कुछ पदचिन्हो पर चलते है, कुछ पदचिन्ह बनाते है
संवाददाता पंकज कुमार शुक्ला
बहराइच
यह पंक्तियां डॉक्टर सत्यभूषण सिंह पर लागू होती है, चाहे लगातार समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले हो,चाहे पूर्व सैनिक हो,चाहे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हो, समाज के हर वर्ग की पीड़ा को पहचानने और जानने का काम किया है डॉ.सत्य भूषण सिंह ने, अपने कार्यों से समाज को एक नई दिशा और दशा प्रदान करने की भी लगातार कोशिश करते रहते हैं, समाज में चाहे वह दबा हो कुचला हो,चाहे कोई भी कैसा भी वर्ग का व्यक्ति हो बिना किसी भेदभाव को उसकी सेवा के लिए उसे सम्मानित करना और उसे एक मंच प्रदान करना सत्य भूषण सिंह के जीवन का लक्ष्य है, अपने निजी जीवन में भी उन्होंने कई उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन वह कभी अपनी इन उपलब्धियां का जिक्र नहीं करते अगर समाज में कोई छोटा सा छोटा भी काम कर रहा है समाज के हित में काम कर रहा है तो उसे वह प्रोत्साहित करने का काम करते हैं, जिससे समाज में उसकी सहभागिता लगातार बनी रहे, हर वर्ग हर व्यक्ति को प्रोत्साहित करना उन्हें उनके कार्यों के लिए सम्मानित करना, अपने महान पिता एवं कवि सत्यव्रत सिंह को लगातार उनकी कृतियों का चाहे संपादन करना हो चाहे उनकी कृतियों का संपादन करना हो चाहे उनकी कृतियों को देश एवं समाज को समर्पित करना हो यह कार्य भी डॉ. सत्यभूषण सिंह लगातार करते रहे, एक पुत्र के रूप में भी वह अपने कर्तव्यों का पालन करते आ रहे हैं,लोगों से चाहे उनके वैचारिक मतभेद चाहे जितने भी रहे हो, लेकिन कभी भी उन्होंने इसको व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया है, उनके लिए समाज में कार्य करने वाला हर व्यक्ति चाहे वह कैसा भी है उसको भी सम्मान दिलाने में डॉ.सत्य भूषण सिंह कभी पीछे नहीं हटते हैं, किसान महाविद्यालय में लगातार साहित्यिक मंचों को सजाना हो चाहे समाज के विभिन्न वर्गों में काम कर रहे लोगों को पुरस्कृत करना हो, देश और विदेश के विद्वानों के बीच बैठकर मंच साझा करना हो अपनी बात बड़ी बेबाकी के साथ वह रखते है,और बिना किसी लाग लपेट के वह हमेशा समाज में ऐसे लोगों को आगे बढ़ाते रहे हैं, समाज में ऐसे लोगों की जरूरत थी और हमेशा रहेगी. शायद यह पंक्तियां उनके जीवन पर सटीक बैठती हैं,
कुछ पदचिन्हो पर चलते हैं,
कुछ पदचिन्ह बनाते है.