है । इसके बाद ओबीसी वोटर्स की संख्या 35 और सामान्य 20 फीसदी हैं। वहीं डेढ़ लाख कुर्मी है तो डेढ़ लाख की संख्या में मुसलमान आते है। अनुसूचित बाहुल्य होने की वजह से इस सीट को आरक्षित की श्रेणी में रखा गया है।
इसबार यदि गठबंधन पुराने घिसे पिटे चेहरों की बजाए नये चेहरे को जो विनम्र और ईमानदार हो , जो दलित समाज के वोटरों में अपनी पकड़ रखता हो ऐसा कैंडिडेट बनाती है तो बीजेपी प्रत्याशी को हराना मुश्किल नहीं है क्योंकि देखा ये जा रहा है कि वर्तमान बीजेपी सांसद व मंत्री जी की क्षेत्र के प्रति उदासीनता कार्यकर्ताओ में विशेष हर्षोल्लास नहीं भर रही है …उनके टिकट की घोषणा होने पर भी क्षेत्र में उल्लास का वातावरण नहीं है। जनता के बीच निराशा का माहौल है एक ही आवाज़ आ रही है फिर 5 साल झेलना पड़ेगा क्योंकि क्षेत्र में विकास कराना इनकी डिक्शनरी में है नहीं। एक सर्वे में जनता से पूछे गये सवाल कि वर्तमान सांसद जो 5 बार सांसद चुने गए उनके द्वारा क्षेत्र में कोई विशेष कार्य या उपलब्धि – जनता के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता..
रिपोर्ट= हिमांशु सोनी वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़ जालौन
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