
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार को जारी मतगणना के आए रुझानों से अब लगभग साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी करने जा रही है। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया सहित सत्तारूढ़ दल के कई अन्य प्रमुख नेता चुनाव हार गए हैं।

दिल्ली की पटेल नगर विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी को जीत मिली है। यह सीट नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में आती है। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पटेल नगर इलाका सिविल सेवाओं की परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए चलने वाली कई कोचिंग संस्थानों के लिए भी जाना जाता है। 2025 में दिल्ली में होने वाले चुनावों में आप ने भाजपा से आप में शामिल हुए प्रवेश रतन को मैदान में उतारा था। वहीं भाजपा में आप के टिकट से विधायक रहे राज कुमार आनंद को टिकट दिया था।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, प्रवेश रतन ने 4049 वोटों से जीत दर्ज की है। राज कुमार आनंद दूसरे नंबर पर और कृष्णा तीरथ तीसरे नंबर पर रहे।
दिल्ली को विधानसभा मिलने की ऐसी है कहानी
दिल्ली को विधानसभा कैसे मिली, इसकी कहानी 1952 से शुरू हुई। 1952 पार्ट-सी राज्य के रूप में दिल्ली को एक विधानसभा दी गई। 1956 में उस विधानसभा को भंग कर दिया गया। 1966 में दिल्ली को एक महानगर परिषद दी गई।
दिल्ली राज्य विधानसभा 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के तहत अस्तित्व में आई। 1952 की विधानसभा में 48 सदस्य थे। मुख्य आयुक्त को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान था, जिसके संबंध में राज्य विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति दी गई थी।
राज्य पुनर्गठन आयोग (1955) की सिफारिशों के बाद दिल्ली 1 नवंबर 1956 से भाग-सी राज्य नहीं रही। दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत केंद्र शासित प्रदेश बन गया। दिल्ली में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और उत्तरदायी प्रशासन की मांग उठने लगी। इसके बाद दिल्ली प्रशासन अधिनियम, 1966 के तहत महानगर परिषद बनाई गई। यह एक सदनीय लोकतांत्रिक निकाय था जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे।
इसके बाद भी विधानसभा की मांग उठती रही। 24 दिसंबर 1987 को भारत सरकार ने सरकारिया समिति (जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) नियुक्त की। समिति ने 14 दिसंबर 1989 को अपनी रिपोर्ट पेश की और सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना रहना चाहिए, लेकिन आम आदमी से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अच्छी शक्तियों के साथ एक विधानसभा दी जानी चाहिए। बालाकृष्णन समिति की सिफारिश के अनुसार, संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 पारित किया, जिसने संविधान में नए अनुच्छेद 239AA और 239AB डाले, जो अन्य बातों के साथ-साथ दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था करते हैं। लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मुद्दों पर विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं था। 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बाद दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और मुख्यमंत्री मिला।
कैसा है पटेल नगर का चुनावी इतिहास?
1972 में यहां सबसे पहले चुनाव हुए। इन चुनावों में भारतीय जन संघ के विजय कुमार मल्होत्रा ने कांग्रेस उम्मीदवार सविता बहन को 1,899 वोट से हराया। 1977 में यहां फिर से चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी के केदारनाथ साहनी ने कांग्रेस के भगवान दास वर्मा को 7,171 वोट से हरा दिया। 1983 में हुए चुनावों में भाजपा के मेवाराम आर्य ने कांग्रेस के गोविंद लाल को 2,111 वोट से हरा दिया।
1993: भाजपा ने दर्ज की जीत
दिल्ली को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद 1993 में विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा के एम.आर. आर्य ने कांग्रेस मनोहर अरोड़ा को 2,147 वोट से हरा दिया।
1998: कांग्रेस को मिली जीत
1998 के चुनावों में मुकाबला फिर से कांग्रेस और भाजपा के बीच में देखने को मिला। इस बार भाजपा के मौजूदा विधायक मेवाराम आर्य को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के रमाकांत गोस्वामी ने भाजपा उम्मीदवार मेवाराम आर्य को 5,594 वोट से हरा दिया।
2003: कांग्रेस ने दर्ज की लगातार दूसरी जीत
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रमाकांत गोस्वामी ने अपनी सीट को बरकरार रखा। इस चुनाव में कांग्रेस के रमाकांत गोस्वामी ने भाजपा महेश चड्ढा को 14,176 वोट से हरा दिया।
2008: कांग्रेस ने लगाई जीत की हैट्रिक
2008 में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदल दिया। इसके बाद भी मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच हुआ। इस बार भी कांग्रेस को जीत मिली। कांग्रेस के राजेश लिलोठिया ने भाजपा की अनीता आर्य को 9,506 वोट से हराकर पार्टी के लिए जीत की हैट्रिक लगाई।
2013: आप को मिली पहली जीत
दिल्ली की राजनीति के लिए साल 2013 एक अहम कड़ी साबित हुआ। इस चुनाव में मुकाबले में कांग्रेस-भाजपा के अलावा इस बार भ्रष्टाचार आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी भी थी। पटेल नगर विधानसभा सीट पर आप ने जीत दर्ज की। आप की वीणा आनंद ने भाजपा की पूर्णिमा विद्यार्थी को 6,262 वोट से हरा दिया।
2015: आप ने दर्ज की लगातार दूसरी जीत
2015 में फिर से दिल्ली में विधानसभा चुनाव करवाने पड़े। 2014 में मात्र 49 दिन सरकार चलाने के बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया था। फरवरी 2014 में जब लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो पाया तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 2015 में फिर से चुनाव कराए गए और केजरीवाल ने 70 में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की।
पटेल नगर सीट आप ने अपनी बरकरार रखी। इस सीट पर आप के हजारी लाल चौहान ने भाजपा की कृष्णा तीरथ को 34638 वोट से हरा दिया था। आप के उम्मीदवार को 68,868 वोट मिले। वहीं, भाजपा की कृष्णा तीरथ को 34,230 वोट से संतोष करना पड़ा।
2020: आप ने लगाई जीत की हैट्रिक
2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को फिर जबरदस्त जनादेश मिला। आप को 70 में से कुल 62 सीटों पर जीत मिली। पटेल नगर की बात करें तो यहां आप के राज कुमार आनंद ने भाजपा के प्रवेश रत्न को 30,935 वोट से हराया दिया। आप उम्मीदवार को 73463 वोट मिले। भाजपा उम्मीदवार को 42,528 वोट से संतोष करना पड़ा।