
वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज़ डिस्ट्रिक्ट हेड चित्रसेन घृतलहरे, 09 जुलाई 2025//पेंड्रावन //डिजिटल इंडिया” का सपना था कि जनता को सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता, सरलता और सम्मान मिले। परंतु सरसींवा तहसील कार्यालय में यह सपना हर दिन कुचला जा रहा है। सूत्रों से मिले जानकारी के अनुसार आय, जाति, निवास जैसे मूलभूत प्रमाणपत्रों के लिए चॉइस सेंटर से ऑनलाइन आवेदन कर रहे ग्रामीणों को तहसील ऑपरेटर द्वारा जानबूझकर सेंड बैक किया जा रहा है, और फिर प्रमाणपत्र स्वीकृति के बदले आवेदको से अवैध रूप से पैसे की मांग की जा रही है।
ऑनलाइन आवेदन फिर भी दफ्तर का चक्कर — क्या यही है डिजिटल सुविधा?
शासन ने चॉइस सेंटर के माध्यम से लोगों को घर बैठे प्रमाणपत्र बनाने की सुविधा दी थी ताकि दफ्तरों में भ्रष्टाचार खत्म हो और जनता को समय व धन की बचत हो। लेकिन सरसींवा तहसील कार्यालय में ऑपरेटर की मनमानी ने पूरे सिस्टम को मज़ाक बना दिया है।जानकारी के अनुसार, 99% से अधिक ऑनलाइन आवेदन जानबूझकर “मूल दस्तावेज़ के साथ उपस्थित हो, नये पटवारी प्रतिवेदन पेस करना” जैसे बहाने बनाकर सेंड बैक कर दिए जाते हैं, जबकि दस्तावेज़ पहले ही अपलोड किए गए होते हैं। इसके बाद आवेदक जैसे ही तहसील कार्यालय पहुंचता है, 300 से 500 रुपये लेकर आवेदन तत्काल स्वीकृत कर दिया जाता है। चॉइस सेंटर संचालक भी इस चक्रव्यूह में फंसे हुए है केवल आम नागरिक ही नहीं, चॉइस सेंटर चलाने वाले ई-सेवा प्रदाता भी शोषण का शिकार हो रहे हैं। नियमों के तहत अगर सेंड बैक आवेदन पर 10 दिनों में प्रमाणपत्र नहीं बनता तो संबंधित चॉइस सेंटर को प्रति आवेदन ₹500 का जुर्माना भरना पड़ता है। इसका सीधा फायदा उन लोगों को मिल रहा है जो फाइलें रोककर बाद में पैसे लेकर स्वीकृति दे रहे हैं। इस प्रकार की लापरवाही से अभी वर्तमान एसडीएम बिलाईगढ़ वर्षा बंसल को 45000 रुपया का पेनल्टी पड़ा है।प्रवासी मजदूर और गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित है वह लोग जो रोजी-रोटी के लिए राज्य से बाहर काम कर रहे हैं, उन्होंने चॉइस सेंटर से प्रमाणपत्र हेतु आवेदन किया था। लेकिन अब उन्हें तहसील कार्यालय में “मूल दस्तावेज़ के साथ उपस्थित होने” के नाम पर बुलाया जा रहा है। जो व्यक्ति हजारों किलोमीटर दूर कमाने गया है, वो क्या सिर्फ एक प्रमाणपत्र के लिए वापस लौटेगा? इन सब के वजह से बच्चों के पढ़ाई मे कई प्रकार से बाधा उत्पन्न हो रही पालक नहीं होने पर बच्चो को स्कूल छोड़ छोड़ कर तहसील कार्यालय जाना पड़ रहा है।
सवाल उठते हैं —
1. क्या यह सिस्टम का फेल्योर है या अधिकारियों की योजनाबद्ध लूट?
2. क्या चॉइस सेंटर सिर्फ दिखावा हैं और असली काम अब भी “कैश पर क्लियर” हो रहा है?
3. अगर सभी दस्तावेज पहले से स्कैन और सत्यापित हैं, तो फिर मूल दस्तावेज की मांग क्यों?
जनता की मांगें —
1. सेंड बैक किए गए सभी आवेदनों की स्वतंत्र जांच हो।
2. रिश्वतखोरी की जाँच कर तत्क्षण निलंबन और एफआईआर हो।
3. चॉइस सेंटर को बेवजह फाइन से मुक्त किया जाए।
4. ऑनलाइन प्रक्रिया को सख्ती से लागू किया जाए, ताकि दफ्तर की निर्भरता खत्म हो।
5. तहसील ऑपरेटर व जिम्मेदार अधिकारियों पर जवाबदेही तय हो।
जब सरकार “डिजिटल इंडिया” कहती है, तो जनता को भरोसा होता है कि अब काम आसानी से होगा।
लेकिन सरसींवा तहसील में इस भरोसे को रोज कुचला जा रहा है — यह सिर्फ लापरवाही नहीं, यह जनता के अधिकारों का अपमान है।