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सड़क निर्माण की मांग को लेकर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठे ग्रामीण

सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी। ग्राम पंचायत खमरिया टपरिया टोला के ग्रामीण विगत 48 घंटों से लगातार अनशन पर बैठे हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब इस गांव के लोग अपनी मांगों को लेकर इस प्रकार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सड़क निर्माण की वर्षों पुरानी मांग को लेकर ग्रामीण अब थक चुके हैं और शासन-प्रशासन की उपेक्षा से बेहद आक्रोशित हैं। शासन की लगातार अनदेखी और झूठे आश्वासनों से त्रस्त होकर ग्रामीणों ने एक बार फिर आमरण अनशन का मार्ग चुना है।
30 सितंबर 2023 को ग्रामीणों ने पहली बार अपने अधिकारों के लिए अनशन की शुरुआत की थी। यह अनशन लगातार पाँच दिन तक चला। सड़क की जर्जर हालत, बारिश के मौसम में कीचड़, दलदल और बीमारियों के डर ने ग्रामीणों को सड़क के लिए संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया था। उस समय क्षेत्रीय मंत्री गोपाल भार्गव स्वयं गांव पहुंचे और ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जल्द ही सड़क निर्माण का कार्य शुरू कराया जाएगा। उनके भरोसे पर विश्वास कर ग्रामीणों ने अनशन खत्म कर दिया। लेकिन मंत्री जी का आश्वासन मात्र एक दिखावा साबित हुआ। महीनों बीतते गए पर काम की कोई शुरुआत नहीं हुई। पहले आंदोलन से कोई परिणाम नहीं निकला तो ग्रामीणों ने दुबारा एक और आंदोलन किया। इस बार चार दिन का अनशन चला, जिसमें जनपद पंचायत के सीओ (Chief Officer) ने हस्तक्षेप किया और कहा कि सड़क निर्माण का कार्य जल्द शुरू होगा। ग्रामीणों को फिर विश्वास दिलाया गया कि उनकी मांग पूरी होगी और अधिकारियों की बातों में आकर उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया। लेकिन एक बार फिर सरकार की नीयत और अधिकारियों की गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लग गया। एक साल बीत गया, पर ना तो कोई सर्वे हुआ, न कोई टेंडर निकला और ना ही निर्माण कार्य शुरू हुआ। इन परिस्थितियों ने ग्रामीणों का धैर्य पूरी तरह तोड़ दिया। अब जबकि अनशन को 48 घंटे हो चुके हैं, ग्रामीणों का कहना है कि वे अब आश्वासन नहीं, कार्रवाई चाहते हैं। गांव के प्रमुख समाजसेवी रामनाथ पटेल ने कहा, “हम लोग अब किसी भी झूठे वादे में नहीं आने वाले। यह अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक सड़क निर्माण की ठोस शुरुआत नहीं होती — सिर्फ घोषणा नहीं, काम की शुरुआत। ग्रामीणों का आरोप है कि बरसात के समय में गांव का संपर्क मुख्य मार्ग से पूरी तरह कट जाता है। कीचड़ और पानी भराव की स्थिति में स्कूल जाने वाले बच्चों, बीमार लोगों और महिलाओं को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने हर दरवाज़ा खटखटाया — जनपद पंचायत, जिला कलेक्टर, मुख्यमंत्री हेल्पलाइन — लेकिन हर जगह से सिर्फ “कार्रवाई जारी है” जैसा जवाब ही मिला। सबसे चिंताजनक बात यह है कि अब तक प्रशासन की ओर से कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा है। 48 घंटे से लोग खुले आसमान के नीचे भूखे-प्यासे बैठे हैं, फिर भी न कोई जनपद अधिकारी आया, न तहसीलदार और न ही कलेक्टर कार्यालय से किसी ने सुध ली। वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। कई बुजुर्गों और महिलाओं की तबीयत खराब होने लगी है। चिकित्सा सुविधा तक उपलब्ध नहीं कराई गई है। यह प्रशासनिक लापरवाही कहीं ना कहीं शासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है। इस आंदोलन में गांव की महिलाएं भी बराबरी से हिस्सा ले रही हैं। श्रीमती सरोज बाई, जो कि गांव की अग्रणी महिलाओं में से एक हैं, ने बताया कि, “अब पानी सिर के ऊपर से निकल चुका है। हम मां हैं, बहन हैं, पर अगर ज़रूरत पड़ी तो सड़क पर लेटने से भी पीछे नहीं हटेंगी।” गांव की दर्जनों महिलाएं भी उपवास पर बैठी हैं। इस सड़क की हालत का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ रहा है। बारिश में स्कूल जाने से डर लगता है क्योंकि फिसलन से गिरने का खतरा बना रहता है। गांव के शिक्षक शिवनारायण मिश्रा का कहना है कि छात्रों की उपस्थिति लगातार कम हो रही है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण खराब सड़कें हैं। ग्राम पंचायत के सरपंच से जब इस मुद्दे पर सवाल किया गया तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उन्होंने कई बार प्रस्ताव भेजे हैं, लेकिन ऊपर से कोई स्वीकृति नहीं आई। अब सवाल उठता है कि यदि निचले स्तर के जनप्रतिनिधि ही गंभीर नहीं हैं या सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं, तो ग्रामीण अपनी आवाज़ किससे कहें?इस पूरे मुद्दे पर क्षेत्रीय विधायक और सांसद ने भी चुप्पी साध रखी है। न कोई बयान, न कोई दौरा — जिससे ग्रामीणों का आक्रोश और बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि चुनाव के समय नेता दरवाजे-दरवाजे हाथ जोड़ते हैं, लेकिन अब जब ज़रूरत है तो कोई सुनवाई नहीं कर रहा।
निष्कर्ष: अब चाहिए ठोस कदम, नहीं तो बड़ा आंदोलन। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द से जल्द सड़क निर्माण की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो यह अनशन और व्यापक आंदोलन में बदल सकता है। वे जिला मुख्यालय तक पैदल मार्च करने और तहसील कार्यालय का घेराव करने की योजना बना रहे हैं। आज जब भारत “डिजिटल इंडिया” और “स्मार्ट विलेज” की बात करता है, तब खमरिया टपरिया टोला जैसे गांव बुनियादी सुविधाओं के लिए आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर हैं। यह शासन और प्रशासन के लिए एक आईना है — अगर अब भी व्यवस्था नहीं जागी तो आने वाले समय में जनाक्रोश बड़ा रूप ले सकता है

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