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बीजेपी बना दल बदलू का अड्डा।

महाराष्ट्र के वो पांच दल बदलू नेता जो अब तक हर पार्टी का ले चुके मजा।

विजय कुमार भारद्वाज/मुंबई

महाराष्ट्र के वो पांच दल बदलू नेता जो अब तक हर पार्टी का ले चुके मजा।

  • बीजेपी बना दल बदलू का अड्डा।

मुंबई : राज्य महाराष्ट्र के वो पांच दल बदलू नेता जो अब तक हर पार्टी का ले चुके हैं ‘मजा’।भारत में नेताओं के दल बदलने का खेल साल 1960-70 में हरियाणा से शुरू हुआ था. लेकिन धीरे-धीरे यह रोग पूरे भारत में फैल गया. 2014 के बाद से नेताओं के दल बदलू के मामलों में काफी तेजी आई। बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा।लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बजने के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने साथ लाने की कोशिश में भी लगी हैं। इसी क्रम में शरद पवार को एक और बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के विधान पार्षद एकनाथ खडसे ने हाल ही ऐलान किया कि वो आने वाले 15 दिनों में पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।खडसे ने ये ऐलान शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में तीन साल रहने के बाद किया। इससे पहले 2020 तक वह बीजेपी में ही थे. एकनाथ खडसे ने 2020 में 40 साल बाद भारतीय जनता पार्टी से रिश्ता तोड़ा था और उस वक्त उन्होंने बीजेपी छोड़ने के पीछे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और गिरीश महाजन को जिम्मेदार ठहराया था।वैसे तो महाराष्ट्र में अब दल बदल की राजनीति कोई नई और चौंकाने वाली बात नहीं रह गई है। लेकिन आज से तीन दशक पहले किसी नेता का इस तरह दल-बदल कर दूसरे पार्टी में जाना विश्वासघात माना जाता था। 1985 के दशक में जब छगन भुजबल और नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी थी तो उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से गंभीर धमकियों का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं उनके साथ पार्टी छोड़ने वाले अधिकांश विधायक दोबारा निर्वाचित नहीं हो सके।ऐसे में इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र के उन पांच दल बदलू नेताओं के बारे में जानते हैं, जो अब तक लगभग हर पार्टी का हिस्सा रह चुके हैं…1. एकनाथ खडसे एकनाथ खडसे महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के सबसे पुराने और बड़े कद के नेताओं में एक रहे हैं. खडसे को एक समय नितिन गडकरी, दिवंगत गोपीनाथ मुंडे के समकालीन माना जाता है। उन्होंने उत्तरी महाराष्ट्र में बीजेपी की पकड़ मजबूत करने में काफी मदद की थी। इतना ही नहीं वह देवेंद्र फडणवीस सरकार में मंत्री भी रह चुके थे।हालांकि, साल 2016 में भूमि सौदे के एक मामले के लेकर उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा था। इस्तीफे के बाद पांच साल तक खडसे को राजनीतिक रूप से हाशिये पर धकेल दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने साल 2020 में बीजेपी का साथ छोड़ शरद पवार की पार्टी ज्वाइन कर ली थी।परिवार का राजनीति में खासा दखल एकनाथ खडसे महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा नाम तो है लेकिन उनके परिवार का खासा दखल है। वर्तमान में वह एनसीपी कोटे से एमएलसी हैं और उनकी बहू रक्षा खडसे रावेर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से दो बार की सांसद रह चुकी हैं। और अब तीसरी बार भी चुनावी मैदान उतर चुकी हैं। वहीं उनकी बेटी एनसीपी (शरद पवार) का हिस्सा हैं और महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष हैं।2. राहुल नार्वेकर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल सुरेश नार्वेकर वर्तमान में बीजेपी में हैं, लेकिन नार्वेकर भी एक समय शिवसेना में थे। साल 2014 में शिवसेना ने जब लोकसभा चुनाव के लिए उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी तो उन्होंने इसी साल एनसीपी ज्वाइन कर लिया था।साल 2014 में एनसीपी में शामिल होने के बाद उन्होंने मावल निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। इसके बाद उन्होंने उस पार्टी का साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का हाथ थाम लिया था। नार्वेकर 2019 में चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे, और उन्हें दक्षिण मुंबई के कोलाबा से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया था। उनके भाई, मकरंद और भाभी, हर्षिता, दो साल पहले नगर निकाय भंग होने तक कोलाबा में आसपास के वार्डों से नगरसेवक थे।