सिद्धार्थनगर ।
ककरहवा।ककरहवा में कस्टम कार्यालय खुले सात वर्ष हो चुके हैं, लेकिन ककरहवा में अब तक इमीग्रेशन कार्यालय नहीं खुल सका है। इसके कारण ककरहवा के रास्ते विदेशी पर्यटक भारत में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।विदेशी पर्यटकों को भारत के कपिलवस्तु आने के लिए सोनौली के रास्ते 100 किलो मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि ककरहवा से लुंबिनी की दूरी नौ किलोमीटर और ककरहवा से कपिलवस्तु की दूरी 10 किलोमीटर है। लुंबिनी से कपिलवस्तु की दूरी अधिक होने के कारण विदेशी पर्यटक कपिलवस्तु आए बिना लुंबिनी से वापस चले जाते है।ककरहवा में इमीग्रेशन अप्रवासन कार्यालय न होने से म्यांमार, जापान, श्रीलंका, कंबोडिया आदि देशों के बौद्ध धर्मावलंबी पर्यटकों को तथागत की कीड़ास्थली कपिलवस्तु आने में काफी असुविधा होती है। विदेशी पर्यटकों को सोनौली बॉर्डर होते हुए कपिलवस्तु आना पड़ता है। यदि ककरहवा में इमीग्रेशन कार्यालय खुल जाये तो विदेशी पर्यटकों को लुंबिनी से कपिलवस्तु आने में काफी सुविधा होगी। तथागत की जन्मस्थली लुंबिनी ककरहवा बॉर्डर से मात्र नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं और भगवान बुद्ध की क्रीड़ा स्थली कपिलवस्तु ककरहवा से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर है।
-कुंवर चंदन सिंह, डायरेक्टर पीस टूर एंड ट्रेवल्स लुंबिनी
अप्रवासन कार्यालय ककरहवा में खुलने से लुंबिनी तथा आसपास के क्षेत्र का विकास होगा। होटल तथा पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। भगवान बुद्ध का दर्शन करने अधिक संख्या में विदेशी पर्यटकों का आना होगा।
-राजेश ज्ञवाली, नेता नेपाली कांग्रेस
भारत और नेपाल के लोगों का रोटी बेटी का रिश्ता है। इमीग्रेशन कार्यालय ककरहवा में खुलने से रिश्तों में और मजबूती आएगी। ककरहवा में इमीग्रेशन कार्यालय खुले इसके लिए प्रयास करूंगा।
-डॉ. सुधीर मिश्र, माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल
दोनों देशों के लोगों में रिश्ता मजबूत करने के लिए सरकार की ओर से निरंतर प्रयास किया जा रहा है। ककरहवा को एक विकसित व्यापारिक केंद्र बनाने के लिए भारत सरकार यहां 100 एकड़ जमीन अधिग्रहण कर बहुउद्देशीय व्यापारिक हब बनाना चाह रही है।
दिलीप पांडेय, ग्राम प्रधान ककरहवा
दोनों देशों के नागरिकों को एक दूसरे के यहां आने के लिए किसी पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं पड़ती है। भारत और नेपाल में रोटी और बेटी का रिश्ता है। अप्रवासन कार्यालय ककरहवा में खुलने से दोनों देशों के रिश्तों में और अधिक मजबूती आएगी।