
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान-शिवानी जैनएडवोकेट
ऑल ह्यूमंस सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे का छपरा,ओझवलिया नामक गाँव में एक सरयूपारीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था। पारिवारिक परम्परा के अनुसार इन्होंने प्रारम्भ में संस्कृत का अध्ययन किया और 1930 ई० में काशी विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी वर्ष प्राध्यापक होकर शान्ति निकेतन चले गये। 1940 ई0 से 1950 ई0 तक वहाँ हिन्दी भवन के निदेशक के पद पर कार्य करते रहे।
थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ कंचन जैन ने कहा कि आधुनिक युग के गद्यकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी रचनाओं में प्राचीनता और नवीनता का अपूर्व समन्वय हुआ है। उनके विषय-विवेचन में गम्भीरता और शालीनता स्पष्ट रूप में प्रतिबिम्बित होती है।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक एवं प्राचीन मानवाधिकार काउंसिल सदस्य डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन, बीना एडवोकेट आदि ने कहा कि आलोचना साहित्य में द्विवेदीजी महत्त्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। उनकी आलोचनात्मक कृतियों में विद्वत्ता और अध्ययनशीलता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ में उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास पर एक नवीन दृष्टिकोण से विचार किया है। द्विवेदी जी ने पहली बार हिन्दी साहित्य के इतिहास पर विश्लेषणात्मक ढंग से प्रकाश डाला।
शिवानी जैनएडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