3. अब्दुल सत्तार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुती सरकार में एक और विवादित मंत्री हैं, जिनका नाम अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी है। वह मध्य महाराष्ट्र की सिलोद विधानसभा से तीन बार के विधायक हैं। 2004 में महज 301 वोटों से हार झेलने वाले अब्दुल सत्तार पिछले तीन चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को पटखनी देते हुए विधानसभा पहुंचे हैं।अब्दुल सत्तार महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर से आते हैं, जिसे पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था। इस शहर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। सत्तार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1984 में ग्राम पंचायत सदस्य के तौर पर की थी और 1999 में कांग्रेस का हाथ थामा था। उस साल पार्टी ने सत्तार को विधानसभा प्रत्याशी भी बनाया।सत्तरह सालों तक कांग्रेस का हाथ थामने के बाद सत्तार ने स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी से समर्थन नहीं मिलने पर नाराजगी जताते हुए इस्तीफा दे दिया। हालांकि, वह पार्टी के विधायक बने रहे। वहीं, जब कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव में सत्तार को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया, तो उन्होंने बगावती रुख दिखाया।इसके बाद कांग्रेस ने अप्रैल 2019 में उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन करने का फैसला भी किया और तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात भी की। हालांकि, फिर उनके क्षेत्र के मतदाताओं और खुद बीजेपी नेताओं के विरोध के चलते वह पाला नहीं बदल पाए।बीजेपी में शामिल नहीं होने का मलाल अब्दुल सत्तार ने शिवसेना ज्वाइन करके पूरा किया। वह 2019 में पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में शिवसेना में शामिल हुए थे।4. नारायण राणे नारायण राणे साल 1985 से लेकर साल 1990 तक शिवसेना के पार्षद थे। इसके बाद साल 1990 तक उन्हें विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया था।साल 1999 में नारायण राणे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, हालांकि 4 साल बाद 2005 में उद्धव ठाकरे से मतभेद के कारण उन्होंने शिवसेना छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए थे।5. छगन भुजबल           छगन भुजबल वर्तमान में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में हैं, लेकिन 1960 के दशक में उन्होंने अपना राजनीतिक करियर शिवसेना से शुरू किया था। भुजबल ने 1991 में शिवसेना का साथ छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दामन थाम लिया था।जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने का फैसला लिया था। उसके बाद छगन ने एनसीपी को समर्थन दिया था। 2016 में छगन भुजबल की मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तारी भी हो चुकी है।भारत में दल बदल का आंकड़ा भारत में नेताओं के दल बदलने का खेल साल 1960-70 में हरियाणा से शुरू हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे यह रोग पूरे भारत में फैल गया। साल 2014 के बाद से नेताओं के दल बदलू के मामलों में काफी तेजी आई।एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 से लेकर 2021 तक सांसद और विधायक स्तर के 1 हजार से ज्यादा नेता दल बदल के खेल में शामिल हो चुके हैं।2014 के बाद सबसे ज्यादा दल बदलू नेता बीजेपी में गए।साल 2014 के बाद अलग-अलग पार्टियों के सबसे ज्यादा नेता बीजेपी में ही शामिल हुए हैं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार केवल 2014 से लेकर 2021 तक विधायक-सांसद स्तर के 426 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है।वहीं 2021 से 2023 की बात करें तो इस साल तक विधायक और सांसद स्तर के लगभग 200 नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। 2021 से 2023 तक गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दल बदल का खेल हुआ। इस दौरान विपक्षी पार्टी कांग्रेस में केवल 176 दल बदलू नेता शामिल हुए। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अलावा दल बदलुओं की सबसे पसंदीदा जगह एनडीए की सहयोगी शिवसेना और लोजपा जैसे दल हैं।

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