
प्रदर्शन का उद्देश्य और तात्पर्य:
NSUI का यह प्रदर्शन कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाने और पारदर्शिता की मांग करने के लिए था। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि इस महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति के लिए सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और यह नियुक्ति राजनीतिक दबाव या किसी अन्य संदिग्ध तरीके से की जा रही है।
कुलपति की टेबल पर नोटों का ढेर रखने के साथ ही NSUI ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि विश्वविद्यालय में शिक्षा का माहौल खराब हो रहा है और यदि इस नियुक्ति पर सवाल नहीं उठाए गए तो यह पूरे संस्थान के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
नोटों का ढेर और विरोध का तरीका:
प्रदर्शनकारियों ने कुलपति की कार्यकक्ष में नोटों का ढेर रखकर एक चौंकाने वाला और विचारणीय प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन कुलपति की नियुक्ति में भ्रष्टाचार के संकेत के तौर पर देखा गया। NSUI के नेताओं ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह प्रदर्शन किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार या गड़बड़ी के खिलाफ है और वे विश्वविद्यालय में शिक्षा व्यवस्था में सुधार चाहते हैं।
प्रदर्शनकारियों का आरोप:
NSUI के सदस्यों ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय में शिक्षा के बजाय राजनीतिक पार्टियों के प्रभाव और पैसों का खेल हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर इसी तरह की नियुक्तियां होती रही, तो यह विश्वविद्यालय और छात्र समुदाय के लिए अत्यंत घातक साबित होगा।
कुलपति की नियुक्ति को लेकर उठे सवाल:
हाल ही में, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति पर काफी विवाद हुआ था। कुलपति की नियुक्ति को लेकर NSUI और अन्य छात्र संगठनों ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह नियुक्ति केवल राजनीतिक कारणों से हुई है, न कि शैक्षिक योग्यता या अनुभव को ध्यान में रखते हुए।
NSUI का बयान:
NSUI के प्रदेश अध्यक्ष ने इस प्रदर्शन के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “हम विश्वविद्यालय की प्रशासनिक कार्यप्रणाली और कुलपति की नियुक्ति के मामले में पूरी पारदर्शिता की मांग करते हैं। हम छात्रों के हितों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
निष्कर्ष:
कुलपति की नियुक्ति पर उठे विवादों और NSUI के अनोखे प्रदर्शन ने इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। विश्वविद्यालय में बेहतर शिक्षा प्रणाली और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया की मांग अब तेज हो गई है। यह प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि छात्रों के हितों की रक्षा के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे वह विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन क्यों न हो।