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आपराधिक मामले में ‘सम्मानजनक’ बरी न होने पर अवसर से वंचित करना समाज में पुनः एकीकरण के सिद्धांत के विरुद्ध: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी व्यक्ति को आपराधिक मामले में 'सम्मानजनक' तरीके से बरी नहीं होने पर अवसर से वंचित करना समाज में पुनः एकीकरण के सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले में की जब एक व्यक्ति को आपराधिक आरोपों से बरी कर दिया गया था, लेकिन उसे पुनः समाज में अपनी जगह बनाने के लिए उचित अवसर नहीं दिया जा रहा था।

 

कोर्ट का निर्णय:

 

 

 

 

 

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति के खिलाफ आरोप साबित नहीं होने के बाद उसे समाज में पुनः स्थापित करने का अधिकार है। यदि किसी व्यक्ति को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया है और अदालत ने उसे ‘सम्मानजनक’ बरी कर दिया है, तो उसे नौकरी, शिक्षा या किसी अन्य सामाजिक अवसर से वंचित करना गलत होगा। अदालत का मानना था कि यह समाज के पुनः एकीकरण के सिद्धांत के खिलाफ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को समाज में फिर से सम्मान और अवसर मिले, जब उसे अदालत ने निर्दोष माना हो।

 

 

 

 

 

समानता और न्याय का सिद्धांत:

 

 

 

 

 

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि समाज में हर व्यक्ति को समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे उसके खिलाफ किसी समय आपराधिक मामला चला हो या नहीं। अगर उसे अदालत से बरी किया गया है, तो यह उसकी निर्दोषता की पुष्टि है, और समाज को उसे फिर से एक सम्मानजनक जीवन जीने का मौका देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि एक व्यक्ति को आरोपों से बरी होने के बाद समाज में भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।

 

 

 

 

 

समाज में पुनः एकीकरण के सिद्धांत:

 

 

 

 

 

 

राजस्थान हाईकोर्ट का यह निर्णय पुनः एकीकरण के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक व्यक्ति को उसके अतीत के आधार पर भविष्य में अवसरों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अदालत का उद्देश्य सिर्फ दोषी को दंडित करना नहीं होता, बल्कि समाज में व्यक्ति की पुनः स्थापित करने में भी सहायक होना होता है।

 

 

 

 

 

 

प्रभाव और महत्व:

 

 

 

 

 

यह निर्णय उन व्यक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है जिन पर आपराधिक आरोप लगाए गए थे लेकिन बाद में उन्हें अदालत द्वारा बरी कर दिया गया। इससे ऐसे व्यक्तियों को समाज में फिर से समान रूप से सम्मानित करने का मार्ग प्रशस्त होगा और यह सुनिश्चित करेगा कि वे अपने जीवन के नए अध्याय की शुरुआत कर सकें। इसके अलावा, यह समाज को यह संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है, चाहे उसके खिलाफ क्या भी आरोप क्यों न लगे हों।

 

 

 

 

 

निष्कर्ष:

 

 

 

 

 

 

राजस्थान हाईकोर्ट का यह निर्णय न्याय और समानता के सिद्धांत को स्थापित करता है, जो समाज में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान और अवसर प्रदान करता है, खासकर उन लोगों को जिन्होंने कानूनी प्रक्रिया के तहत निर्दोषता साबित की है। यह निर्णय समाज में पुनः एकीकरण को बढ़ावा देने का एक अहम कदम है।

 

 

 

 

 

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